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________________ किरण ३] बच्चों की दर्दनाक दशा और प्राकृतिक चिकित्सा (५) सवेरे के समय मिठाई श्रादि गरिष्ठ, देर से पचने शन रोगी कुछ समय बाद फिर उसी रोगसे या किसी दूसरे वाला भोजन दिया जाता है, जो अतीव हानिकर है। रोगसे ग्रस्त हो जाते हैं और दिनी-दिन इसी प्रकार शारीरक (६) बहुतमे बच्चे कच्चे वीर्यसे पैदा होने के कारण हाम होता जाता है। शरीर में इस दबे हुए विकारका जरासी मर्दा-गर्माम बीमार पड़ जाते है। प्रभाव बहुत बुग होता है। जिस तरह नालीका गन्दा ये कुछ कारण हैं जिनसे बच्चे बीमार हो जाते है और पानी निसे बहकर निकन मानेका गस्ता नहीं मिलता कष्ट भोगते रहते हैं। यही कारण है कि विश्वके किसी भी उमी स्थान में पड़ा पड़ा महता रहता है और दुर्गन्धि फैलाता गष्ट्र में इतने बच्चे नहीं मरते जितने भारतवर्ष में मरते हैं। है, उसी तरह औषधियोमे दबा हा विकार भी अप्राकृतिक भोजन और दुषित रहन-सहन इसके प्रधान शरीर में सड़ता रहता है और यदि वह बाहर नहीं निकल कारण हैं। सका तो अन्दर ही अन्दर फैल कर भीषगा ल नगा चिकित्मा-प्रणालीका गलत ढंगः प्रकट कर देता है, जिम ताद नालीके मढ़ते हुए पानीम बच्चों के बीमार पड़ने ही हम डाक्टर-दकीमौकी शरण में फिनाइल छोइनेसे उसकी दुर्गन्धि केवल थोड़ी देर के लिए पहंचने हैं, जो अौषधियों को देकर तत्काल या कुछ समय के दब जाती है उसी प्रकार शरीर के अंगों में दबा हा विकार लिये गेगको शान्त कर देते हैं किन्तु जड़मे नाश नहीं श्रौषधिके प्रभाव से थोड़ी देर के लिए मंदाग्नि अख्त्यार करते । परिणाम यह दोता है कि कुछ समय बाद रोग कर लेता है । एक दिन वह ग्राता है जब ये लोग बीमारी फिर उमड़ता है। इसमें भी उपरोक्त कार्यवाही कीजाती हे को लाइलाज कगर दे देते हैं और बेचारे निरपराध भोले. जिससे शरीर की हालत दिनों-दिन खराब होती जाती है। भाले जीव अकाल में दो लोक लीला समाम करके कुच इसी तरह करते-करते बच्चे के शरीरके वह अावश्यकीय कर जाते हैं। श्रङ्ग जो जीवन संजीवनी देनेका काम करते हैं उसकी दिनों-दिन अस्पताल तथा श्रारोग्य-भवन (Saniमौनका इन्तजाम करने लगते हैं और नतीजा यह निकलता torium ) बनते ही जाते है, लेकिन रोगोका वेग घटने है कि वे बेचारे या तो अकाल हामं काल कनित हो जाते के बजाय बढ़ा दी जाता है । वस्तुत: सैकड़ों वर्षोसे हैं या जिन्दा भी रहते हैं नी पूग जीने और मिर्फ सांस चिकित्मक हमार शागरिक रोगांकी जहन मिटा देने का लेने के बीच की दशा में रहते हैं । ऐसे बच देश और समाज हौसला भरते चले याद हैं, लेकिन सचाई कुछ और है। का कुछ भी कल्याण नहीं कर सकते। है। निम्नलिम्बित डाक्टगके मन मे इमपर और भी अधिक ___ मैंने अाधुनिक चिकित्मा-प्रणालीको गलत कहा है प्रकाश पड़ता है:श्रतः प्रसंगवश उसका कुछ विवेचन कर देना अनुचिन न पाश्चात्य देशके एलोपेथी (Allopathy ) धातु, होगा। विस्तृत रूसे तो किसी दूसरे लेखम लिगा, नशाले और विपले पदार्थोमे औषधियों बनाकर व्यवहार विस्तारभयसे यहाँ पर छोड़ा जाता है । देखिए: में लाई जाने वाली सामूहिक औषधियोका नाम एलोपे थी औषधिका प्रयोग करना शरीर के प्राकृतिक नियमोंके हे निमका अर्थ विपरीत प्रभावशाली औषधि होता है, के अनुकूल नहीं है। अधिकांश औषधियां रोगको अच्छा एक एक मुविख्यात डाटर सर विलियम श्रौसलर करने के बदले शरीर में विकाको दबा और छिपा रखती हे (Sir William Osler) का कहना है (we put केवल बाहरी पीड़ा औषधिके प्रभावसे कम होजाती है, drugs, of which we know little, into जिमसे कलममयके लिए रोगीको कष्ट नहीं मालूम होता bodies, of whice we know less. इत्यादि और वह समझता है कि मैं अच्छा होगया । वस्तुत: 'दम लोग श्रोषध, जिनके बारे में कम ज्ञान रखते हैं शरीर दवाका काम रोगपर एक ढक्कन बना देना होता है जिसके में. जिसके बारे में हम और भी कम ज्ञान रखते हैं. कारण रोगी शान्ति अनुभव करता है। परन्तु विकार उसके पहुँचाते है। अमेरिका के डाक्टर क्लार्क (Clark) का शरीर में पूर्ववत् ही रह जाता है। यही कारण है ८५ प्रति- कहना है कि चिकित्सकाने रोगियों को लाभ पहुँचाने के
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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