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________________ ३९२ अनेकान्त [ वर्ष ८ ता मलधारिदेउ मुणिपुंगमु, समय बतलानेका प्रयत्न किया जाता है । ग्रंथप्रशस्तिपच्चक्ख धम्मु उवसमु दमु । में 'बम्हणवाड' नगरका वर्णन करते हुए लिखा है कि उस समय वहाँ रणधोरी या रणधीरका पुत्र माहवचंद आसि सुपसिद्धउ, बल्लाल था जो अर्णोराजका क्षय करनेके लिये जो खम-दम-जम-गिणयम-समिद्धउ । कालस्वरूप था और जिसका मांडलिक भृत्य अथवा 'मलधारी' यह एक उपाधि थी जो उस समयके सामन्त गुहिलवंशीय क्षत्री भुल्लण उस समय किसी किसी साध सम्प्रदायमें प्रचलित थी । इस बम्हणवाडका शासक था' । परन्तु इस उल्लेखपरसे उपाधिके धारक अनेक विद्वान श्राचार्य होगये हैं। उक्त राजाओंका राज्यकाल ज्ञात नहीं होता। अतः वस्तुतः यह उपाधि उन मुनिपुङ्गवोंको प्राप्त होती उसे अन्य साधनोंसे जाननेका प्रयत्न किया जाता है। थी जो दुर्धरपरीपहों, विविध उपसर्गों और शीत मन्त्री तेजपालके आबके लणवसति गत उप्ण तथा वर्षाकी वाधा महते हुए भी कष्टका सं० १२८७ के लेखमें मालवाके राजा वल्लालको अनुभव नहीं करते थे, और पसीनेसे तर शरीर यशोधवलके द्वारा मारे जानेका उल्लेख है। यह होनेपर धूलिकणोंके संसर्गसे 'मलिन' शरीरको साफ़ यशोधवल विक्रमसिंहका भतीजा था और उसके न करने तथा पानीसे न धोने या न नहाने जैसी कैद हो जाने के बाद गद्दी पर बैठा था। यह कुमारघोर वाधाको भी हसते हुए सह लेते थे। ऐसे ऋषि- पालका मांडलिक मामन्त अथवा भृत्य था, मेरे इस पुङ्गव ही उक्त उपाधिसे अलकृत किये जाते थे। कथनकी पुष्टि अचलेश्वर मन्दिरके शिलालेख गत कविवर देवसेनने भी अपने गुरु विमलसेनको निम्न पाम भी होती है :मलधारी सूचित किया है। इन्हीं गुरु अमृतचन्द्रके "तम्मान्मही.."विदितान्यकलत्रपात्र, आदेशसे कवि सिंहने प्रद्युम्नचरितकी रचना की है। स्पर्शो यशोधवल इत्यवलम्बते स्म । ग्रन्थ और उसका रचना समय यो गुर्जरक्षितिपतिप्रतिपक्षमाजौ, प्रस्तुत ग्रंथमें श्रीकृष्णके पुत्र प्रद्यम्नकुमारका जीवन वलालमालभत मालवमेदिनीन्द्रम् ॥" परिचय १५ संधियोंमें दिया हश्रा है, जिसकी शोक यशोधवलका वि० सं० १२०२ (११४५ AD.) संख्या साढ़े तीन हज़ारसे कम नहीं है। मारा ग्रंथ का एक शिलालेख अजरी गांवसे मिला है जिसमें अपभ्रंश भाषामें रचा गया है। प्रथका चारतभाग बड़ा ही सुन्दर और शिक्षाप्रद है। कविन उसे १ सरि-सर-गंदण-वण-संछण्णउ, प्रत्येक संधिकी पुष्पिकामें धर्म, अर्थ, काम और मठ-विहार-जिरण-भवणरवगण उ । मोक्षरूप पुरुषार्थ चतुष्टयस भूषित बतलाया है। बम्हणवाडउ णामें पट्टण, अपभ्रंश भाषा स्वभावत: माधुय एवं पदलालित्यको । अरिणरणाह-सेण दलवदृणु । लिये हुए है, कविने उसे विविध छन्दाम गूंथकर जो भुजइ अरिणखयकालहो, और भी सरस तथा मनोहर बना दिया है। रणधोरियहो सुअहो बल्लालहो । __ यद्यपि ग्रंथमें रचनाकाल दिया हुश्रा नहीं है, जासु भिच्चु दुजण-मणसल्लणु, फिर भी अन्य प्रमाणोंके आधारपर ग्रन्थका रचना __ खत्तिउ गुहिल उत्तु जहिं भुल्लण ॥ -प्रद्युम्नचरित प्रशस्ति । १ देखो, सुलोचनाचरित और देवसेन नामका लेख, २ यश्चौलुक्यकुमारपालनृपतिः प्रत्यथितामागतं । अनेकान्त वर्ष ७ किरण मत्वा सत्वर मेव मालवपति बल्लालमालब्धवान् ।।
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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