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बच्चोंकी दर्दनाक दशा और प्राकृतिक चिकित्सा
(लेखक-६० श्रेयांसकुमार जैन शास्त्री)
हमारी और हमारे बच्चों की कमी शोचनीय अवस्था गेने-धोनेका कारण समझने और न समझने वाली हराएक है, यह किमीसे छिपा नहीं है । प्रायः वच्चो से लेकर बड़ी माता उसे चुप करनेका सबसे सरल आय दूध पिलाना तक प्र.येक का चेहरा किसी न कि.मी गंगमे श्राकान्त है। समझती है, भले ही वह दर्दसे छटपटा रहा हो। यह एक
एक वर्षसे लेकर तीन वर्ष तक के अधिकांश बच्चे बहुत बड़ी भूल है। जिसका नतीना लगातार पेटका खगव प्राय: गंगामे ग्रस्त पाये जाते हैं। जमे दस्त श्रान्न, दध होना है। इसी कारण खून में विकार पैदा होजाना प्रारंभ गिगना, पेट में सुपड़कर दर्द होना, माधारण तौम दोजाता है और बच्चा बीमार होजाता है। श्राग्वे दुम्बनेपर उपचार न निमे श्रावों में रोड़े पर जाना
(२) जिन बच्चाको जग अधिक रोने की आदत पड़ तथा सदा और जकाम हो जाना। प्रारंभ ही बच्चोंकी जाती है, उनको बहूतमी माताएं जब कभी अफीम घोलकर ऐमी दशा देखकर सभीका हृदय दरखी हो उठता है। इन दूध पिला देता है, निममे बच्चे सोने रहे और वे काम मभी रोगोंका कारमा केवल शरीर में विकारका एकटा होना कर सके । जगमे अपने कार्य करने के कारण यह बच्चे के है। मां बाकी पालन पोषण की खगायोंका प्रमाद पाकर साथ घोर अन्याय किया जाता है, जान-बूझकर उसे विष ई। बचे रोगोंका शिकार होन। माना अशिक्षिता दिया जाता है। उमका बुरा प्रभाव पड़ने के कारगा स्वास्थ्य होने के कारण, या घोड़ी बहन शिक्षिता दोती हुई भी नर दो नाता है, दिल कमजोर हो जाता है और मस्तिष्क में स्वास्थ्य सम्बन्धी विषयांस अनभिज्ञ होने के कारण अपने गर्म या जाता है। बड़े होने पर भी यह कटे। नहीं छटती बचोका पालन-पोषण उचित सैनिमें नहीं कर पाती। इस और इमी के कारण भयानक बीमारियां उसे घर लेता है। अज्ञानताके कारण जन्म से दो बच्चोंके शरीर रोगोंके अड्डे (३) बच्चे का पाँच-छ: महीने की उम्र में अन्न-प्राशन बन जाते हैं और बेचारे कोमल व निरपराध बच्चे नाना होत ही उसे ना जपर डाल दिया जाता है, तुम समय घर के प्रकार के कष्ट भोग अकालमें काल कलित होकर संमार में सभी लोग लाइ-चाव आदिक कारण बच्चेको रोटी, दाल चल बमते है । घोड़े बहुत जो कुछ नकदी से बच जाते है चावल इत्यादि सभी चीजें दिन में कई-कई बार अपने-अपने व दुबले-पतले और कमजोर दोनेके कारण हमेशा दी मात्र विनाने लगते हैं। जिससे बड़ी खराबियों पैदा होकिमी न किसी बीमारीके घर बने रहते हैं और बड़े होने पर जाती है। प्रथम दात न निकलने के कारण वह अन्न चबाने तो वे और भी भयानक रोगकि चंगुल में फंस जाते है। में बिल्कुल असमर्थ दाना है, जिसमें उदरमं वह अन पच मंरक्षण-सम्बन्धी प्रधान भूलें:
न सकने के कारण विषवत् अाचरण करता है। दूसरे दुधके बच्चोंके लालन-पालन सम्बन्धी भूल माधारमा दाता बाद एक दम अन्न ग्रहण करने के लिए पेट भी नैयार नहीं हुई भी भावी कटु परिणामको लिये हुए होती हैं। रहता । फलतः बच्चे बीमार हो जाने है। और ऐमी दशामें निम्न प्रकार हैं:
अन्न चबाने की आदत भी हमेशा के लिए छूट जानी है। (१) सबसे बड़ी भूल बच्चों के ग्विलाने पिलानेमें की (४) ग्विनाने पिलाने के समय निधिन न रहने के कारण जाती है । प्रारम्भमे ही उनके खाने-पीने की श्रादन बिगाइ बच्चं समय-कुममय हरदम टूमते रहते है और यदा-तद्वा दी जाती है । समयका तो अंश मात्र भी ध्यान नहीं रखा उचित-अनुचित सभी खाते रहते हैं । फलत: वे बीमार जाता । किसी भी कारण से बच्चे के रोने-चिल्लानेपर उसके रहते हैं।