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________________ ५३४ अनेकान्त [ वर्ष ८ यहाँकी शामभा दृर २ मशहा है । दशनाक्षणीमें श्रीमान लाला हरसुखरायजीन' २६ विशाल प्रायः बाहर के प्रौढ विद्वान बुलाए जाते हैं। एकम स्वा- मन्दिर (कहा जाता है कि आपने इससे भी कहीं पायशाला हे तथा पुरुषवर्ग स्वाध्याय किया करते हैं। ज्यादा मन्दिर बनवाए, परन्तु लेखकको कोई प्रमाण ___ तीमरे दालान में स्त्रियां शास्त्र सुनतीं व म्वाध्याय नहीं मिला) दिल्ली जयसिहपुग (न्यू देहली) पटपड़, f..या करती हैं उ.परके भागमें सुनहरी अक्षरों में शहादग देली, हस्तिनागपुर, अलीगढ़, सोनागिर, कल्याणमन्दिर स्तोत्र लिम्वा हया है । इसके अन्दर सोनीपत, पानीपत, करनाल, जयपुर, मांगानेर आदि विशाल मरम्पती भंडार है जिममें हस्तलिखित स्थानों में बनवाए और उन मन्दिरों के खर्च के वास्ते लगभग १५०० शास्त्र व छपे हा संस्कृत भाषाके ग्रंथों भी यथेष्ट जायदादें प्रदान की। का अच्छा मंग्रह हे इमसे स्थानीय व बाहरक विद्वान आप शाही विजांजी थे । आपको सरकारी यथेष्ट लाभ उठाते हैं। स्वयं लेखकने अनेक बार ग्रंथों मेवाओं के उपलल्यमें तीन जागीरें सनद मार्टीफिकेट को बाहर भेजा है। लेखककी भावना है कि कब वह आदि प्राप्त हए। आप भरतपुर राज्यके कोमिलर दिन आवे जब देहलीके विशाल ग्रन्थोंका जिनकी थे। आपके पुत्र सुगनचंदजीका फोटु देहलीके लाल नादाद छह हजार के करीब है उद्धार हो । क्या के ई किले में सर्गक्षत है और उक्त फोटूम आपको 'गजा जिनवाणी भक्त इस ओर ध्यान देगा! यही स्त्रियों की सुगनचंद लिम्बा हुआ है। भी शास्त्रमभा होती है । इधरसे पक जीना नीचे मन्दिर के बहर जनमित्र मंडलका कार्यालय है, जाना है जिसमें प्रायः स्त्रीसमाज आती जाती है वह जो सन १६१५ में स्थापित है और जिसने अब तक नांचे उतरकर श्री जैन कन्या शिक्षालय भवनमें १०० से ऊपर बहुमूल्य ट्रैक्ट प्रकाशित किए हैं जिस पहँचता है । शिक्षालय सन १६०८ से स्थापित है। को सरकारने Chief Literary Society लिखा पाँचवीं कक्षा तककी शिक्षा दी जाती है । तीन सौसे है तथा मंडल द्वारा स्थापित सन १९२७से श्रीवर्धमान ऊपर जैनव जैनेतर बालिकाएँ शिक्षा प्राप्त कर रही हैं पब्लिक लायब्रेरी है जिसमें धार्मिक पुस्तकों का खासा चमको परिश्रम कर मिडिल कक्षा तक पहुँचा देना संग्रह है में लायब्रेरीव संडलको उन्नतदशामें देखनेका दाहिये। यहीं ऊपर, नीचेका मांजल में स्त्रासमाजकी उत्सुक हैं। कुछ कमियां हैं जिनपर ध्यान देनेकी तुरन्त दो शास्त्रसभाएं होती हैं। मन्दिरका महन भी काफी आवश्यकता है। इसके बाद ही इसी नये मन्दिरजी बड़ा है जिसमें बहुधा पंचायतको बैठक हुआ करती है। की जमीनपर बीबी द्रौपदी देवीकी विशाल धर्म मन्दिरको दर्शनीय पत्थरकी छतरी है एक ओर है जिसमें कई मभाओं के कार्यालय हैं जिनका कुछ सबसे पुरानी मंवत १६४३ से चालू जैन पाठशाला कार्य नजर नहीं आता । यह धर्मशाला बहुधा विवाह भवन है जिसमें चौथी कक्षा तक शिक्षा दी जाती है शादी, उठावनी आदिके काममें आती है । यहां १५६ विद्यार्थी हैं। इतनी पुरानी शिक्षणसंस्था होते हुए यात्रियोंको टहराने के लिये कोई खास सुविधा नहीं भी कोई खास उन्नति न ह। यह दुःख की ही बात है। है। प्रबंधक व ट्रस्टी महोदयोंको खास ध्यान देकर मन्दिरके निचले भ गमें सर्दीक मौसममें रात्रिको ऐस नियम बना देने चाहिये जो यात्रियोंको विशेष शास्त्रमभा हुश्रा करती है तथा मिथ्यात्व तिमिर- उपयोगी सिद्ध हो सकें। यहां आसपास वहुधा जैनियों नाशिनी दिगम्बर जैन मभा द्वारा स्थापित आगईश के ही घर हैं। फंडका सामान तथा दिगम्बर जैन प्रेम सभा द्वारा , अग्रेजी जैनग. अक्तूबर १९४५। २ नकल बयान स्थापित बर्तनों का संग्रह है जो बहुधा विवाह शादीके हस्तिनागपुर पृ०६.१२ मशमूला ता. जि. मेरठ १८७१ काम में आता है। ३ पंजाब डि. गज० देहबी डि. सन् १६१२ पृ.७८ ।
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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