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________________ "बौद्धाचार्य बुद्धघोष और महावीर कालीन जैन” (ले०--ज्योतिप्रसाद जैन, एम० ए० एल एल० बी० लखनऊ) भाचार्य बुद्धघोष और बौद्धधर्मके एक सुप्रसिद्ध महान् उन्हें अच्छा ज्ञान था। वह भाजीवों और निग्रंथोंके प्राचीन भाचार्य थे। वह थेरवाद सम्प्रदायके सबसे बड़े ताविक विचारोंसे भी सुपरिचित थे। मृत्युके उपरान्त टीकाकार माने जाते हैं और उनका समय ईसाकी ५ वीं मारमाका क्या परिणाम होता है, इस विवेचनमें उन्होंने शताब्दी अनुमान किया जाता है। उन्होंने अधिकांश उक्त सम्प्रदायोंके तत्सम्बंधी विचारोंका भी उल्लेख किया गौद्ध भागम ग्रंथोंपर अपने विद्वत्तापूर्ण भाष्य रचे और इस है। 'विनय' और 'निकाय' ग्रन्थों में उल्लिखित विभिन्न प्रकार उक्त बाम्नायमें उनकी स्थिति प्राय: वही है जो जैन धर्मोपदेष्टानोंके जीवन वृत्तों पर भी उन्होंने थोड़ा थोड़ा दिगम्बर सम्प्रदाय में स्वामी वीरसेनकी तथा श्वेताम्बर प्रकाश डाला। सम्प्रदायमें प्राचार्य हरिभद्रसरिकी । डा. विमवचरण बुद्धघोषके अनुसार, महावीर कालीन एक अन्य धर्म लाने अंगरेजी भाषामें आचार्य बुद्धघोषकी जीवनी तथा प्रवर्तक, पूरणकस्मप भी नग्न ही रहते थे, और भाजीवक कामोंपर एक महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखा है । इस ग्रंथके सम्प्रदायके प्रवर्तक मक्खलिगोशाल भी। पकुध कात्यावन छठे अध्यायमें बुद्धघोषकी बहुविज्ञता प्रदर्शित करते हुए शीतल जल का उपयोग नहीं करते थे, केवल गरम जल या लो महाशयने उनकी बुद्धकालीन बौद्धतर धमों और चावलोंके गरम मांडका ही उपयोग करते थे। जातियों आदि सम्बन्धी जानकारीपर भी प्रकाश डाला है बद्धघोषके कथनानुसार, श्रावस्ती नगरी में महारानी जिससे विदित होता है कि बुद्धघोषने अपने ग्रन्थों में, प्रसंग मल्लिनाके स्थानमें एक भवन बनाया गया था (संभवतः वश महात्मा बुद्ध के समय में प्रचलित जैन, श्राजीवक श्रादि महारमा बुद्धकी व्याख्यान शाला)। इस भवनके पास पास धर्मों शाक्य कोलिय, लिछवि आदि जातियों, राजगृह, दि जातिया, राजगृह, अन्य धर्मोके प्राचार्योंके लिये भी कितने ही भवन बन गये वैशाली. श्रावस्ती आदि नगरियों के विषयमें उपयोगी और थे. किन्तु यह सब भवनसमह 'व्याख्यान भवन' के नामसे दिलचस्प जानकारी प्रदान की है। इसमें मन्देह नहीं कि ही प्रसिद्ध था। इस स्थानमें ब्राह्मण, निर्ग्रन्थ, अचेलक इनके तत्वबन्धी ज्ञान कायापार प्राचीन बौद्ध अनुश्रुति और परिव्राजक आदि विभिन्न प्राचार्य मिलते थे, अपना अपना साहिग्य था, वह स्वयं भी अबसे लगभग १५०० वर्ष पूर्व मत प्रतिपादन करते थे और वाद विवाद होता था। होचके हैं और उत्तर पूर्वीय भारतक ही निवासी थे। 'समंगलविलासनी' नामक ग्रंथों (पृ. १३८-१३६) प्रस्तु, उनका उक्त कथन अधिकांशत: प्रमाणीक ही होना बुद्धघोष लिखते हैं कि म० बुद्ध के प्रमुख शिष्य देवदत्तने चाहिये, और विशेष कर जबकि वह प्रतिपक्षी वर्ग वा वर्गों उनमे यह प्रार्थना की थी कि वे संघके नियम बहुत कडे के सम्बन्धमें है। करदें और यह श्राज्ञा प्रचारित करदे कि भितु लोग मांस 1. ना के शब्दोंमें २ ' भाष्यकार (बुद्धघोष) वैशाली मच्छीको बिल्कुल न छुएँ, केवल तीन वन अपने पास नगरसे भजी भौति परिचित थे, और वे उसके शापकों- रक्खें, खुले मैदान में रहें (विहार आदि किसी मकाकमें नहीं), लिच्छवियोंके विषयमें बहुत सी उपयोगी जानकारी प्रस्तुत ३ Dialogues of the Budha, करते हैं। तपस्यिोंके विविध सम्प्रदायोंके इतिहासका भी। pt. I, P. 44 F. N. , The life & work of Budhaghosa ४ सुमंगल विलासनी, भा० १, पृ० १४८ -by B. C. Law. ५ सुमंगल विलासनी, भा० १, पृ० १४४ २ Ibid, P. 107. . ६ बुद्धवार्ता-पृ० २४४ फु० नो.
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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