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अनेकान्त
[वर्ष ८
दण्डित किया जाना । इस प्रकार अपराधी भखे ही छट उपकी टीका बुद्धघोष लिखते हैं कि बुद्ध और प्रसनदीकी जाय किन्तु निरपराधी कभी भी दरिदत नहीं किया जा प्रथम भेंट जेतवनमें हुई. उसने म. बुद्ध बुद्धस प्रश्न सकता था। वैशबी नगराके निकट ही गंगाके किनारे एक किया कि जब निगंथनातपुत्त (महावीर) मक्खलि गोशाल, पर्वतपर हीरे जवाहरातको एक भारी खान थी। मगधनरेश परण कम्पप प्रादि वयोवृद्ध महात्मागण जीवित हैं तब अजातशत्रका उसपर दान था, किन्तु लिच्छावियों बद्ध अपने पापको 'सम्मासंबुद्ध' क्यों कहते हैं। इसके अद्भुत संगठन और साहस सम्मुख उसकी एक न चली उत्तरमे बुद्धने कहा कि क्षत्रिय, उ(ग, अग्नि और बहन अन्तमें उसने कूट नीतिसे काम लिया और लिच्छावियों में वयमें छोटे होने पर भी उनकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिये । फूटके बीज बोने शुरू किये फलस्वरूप वह इस अनुपम राजाने प्रश्न किया क्या पृथ्वीपर कोई ऐसा भी प्राणी है वजिदेश, भगवान महावीरकी जन्मभूमिपर भाक्रमण करने जिसे बुढापा या मृत्यु नहीं प्राप्त होगी?” बुद्धने इसका का साहस कर सका और उसपर विजय पा सका। शुछ उचित समाधान कर दिया। तदनन्तर इन दोनोंके
बुद्धघोषके कथनानुसार युद्ध के समय मगधदे का बच इस विषयपर वाद विवाद हुआ कि 'प्राणी' को प्राये राजा बिम्बसार था और उसके इस नामका कारण उसके का महादसे ज्यादा है।' बुद्धघोष कहते हैं कि बौद्धधर्म शरीरका सुनहरी रंग था (बिम्ब-सुनहरी), एक बड़ी सेना में दीक्षित होने के पश्चात मी प्रसेनजितने अन्य धर्माचार्यों का अधिपति होने के कारण वह 'सेनिय' (श्रेणिक) भी से यथा निगंथ, जटिल, अचेलक, परियामक एक शतक कहलाता था। उसके पुत्र अजात शत्रकी माता कौशल नरेश प्रादिकोंसे उपेक्षा नहीं की वरन पूर्ववत भादरभाव रक्खा महकौशलकी कन्या वैदेही थी। इस महाकौशलका पुत्र उसने एक वार बुदमे प्रश्न किया कि "महतोंमें सबसे पसेनदी (प्रसेनजित) या । मज्झिमनिकायकी टीकामें बुद्ध- प्रमुख कौन है ?" तो बुद्धने उत्तर दिया-"तुम गृहस्थी घोष लिखते हैं कि पसनहीने जब बुद्धकी ख्याति सुनी तो हो तुम्हें विषयभोगों में प्रानन्द प्राता है। तुम इस विषय उसे ईर्ष्या हुई। वह उस समय वृद्धके विरोधी अन्य मतों को नहीं समझ सकोगे." राजा बेचारा चुप होनया । बुद्धने के पक्ष में था। उसकी वय बुद्धके समान ही थी। बुरने राजाको धनकी उपयोगिता भी बताई। उसका मत परिवर्तन करने के लिये अपने प्रधान शिष्य
त पारवतन करने के लिये अपने प्रधान शिष्य इस प्रकार बौद्धाचार्य बदघोषके ग्रन्थोंसे महावीर सारिपुत्रको उसके पास भेजा किन्तु राजाने उससे मिलनेसे कालीन इतिहास विषयक अनेक दिलचस्प बातोंपर प्रकाश इन्कार कर दिया। अन्त में वह बौद्धधर्ममें दीक्षित होगया पडता है। प्रस्तुत लेख में हमने केवल उन्हीं कथनांशीको
और उसने संघकी बड़ी सेवायें की। उसके अन्तःपुरकी लिया है जो भगवान महावी, उनके धर्म, उनके अनुखियां बुद्धकी सेवामें लगी रहती थीं।
यायियों, उनके पितृवंश, उनकी जन्मभूमि और उनके संयुत्त निकायका एक अध्याय 'कौशनसंयुत्त'। जिसमें शिष्य राजागण श्रादिसे सम्बंधित है। बुद्ध और प्रसेनजितके धार्मिक प्रश्नोत्तर दिये हुए हैं। भविष्य वाणी
( श्री काशीराम शर्मा 'प्रफुल्लित') होने वाला है रामराज्य, भारत वालो मङ्गल गावो ! पश्चिम में सुरज छिपा शाम,
अब रात नहीं, दिन पहिचानो, अब पूरब में उजियाली है ।
नेता सुभाष जिन्दा जानो ! चिर पराधीनता-तिमिर चीर;
धनवानो! दो धन-निधि बखेर, पल में पौ. फटने वाली है!
बल तोलो अपना बलवानो ! आजादी की रण-गङ्गा का यह पुण्य पर्व, वीरो न्हावो! दर्शन करने आजादी का, पीछे वालो आगे आवो ! मङ्गल गावो, मङ्गल गावो !
मङ्गल गावो, मङ्गक गावो !
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