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________________ * ॐ महम् * ततत्व-सघातक KARE तत्त्व-प्रकाशक १४ सकिरण का मूल्य हैं इस किरण का मूल्य III) DhanusMANMaaaaa JA नीतिविरोषवसीलोकन्यवहारवर्तकः सम्यक् । परमागमस्य बीज भुवनेकगुरुर्जयत्यनेकान्तः । वर्ष ८ किरण १ सम्पादक-जुगलकिशोर मुख्तार वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम ) सरसावा जिला महारनपुर ) माघ, वीरनिर्वाण संवत् २४७२, विक्रम संवत २००२ जनवरी १६४६ 33 - - परमात्म-वन्दन यो विश्वं वेद वेद्य जनन-जलनिर्भगिनः पारदृश्वा, पौर्वापर्याऽविरुद्धं वचनमनुपर्म निष्कलङ्क यदीयम् । तं वन्दे साधु-वन्यसकल-गुण-निधि ध्वस्त-दोष-विषन्तं, बुद्धं वा बर्द्धमानं शतदलनिलयं केशवं वा शिवं वा ।। -प्रकलकाष्टक "जिसने दोष-समूह तथा शत्रुसमूह को ध्वस्त किया है-अपने अज्ञान-गग-द्वेष-काम-क्रोधादि विकारों - और उनके कारणीभूत ज्ञानावरण--दर्शनावरण-मोहनीय श्रादि कर्म-शत्रोका विनाश किया है-ज्ञेयस्वरूप विश्व को जाना है--सकल लोक-अलोकका ज्ञान प्राप्त किया है-, तरङ्गाकुलभव-ममुद्रका पार देखा है--संसारसागरके पर-भागमें स्थित मुक्ति-जगतका साक्षात् अवलोकन किया है और जिसका प्रवचन (आगम) पूर्वाऽपरके विरोधसे रहित अनुपम तथा निर्दोष है, उस साधुओंसे वन्दनीय तथा सकल गुणोंकी खानि परमात्मपुरुषकी मैं वन्दना करता हूँ-उसके गुणोंमें अनुरक्त हुश्रा और उन्हें श्रात्मगुण समझ कर अपने अात्मामें उनके विकासको दृढ भावना रखता हुश्रा मैं उसके आगे नतमस्तक होता हूँ--चाहे उसे बुद्ध, वर्द्धमान (वीर-जिन) ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि किसी नामसे भी क्यों न कहा जाय-नामसे कोई प्रयोजन नहीं, उक्त गुण विशिष्ट प्राप्तपुरुष ही वन्दना और अाराधनाके योग्य है, उसीके श्रादर्शको सामने रखकर अात्मविकास सिद्ध किया जा सकेगा।
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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