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________________ किरण १०-११] महाकवि सिंह और प्रद्युम्नचरित ३९३ 'प्रमारवंशोद्भवमहामण्डलेश्वरश्रीयशोधवलराज्ये न कि कुमारपालका राज्यकाल वि० सं० ११९९ से वाक्य द्वारा यशोधवलको परमारवंशका मण्डलेश्वर वि० सं० १२२९ तक पाया जाता है और इस सचिन किया है। यशोधवल रामदेवका पुत्र था, बड़नगर प्रशस्तिकाकाल सन् १५५१ (वि०सं०१२०८) इसकी रानीका नाम सौभाग्यदेवी था। इसके दा है। अत: बल्लालकी मत्यु ११५१ A. D. (वि० सं० पुत्र थे, जिनमें एक का नाम धारावर्ष और दूसरे १२०८) से पूर्व हुई है। का नाम प्रसाद देव था। इनमें यशाधवलके बाद ऊपरके इस कथनसे यह स्पष्ट मालूम होता है राज्यका उत्तराधिकारी धाराव था। यह बहुत ही कि कुमारपाल. यशोधवल, बल्लाल और अराज वीर और प्रतापी था, इसकी प्रशंसा वस्तुपाल- ये सब राजा समकालीन हैं। श्रतः ग्रन्थ-प्रशस्ति तेजपाल प्रशस्तिके ३६वें पद्यमें पाई जाती है। गत कथनको दृष्टिमें रखते हुए यह प्रतीत होता है धारावर्षका मं० १२२० का एक लेख 'कायद्रा' गांवके कि प्रस्तुत प्रद्यम्नरितकी रचना वि० सं० १२०० बाहर, काशी, विश्वेश्वरके मन्दिरसे प्राप्त हुआ है। से पूर्व हो चुकी थी। अत: इम ग्रंथका रचनाकाल यद्यपि इसकी मृत्युका काई पट उल्लेख नहीं मिला, विक्रमकी १३वीं शताब्दीका प्रारम्भिक भाग जानना फिर भी उसकी मृत्यु उक्त मं० १२२० के समय तक चाहिये। या उसके अन्तर्गत जानना चाहिये। प्रद्यम्नचरितकी अधिकांश प्रतियोग अन्तिम __ जब कुमारपाल गुजगतकी गद्दी पर बैठा तब प्रशस्ति ही दी हुई नहीं हैं, और जिन प्रतियों में प्राप्त मालवाका राजा बल्लाल, चन्द्रावतीका परमार थी उनमें वह टित एवं खण्डितरूपमें ही प्राप्त हुई विक्रमसिंह और सपादलक्ष सांभरका चौहान थी; किन्तु यह लिम्बते हा प्रसन्नता होती है कि श्रर्णाराज ये नीनों गजा परम्परमें मिल गए, और भ महन्दीनि आमेरक शास्त्र भण्डारकी कई इन्हनि कुमारपालक विरुद्ध जबरदस्त प्रतिक्रिया की; प्रतियों में यह प्रशस्ति पूर्णपर्म उपलब्ध है। उक्त परन्तु उनका यह सब प्रयत्न निष्फल हुआ। भण्डार में इम ग्रन्थकी छह प्रतियाँ पाई जाती है। कमारपालने विक्रमसिंहका राज्य उसके भतीजे जो विविध समयों में लिखी गई हैं उनमे सं० ११७७ यशाधवलका दे दिया, जिसने बल्लालको माग था, की प्रतिपरसे उक्त ग्रन्थकी अन्त प्रशस्ति पाठकोंकी और इस तरह मालवाका गुजरातमें मिलानेका जानकारीके लिये ज्यांकी त्यों रुपमं नीचे दी प्रयत्न किया गया। जाती हैं:बल्लालको मृत्युका उल्लेख अनेक प्रशस्तियांम कृतं कल्प वृक्षम्य शास्त्रं शम्नं मधीमता । मिलता है । बड़नगरसे प्राप्त कुमारपाल प्रशस्तिक सिंहन मिहभूतन पापतामस भंजनं ।।। १५ श्लोकोंमें बल्लाल और कुमारपालकी विजयका काम्यम्य काम्यं कमनीयवृत्तउल्लेख किया गया है और लिखा है कि कुमारपालने वृत्तं कृत कीनिमतां कवीनां । बल्लालका मम्तक महल के द्वारपर लटका दिया था। भव्यन सिंहन कवित्व भाजां, ५ शवभंगीगलविदलनान्निद्रनिस्त्रिंशधारी, लाभाय तम्यर्थ मदैवकीनिः ।।२।। भागवः समजनि मुतस्तन्य विश्वप्रशस्यः । सव्वण्टु मव्वदंसी भव-वण-दहणो क्रोधानान्तप्रधनवसुधा निश्चले यत्र जाता, मव्वमारम्स मारो, ५चात त्रोत्पलजलकणः कोकणाधीश पत्न्यः ।।३६।। मव्वाणं भव्ययाणं समयमणगद्दो २ देखो, भारतके प्राचीन राजवंश भा० १ पृ० ७६-७७ । मवलोयाण मामी । ३ Epigraphic IndicnV.I.VIII P. 200. १ देग्यो, मन ५१५१ की लिग्विन बड़नगर प्रशस्ति ।
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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