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________________ Regd. No. A-736. وبقصدهقانی: قانهع: نععقیده -ए वीरसेवामन्दिरके नये प्रकाशन छए ज १-आचार्य प्रभाचन्द्रका तन्वार्थसूत्र-नया प्राप्त लगभ० पेजकी महत्वपूर्ण प्रस्तावना है। बड़ा ही सक्षिप्त सूत्रप्रन्थ, मुख्तार श्रीजुगलकिशोरकी सानुवाद उपयोगी ग्रंथ है । मू० १॥) व्याख्या सहित । मूल्य।) ४-उमास्वामिश्रावकाचार-परीक्षा-मुख्तार श्री जुगल-ट्र २-सत्माधु-स्मरण-मङ्गलपाट-मुख्तार श्री जुगल- किशोरजीकी ग्रंथपरीक्षाओंका प्रथम अंश, ग्रंथकिशोरकी अनेक प्राचीन पयों को लेकर नई योजना परीक्षाओं के इतिहासको लिए हए १४ पेजकी नई सुन्दर हृदयग्राही अनुवादादि महित। इसमें श्रीवीर प्रस्तावना सहित । मू०) वर्द्धमान और उसके बादके जिनसेनाचार्य पर्यन्त, ५-न्याय-दीपिका-(महत्वका नया संस्करण)२१ महान अचार्यों के अनेकों प्राचार्यों तथा विद्वानों न्यायाचाय पं० दरबारीलालजी कोठिया द्वारा सम्पादित द्वारा किये गये महत्वके १३६ पुण्य-स्मरणोंका संग्रह और अनुवादिन न्याय-दीपिकाका यह विशिष्टसंस्करण है और शुरूमें १ लोकमङ्गल-कामना, २ नित्यकी अपनी खास विशेषता रखता है। अब तक प्रकाशित प्रात्मप्रार्थना, ३ साधुवेषनिदर्शक जिनस्तुति ४ परम- संस्करणों में जो अद्धियां चली रही थीं उनके। साधुमुग्बमुद्रा और ५ सत्साधुवन्दन नामके पाँच प्राचीन प्रतियोंपरम संशोधनको लिए हुए यह संस्करण प्रकरण हैं । पुस्तक पढ़ते समय बड़े ही सुन्दर पवित्र मुलग्रंथ और उसके हिंदी अनुवाद के साथ प्राकथन, विचार उत्पन्न होते हैं और साथ ही प्राचार्योंका सम्पादकीय. १०१ पृ० की विस्तृत प्रस्तावना, विषय-1 कितना ही इतिहास मामने आजाता है, नित्य पाठ सूची और कोई परिशिष्टोंसे संकलित है, साथ में र करने योग्य है । मू० ।।) मम्पादक द्वारा नवनिर्मित 'प्रकाशाख्य' नामका ३-अध्यात्म-कमल-मातण्ड-यह पंचाध्यायी तथा एक संस्कृटिप्पा लगा हआ है, जो ग्रंथगत कठिन लाटीसंहिता आदि ग्रंथों के कर्ता कविवर-गजमल्लकी शब्दों तथा विषयोंका खुलासा करता हुआ विद्याथियों अपूर्व रचना है । इसमें अध्यात्मममुद्रको कूजेमें बंद तथा कितने ही विद्वानों के काम की चीज है। लगभग किया गया है। माथमें न्यायाचाय पं० दरबारीलाल ४०० पोंके इम बृहत्मंस्करणका लागन मू०५) रु०ब कोठिया और पं०परमानन्द शास्त्रीका संदर अनुवाद, है। कागजकी कमी के कारगा थोड़ी ही प्रतियाँ छपी विस्तृत विषयसूची तथा मुख्तार श्रीजुगलकिशोरकी हैं। अतः इच्छुकोंको शीघ्र ही मंगा लेना चाहिये। 5६-विवाह-समुददेश्य-लेखक पं० जुगलकिशोर मुख्तार, हाल में प्रकाशित चतुर्थ संस्करण व यह पुस्तक हिन्दी माहित्यमें अपने ढंगकी एक ही चीज है । इसमें विवाह-जैसे महत्वपूर्ण विषयका | बड़ा ही मार्मिक और तात्त्विक विवेचन किया गया है-अनेक विरोधी विधि-विद्वानों एवं विचार-प्रवृत्तियों C से उत्पन्न हई विवाहकी कटिन और जटिल समस्याको बड़ी युक्तिके साथ दृष्टिक स्पष्टीकरण द्वारा सुलभाया गया है और इस तरह उनके दृष्ट विरोधका परिहार किया गया है। विवाह क्यों किया जाता है ? उसकी असली गरज (मौलिक दृष्टि) और सैद्धान्तिक स्थिति क्या है ? धर्मसे, समाजसे और गृहस्थाश्रमसे उसका CG क्या सम्बन्ध है ? वह कब किया जाना चाहिये ? उसके लिये वर्ग भौर जातिका क्या नियम हो सकता है ? विवाह न करनेसे क्या कुछ हानि-लाभ होता है ? विवाहके पश्चात किन नियमों अथवा कर्त्तव्योंका पालन करनेसे स्त्री पुरुष दोनों अपने जीवनको सुखमय बना सकते हैं ? और किस प्रकार अपनी लौकिक तथा धार्मिक उन्नति करते हुए वे समाज और देशके लिये उपयोगी बनकर उनका हित साधन करने में समर्थ हो सकते हैं ? इन सब बातोंका इस पुस्तकमें संक्षेपमें बड़ा युक्ति पुरस्सर एवं हृदयग्राही वर्णन दिया है। मू०॥)। प्रकाशनविभाग-धीरसेवामन्दिर सरसावा, (सहारनपुर) KsDGISTERSGGK मुद्रक, प्रकाशक पं० परमानन्द शास्त्री वीरसेवामन्दिर सरसावाके लिये श्यामसुन्दग्लाल द्वारा श्रीवास्तव प्रेस सहारनपग्में मुद्रित । छए
SR No.538008
Book TitleAnekant 1946 Book 08 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1946
Total Pages513
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size68 MB
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