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________________ १४२ अनेकान्त । वर्ष ८ कीर्तिम्भ के निर्माता सम्बन्धमें पिछले दोनों विद्वानोंका .सं. १६६ से पूर्व रचिा (जय हम कृन) चित्तौड मन श्वे. कारित (जिनमें देशाइने पोग्वाड कुमारपाल चेप्यपरिपाटीमें--- कारित भी बतला दिया है) होने के पक्षमें है। प्र. हुंबडपून तणी धूप तेगि ए मति मंदान। शौनलप्रपाद नीने श्रा० सर्वे के मनानुमार नोनी मत उद्धन कीरति थंभ करावि जात मा हरी सूखडी। किये हैं अत: निर्माता एवं निर्माण काल का निर्णय करना मात भैरिमोहामणीइ विंव महम दोइ देखि । परमावश्यक है। पंखी पारा मरा ॥ वंदी वीर विशेष ॥१८॥ श्रीयुत देशाई एवं श्रा, पर्वका हमारपाल कारित २ सं० १५७७ में गयंदिरचित चिनौट चैम्प करने का प्राधार नियकृत महारप्रसाद प्रशस्ति है इसकी परिपाटीमेंप्रति मंगाकर देखनेर जात हा कि इस ! शम्तिके पाठ 'पापइ ईवड पनानीमना देवातकहइ इक ताता तार नरे। के ठक नाम नहीं समझने के कारण ही यह भ्रम हुअा मृखडी नइ धन वैगि करावीउरे कीरनिथंभ विग्यान रे ॥ प्रान होना है जिप श्लोकक अर्थ भ्रमके कारण यह गलत उपरि चोखी चिह परि कोणीरे ऊंचर अति विस्तार। धारणा हई है व नोक यहाँ उन्हत किया जाना है जिसमे चडता जे भंडामात माह मणीर बिंब सहमदाइ मार मारना पाठकों को स्वयं निणय करने में सुगमता होगी ढाल-हवइ दिगंबर देहरारे. तिहां जे नवम बिंब । उच्चमहपान - देश - कुलिका विस्तीर्ण माणश्रियं । भामंडन्त पृठः भन्न न रे, छत्र प्रय पडिबिंब ।। कनिम्तंभ समापवर्तीनमम श्रीचित्रकुटानले । अनियां पूजह प्रभु पाम, पनु परइ मनकी प्रास । प्राक्षाद मृजन. प्रसादमममं श्री मामलावितेः। चर्चा चंदन केवडहरे गोरी गावहसमा भवियांपु० । श्रादेशाद्गुणराजमाधुमित स्वरचंदधाषान्मुदा ॥८६" ये दोनों रचना ये श्वेताम्बर मुनियोंकी रचित हैं उन्होंने उस समय जैसा प्रपिद्धि सुनने में आई वर्णित की है। प्राग्वशम्य ललाम् मापारि शासन यन्नष्टक । गत मार्गश पतिपदको साहित्यालङ्कार मुनिकांतिमारजीमे प्रट: प्रत्यष्टधाजनपते: पूजा सृजन द्वादश । गमपुरमें इस संबध वार्तालाप होने पर आपने अपने सघाधाश कुवारपाल सुकृता कैलाश लघमा हुतो। संग्रह के एक लेखकी नकल बतलाई जिमसे इम की िस्तंभ दक्ष दक्षिणताऽस्य मोदरामवामाद मादीचपन ॥६५ क निर्माणकाल एवं निर्माताके अन्य धार्मिक कार्यों तथा अरकश वेश: तिलकः सुकृतारुते जने । वंशकमपर नवीन प्रकाश मिलता है। अत: इससे उसे भी म्जात्मजः प्रति वपन्नह चित्रकृटे। नीचे दिया जारहा है । प्रस्तुत लेख कारज के नामोल्लेख धात्रायः सुजन जोवनदत्त शैन्यं । होनम और भी महयका है क्योंकि कारंजाक उल्लेख वाला चन्यं चचारु निरमी पदुनरस्य ॥ ६ ॥ अन्य लेख अद्यावधि प्रज्ञात है। अर्थात् --कीनिस्तंभक समीप में गुणराजने मोकनारामा ३ म्वस्ति श्री संवत १५४१ वर्षे शाक १४ । के मादेशसे महावीर जनात्मक बनाया उप मदिरके दक्षिणा (१४०६) प्रवर्तमान काधीता संवत्सर उतरगणे मासे में पारवाड मंक कुमारपालका जिन मंदिर था और उत्तर शुक्लपक्ष ६ दिने शुक्रवासरे स्वातिनक्षत्रे-योगे २ करंगे प में श्रीमवाल नेजाक पुत्र चाच,के कगस्ति मंदिर था। मि. लग्ने श्री वराट (ढ) देशे कारंजानगरे श्री जी अत: कस्तंभन श्वे. व कुमारपाल कारित कहना सुपाश्वनाथ चैत्यालये श्री म(मृलसंघे सनगणे पुष्कर गाछे भ्रममूलकही प्रतीत होना है। अचम:मन् वृद्धमनगणधराचार्ये पारंपर्गद्गत श्री देवीर अब मैं मुझे प्रान तीन महत्वपूर्ण प्रमाणों को उद्धन महावाद वांदीश्वर रायवादियिकी महामकल विद्वजन माध करता है जिनके श्राधार बघेरवाज मा. जिजाक पुत्र (व)भीम सामिमानवादीममिहभिनव त्रैवद्य सोमन पुनमिहने अपनी पुत्रीक अनुरोधमे प्रस्तुत कीर्तिम्तंभ भट्टारकाणामुपदेशात श्री बघेरवालज्ञाति बमह वाड ५५ वीं शताब्दीमें बनायासिद्ध होता है। गोत्र अष्टानाशत महोगशिखरप्रासद समुद्धरणे धीर:
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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