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________________ किरण ३] "बौद्धाचार्य बुद्धघोष और महावीर कालीन जैन" १०७ मदैव भिक्षाये अपना निहि करें। किन्तु बुद्धने उपकी विरोधी थे, जो कुछ थोडेसे पुराने राज्यकर चले पाते थे यह बातें नहीं मानी और फलत: देवदत्त संघसे अलग उन्हींसे सन्तुष्ट थे । ये वजी गण राजनीति में भी निपुण थे होगया और अपने मतका स्वतन्त्र प्रचार करने लगा। देव- और अपने वयोवृद्ध अनुभवी देशवासियोंके पास राज्यदत्त के बहकानेमे ही कुणीक ( अजातशत्र) ने अपने पिता कार्यों व राजनीतिकी शिक्षा लेते थे। जब तब उनकी मार्व. श्रेणिक पर अत्याचार किये बताये जाते हैं। जनीन समायें होती रहती थी जिनमें देशके विविध प्रदेशों बुद्धघोष कहते हैं कि मल्ल लोग (महावीर काबीन एक्क तथा अन्य राज्यकी विषयोंके सम्बंध में वादविवाद होते अस्य जाति) क्षत्रिय थे और उनकी राज्यव्यवाया राजानों और जनताको उनसे अवगत कराया जाता था। ढोल पीट की गणतंत्र शैलीकी थी। कर सभाके होनेकी घोषण की जाती थी। प्रत्येक व्यक्ति 'खहकपाठ' की अपनी टीका 'परमस्थजोतिका' में वह उपस्थित होने का प्रयत्न करता और सभा समाप्त होते ही कहते हैं कि लिच्छवियाँक देहकी चर्म इतनी सुंदर थी कि सब नरन्त अपने अपने स्थानको चले जाते । जिच्छवियोंकी इसमें शरीरके भातरकी वस्तुएं झलकती थीं। एक दूसरे इन सभाओं में राजकीय विषयों के अतिरिक्त, जनताकी चिके ग्रंथ धम्मपद प्रस्थ कथा' (भा०३ पृ. ४६०) में वह अनुमार अन्य बौकिक विषयों तथा धार्मिक प्रश्नोंपर भी बतलाते है लिच्छवियोंके यहां एक बड़ा त्यौहार होता वाद-विवाद होते थे। एक समय बुद्धके सिंह नामक एक या जो सब्बतिवार' या सब्बरत्तिचार' कहलाता था। शिष्यने जब लिच्छवियोंकी इस महती सभाको देखा तो इस अवसर पर गीत गाये जाते थे, दुन्दुभी मृदंग प्रादि उसने कहा कि 'यदि तथागतको इस सभामें धर्मप्रचार भनेक वादिन बजाये जाते थे, पताकार्य फहराई जाती थीं। करने का अवसर मिल जाय तो वह अत्यन्त प्रमक होंगे।' राजागण, राजकुमार, मनापति सभी इस मार्वजनिक उत्सव धर्मप्रचारक लिये यह सभा एक आदर्श सभा समझी जाती में भाग लेते थे और रातभर श्रानन्द मनाते थे। स्त्रियं भी थी। अपने ग्रंथ 'समस्तपासादिका (पृ. ३३८) में बुद्धघोष इपमें सम्मिलित होती थी। धम्मपदमत्थ था प्रथमें यह । ने इस सभाको तातिश देवोंको सभा ( इन्द्रमभा) से भी उल्लेख है कि बिछवि लोग प्राय: उद्यान और वाटि· उपमा दी है। 'सुमंगल विलासनी' में महाली नामक एक काओं में "नगर शोभनियों" को साथ लेकर जाते थे। सामान्य लिच्छविके एक कयनका उल्लेख जिममें उप सुमंगल बिजासनी ग्रंथमें (पृ.१०३.१०५) इन्हींलिच्छ वीरभक्तने कहा था कि “मैं एक क्षत्रिय हूं। बुद्ध भी एक वियोंके विषय में लिखा है कि जब कोई लिच्छवि बीमार पड़ क्षत्रिय ही हैं। यदि उसका ज्ञान बढ़ते २ सर्वज्ञताकी सीमा जाता तो उसे देखने जाते थे, वेशीजसंयमका बहुत ध्यान को पहुंच सकता है तो मैं भी क्यों नहीं मर्वज्ञ होमकता ?" रखते थे, बलात्कार आदि अपराध सुननेमें भी नहीं पाते इसी ग्रंथमें लिच्छवियोंके न्यायशासन पर भी प्रकाश थे। वे अपनी परम्परागत प्राचीन धार्मिक क्रियाओंको हाला गया है । जब कोई चोर पकड़ा जाता तो नह न्यायाकरते थे। किसी जिच्छविक यहां यदि कोई मंगल कार्य धीश सामने लाया जाता । यदि वह निरपराध सिद्ध होता होता तो सारी जाति, विना किसी भेदभावके उसमें मम्मि तो छट जाता और यदि अपराध सिद्ध हुआ तो तुरन्त लित होती। जब कोई विदेशी राजपुरूप इनके देश में प्राता दण्ड न देकर उसे व्यौहारिक नामक राजकर्मचारीके सन्मुख तो पब लिच्छवि मिलकर उसका स्वागत करने नगरमे उपस्थित किया जाता। वह भी उसे दण्डका पात्र समझता बाहर जाते और बड़े भादर सम्मानके साथ उसे लिवा कर तो 'अन्तःकारिक' के पास भेजता, वहांसे वह सेनापति के नाते । अतिथिमत्कार के लिये वे प्रसिद्ध थे । किन्तु यदि सन्मुख पेश किया जाता, यहाँ भी यदि अपराध प्रमाणित कोई विदेशी शत्र इनके देश पर आक्रमण करता तो ये होता तो वह उपराजाके सामने पेश किया जाता और अन्त उपका बट कर बही वीरताके साथ मुकाबला करते। में राजाके मन्मुख उसकी सुनवाई होती। इस अन्तिम लिच्छिवियोंका संगठन भादर्श था। नवीन राजकरोंके वे अदालतमें भी यदि वह अपराधी ही सिद्ध होता तब उसे ७ बुद्धवार्ताभाग २, पृ० १४१८ बुद्धवात भाग ३, पृ० २०१ 'पवेनियोत्थक' (नजीरोंका संग्रह) नामक ग्रंथ प्रापारपर
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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