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अनेकान्त
[वर्ष ७
पलिजीने अपना खम्बा मुद्रित भाषण संक्षपमें पढ़कर हुआ। इस अवसर पर कितने ही दिगम्बर तथा श्वेताम्बर सुनाया । अधिक समय हो जानेसे दूसरे भाषणोंको अवसर विद्वानों एवं प्रतिष्ठित पुरुषोंने परस्परके इस मिलन और नहीं मिल सका।
मिलकर वीरशासन महोत्सव मनाने पर हार्दिक हर्ष व्यक्त ता.३ नवम्बरको सुबह जैनमवनमें जैनविज्ञान-परि- किया। साथ ही अनेकान्तको अपनाकर वीरशासनके सच्चे षदका अधिवेशन प्रो. हरिमोहन भट्टाचार्य के सभापतित्वमें उपासक बनने तथा वीरशासनके प्रचार कार्यमें सबको मिल हुमा। पं. नेमि चन्द्रजी उपोतिषाचार्यने अपना महत्वपूर्ण कर एक हो जाने की आवश्यकता व्यक्त की। समय अधिक निबन्ध पढ़ा और उसके द्वारा जैन ज्योतिषकी महत्ताको हो जानेसे सभापतिजीने थोड़े में ही हितकी बात सुमाई, अनेक प्रकारसे ख्यापित किया। प्रो० होरालालजी श्रादि अपनी अपनी त्रुटियोंको शोधने, मिल कर कार्य करने और और भी कुछ विद्वानों के भाषण मंत्रशास्त्रादि-विषयों पर बौद्ववाहित्यकी तरह जैनसाहित्यको सर्व भाषाओंमे प्रक्ट करने हुए। अन्त में सभापतिजीका जैन वज्ञान के अनेक अंगोचर की आवश्यकता बतलाई । आजकी इस कार्रवाई दिगम्बर और जैन मिद तोंकी प्रशंसामें मार्मिक भाषण हुआ।
श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायोंपर अच्छा प्रभाव पड़ा और परस्पर ___ रात्रिको बेलगछियामें कला और पुरातत्व परिषद्का का भ्रातृभाव कुछ उमड़ा हुआ और उत्सुकसा नजर भाया । अधिवेशन प्रो. टा. एन. रामचन्द्रन एम. ए. के सभा- रात्रिको बेलगछियाके सभामण्डपमें अनेक विद्वानों के पतित्वमें हुआ, जो बा. बोटेलाल जीके अनुरोध पर मद्रास भाषण हुप, तदनन्तर हिन्दुला संशोधन समिति के सामने से पधारे थे और अपने साथ चित्रों आदि के रूप में जैनकला जेनमांगों को उपस्थित करने, और वर्णी गणेशप्रसादजीकी और पुरानस्वकी कितनी ही सामग्री लाये थे, जिसे देखकर हीरकजयन्तीका अभिनन्दन करने के रूपमे दो प्रस्ताव पास बड़ी प्रसन्नता हुई। अापका मार्मिक भाषण अंग्रेजी में लिखा किय गये और फिर धन्यवाद तथा अाभार प्रदर्शनादिके हुमा था। जिप प्रापने बड़े ही प्रभावक ढंगमे पढ कर अनन्तर महोत्सवकी कार्रवाई भगवान महावीरकी जय' के सुनाया और उसके द्वारा जैनकला तथा पुरानावके मभी साथ समाप्त की गई। अंगोंपर अच्छा प्रकाश डाला और उनकी भूरि भूरि प्रशंसा
सबस बड़ा काम की। साथ ही यह भी बतनाग कि भारतमें सब और इस महोत्सवक अवसर पर श्रीमती पंडिता जैनकला और शिल्पका भण्डार भरा पड़ा है। अापके चन्दाबाईक सभापतित्वमें महिला परिषदकी अच्छी सफल बाद डा. बी. एम. बदुश्रा एम० ए० का बंगालीमे बैठक हुई, कितने ही विद्वानोंने मिल कर एक विद्वत्परिषद
और डा. एम. परमशिवम् (मद्रासी) का अंग्रजीमें भाषण की स्थापना की, तीर्थक्षेत्र कमेटीकी मीटिंग होकर उसके हुमा। इसके बाद जैनइतिहास परिषद्का कार्य प्रो. हीरा- सुधारका बीज बोया गया और उसके लिये पाँच लाख लाल जै० एम. ए. नागपुरके सभापतित्वमें प्रारम्भ रुपयके स्थायी फण्डकी तजवीज की गई, जिसमें से हुमा । सभापतिजीके भाषणके अनन्तर प्रो. कालीपदमजी दो लाख के करीबके बचन मिल गये, प्रो. हीरालालजीके मित्रका बंगालीमें भाषण हुमा और उसमे जैन इतिहासकी साथ उनके मन्तव्योंके सम्बन्ध में विद्वत्परिषदकी कुछ महत्ताको प्रकट किया गया। तदनन्तर बाल छोटेलालजीने महत्वपूर्ण चर्चा हुई है। और सरसेठ हुकमचन्द तथा सेठ
आए हुए कुछ अंग्रेजी निवन्धोंकी सूचना की और बतलाया गंभीरमल पांड्याका पारस्पिरिक विरोध मिट कर सम्मिलन कि समयाभावके कारण वे पढे नहीं जा सकते । तदनन्तर भी हुआ। ये सब भी इस महोत्सव सुन्दर परिणाम पं. नाथूरामजी प्रेमी बम्बईका यापनीयसंघके इतिहासपर हैं। परन्तु सबसे बड़ा काम जो इस महोत्सवके द्वारा बन कुछ प्रकाश डालता हुमा संक्षिप्त भाषण हुअा।
सका है. वह बाबू छोटेलालजीका वीरशासनके लिये अपना ता. ५ नवम्बरको सुबह बजेसे श्वेताम्बर गुजराती जीवनदान है। लाखों-करोडोंका दान भी उसके मुकाबले में जैन उपाश्रयमें जैन पाहित्य और कथा विभागका अधि- कोई चीज नहीं। वास्तवमें यह सारा महोत्सव ही बाब बेशन . कालीदास नाग एम. ए.के सभापतित्व में छोटेल.नजीका ऋणी है, उन्हींके दिमागकी यह सब उपज