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भगवान महावीरसे--=-00-00-=-(पं० नाथूराम जैन, डोंगरीय) मूक पशुओंके ऊपर अहह !
ज्ञान-रवि लखकर यह अन्याय धर्मकी लेकर श्रोट अपार
मानवोंका पशुओं पर आह ! यज्ञ में वधके द्वाग जब कि,
अस्त हो गया विश्वमें पूर्णकिया जाता था अत्याचार !
छा गया तम अज्ञान अथाह ! नहीं दिखता था सत्पथ देव ! कहीं भी भूमण्डलके बीच । अखिल भारतका जन-समुदाय,
फैमा था पाप-सरोवर-कीच ! पापका करनेको संहार,
यथा प्राचीमें प्रातःकाल, बचानेको पशुओंकी जान ।
उदित होता है सूर्य ललाम । ज्ञानका करने दिव्य-प्रकाश,
मात-त्रिसलासे तैसे वीर ! विश्वका करनेको उत्थान ।।
प्रकट तुम हुए दिव्य-सुखधाम । देख यह दशा विश्वकी वाह ! त्याग कर भूमण्डलका राज । ब्रह्मव्रत धारण किया प्रखण्ड,
सजाया आत्मोन्नतिका साज । अहिंसाका लेकर दिव्यास्त्र,
मिली तब विजय प्रापको नाथ ! प्रेमका बख्तर पहिन सॅभार -
हुआ पापोंका सत्यानाश । सत्य-गज पर हो कर आरुढ़
ज्ञान-रवि उदित हुआ जग-बीच, किया पापोंसे युद्ध अपार ।
प्रेमका फैला विमल प्रकाश । आपने दया धमेकी सुखदछेड़ कर मधुर रसीली तान । किया था मुग्ध जनोंका चित्त
सुना कर विश्व-प्रेमका गान । अन्तमें सज कर परम समाधि--
विभो ! फिर निखिल-विश्वमें आह ! बन गये मुक्ति-रमाके कान्त ।
स्वार्थ-वश कैसे अत्याचारसर्वथा दोषोंसे उन्मुक्त--
हो रहे हैं दीनों पर आज ! हुए गम्भीर सिन्धु-सम शान्त ।
नहीं है जिनका पारावार !! विलयको प्राप्त हो गये देव ! शान्ति सुख भी कर्पूर-समान । मची है त्राहि-त्राहिकी घोर,
करुण पुकार महान् ! अतः फिर हो ऐसा गुणधाम !
बनें तब सम हम सब बर वीर, निखिल पाखण्डोंका संघर । हृदयमें अखिल-विश्व में प्रेम
सुखी हों, विचरें पूर्ण स्वतन्त्र, तथा नव-जीवनका सञ्चार ।
उठा दें नत-भारतका भाल ।
स्वार्थका करदें त्याग विशाल ।
में प्रेम-