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किरण ३-४
समन्तभद्रका एक और परिचय-पद्य
चन्दनमः' जैसे वाक्योका जो प्रयोग पाया जाता है वह मब उन सब कयनोकी पनि भी हग मिद्धमारस्वत' विशेषणसे भी श्रापक मंत्रविशेषज्ञ तथा मंत्रवादी होनेका सूचक है। भले प्रकार हो जाती है। अथवा यो कहिये कि श्रापकं 'मांत्रिक' विशेषणते अब समन्तभद्रकी वह सरस्वती (वाग्देवी जिनवाणीमातार्थ: उनमय कथनोंकी यथार्थताको अच्छा पोषण मिलता है। जिमकी अनेकान्तदृष्टिद्वारा अनन्य भागधना करके उन्होन घर हैवी शताब्दीके विद्वान् उग्रादित्याचार्यने अपने अग्नी वाशीमे वह अतिशय प्राप्त किया था जिमफे भागे कल्यागाकारक' वैद्यक अन्यमे 'अष्टाद्गमणनिलमत्र ममान- मभी नतमस्तक हात ध श्रोर जीशान भी महृदय विद्वानो भद्रः प्रोक्तं सविस्तरवचौविभवैविशेष त्' इत्यादि पद्य (२०- को उनकी श्रीर श्रापित किये हुए है। ८६) के द्वाग ममन्तभद्रकी अष्टग वेयकावषयपर विस्तृत
___यहाँपर में इतना और भी बतला देना चाह है कि रचनाका जो उल्लेख किया है उसको टाक बतलानेमे
उक्त गुटकेमे जो दूसरे दो पद्य पाये जाते हैं उनमें फही कही 'भषक' विशेषण अच्छा महायक जान पड़ता है।
कुछ पाठभेद भी उपलब्ध होता है, जैसे कि प्रथम पद्यम अन्त के दो विशेषण प्राशामिद' और मिद्धमारस्वत' ताडिता'की जगह त्राटतादर्श'की जगह बहुशे बहभट 31 बहुत ही महत्त्वपूर्ण है और उनसे स्वामी समन्तभद्रका विद्योत्कटं' की जगह 'बहुमटविद्याकट: और 'शादीअमाधारण व्यक्तित्व बहुन कुछ मामने या जाता है। विक्रीडित' के स्थानपर 'शा लवक्रीडितु' पाठ मिलता।
मिशेषणा प्रस्तुत करते हुए रवानाजा गजाको मम्बा- दुमरे ५द्यम 'काच्या' की जगह 'कान्या' 'लाबुशे' की जगह चन करते हुए कहते है। --हे गजन् ! में हम ममुद्र लाबुम', 'पुडोका जगद 'पिडा , 'शाकभिन्नः' का ए । पृजीर आशासिद्ध' है-जो प्रादश: वही हाना है। जगह 'शाकभक्षा, वागगगस्समभूव' की जगह बागगाम्या पार अधिक क्या कहा जाय ' उमारस्वन' हूँ- बम', 'शशाधवल:' की जगह 'शशधाधरला' और स्विनी मुझे मि । म सरस्वताका मद्धि अथवा परयास्ति' की जगह 'जस्याम' पाठ पाया जाता है। हम पचनाागदी ममन्तभद्रकी जम मकालनाना सारा रहस्य पाटभदोमन छ तो माधारण है, कुछ लेपकाकी लिपिको समितिजा स्थान स्थानपर वादोषणा वगैरर उन्हें अशुद्धि के परिणाम जान परतं और कुछ मालिक म' मान ईनी अगना एक शिलालेग्वक कथनानुमार धीर दोगुकते। 'शामिनुः' की जगह 'शासमती' जैमा
जोन्द्र के शामाता की हमारण) डि रने रूपम पाटभेद विचारणीय देशमारक प्रमानन्द्र और प्रधान मदन Inम प्राव कर मवे. थx |
के कथानापाम जिम प्रकार मभन्तभद्रकी कयादा उमक. अनेक विद्वानाने भरस्वती स्वरनि:मय:' जैम पदो अनुमार ता पद 'शामिन.ही बनना है, पर यह भी हा के द्वारा मन भद्र का जो मरतीकी मछन्दावहारभूमि मकना है कि उम घाट के कारण ही कथाको वेगा रूप दिया पकट किया है और उनके रच हुए प्रबन्ध ( अन्य )रूप गया दो बार वह भोनी परिबाट' में मिलता जलता
नल मर मरती कीग करती हुई बतलाया हे* शाकमीज, परिवादका बानो । बु.न माटो, अभी . दो, मत्मारा गयगलपाट पृ० ३४, ४६ | निक्रितरूपमे एक बात नदी का मकना । मावश्यम देवो, बेल्लूग्नाल्नु फका शिलालेग्य नं. १७ (r c.v.)
अधिक बोजकी श्रावश्याना है। नया ममा चुस्मरणमंगल गट, पृ. ५१
बीग्सवामन्दिर, सरमाया
बा०२-१२-१६४४