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* ॐ अहम् *
स्ततत्व-सघातक
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विश्व तत्त्व-प्रकाशक
वाधिक मूल्य ५)
इस किरणका मूल्य :-)
नीतिविरोधदसी लोकव्यवहारवर्तकः सम्यक् । पागागमस्यबीजे भुल्नैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः॥
Lorenasewasi
सम्पादक-जुगलकिशोर मुख्तार वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम) मरमावा जिला सहारनपुर कार्तिक-मार्गशीर्षशुक्ल, वीरनिर्वाण संवत् २४७१, विक्रम सं० २००१
वर्ष६ किरमा ३.४
अक्तूबर-नवम्बर
१६४४
सिद्ध-स्मरण सिद्धानुभूत-कर्मप्रकृति-समुदयान साधितात्म-स्वभावान ; वन्दे सिद्धि-प्रसिझे तदनुपम-गुण-प्रग्रहाकृष्टि-तुष्टः । मिद्धिः स्वास्मोपलब्धिः प्रगुण-गुण-गणोच्छादि-दोषापहारात्, योग्योपादान-युक्त्या दृषद इह यथा हेमभावीपलब्धिः॥
--मिद्धभत्ती, श्रीपूज्यपातः 'जिन्होंने । पूर्ण तपश्चर्याक बलपर) कमप्रकृतियोंक समहका-अात्मामे सम्बद्द मूलार-प्रकृानयाक भेदरूप सम्पूर्ण कर्मगाशका--मृलीच्छेद किया है- अामा के साथ उसके मम्बन्धका अभाव किया है-और (इम तरह) अात्मस्वभावको मान लिया है.- कर्म ननित मकल विभाव-भानका अभाव कर अपने प्रात्मा स्मरूपम स्थिर किया है-उन मद्धोक अनुपम गुणरूप रजके आकर्षगाम मन्तुष्ट हा- उनके प्रति भक्तिभावको प्राप्त हुअामैं सिद्धिकी उत्कृष्ट माधना के लिये उनकी वन्दना करता है-उनके गुणों और उनका मानना श्राकृत होकर सम्पहीने के लिये उनके धागे नतमस्तक होता हूँ।
(जिम मिद्धि के लिये यह वन्दना की जाती है। उम मिद्धिको स्वात्मभावकी लब्धि अथवा मम्प्राप्ति कहते हैं, और वह योग्य माधनोंकी योजना-द्वारा उन दोपोंके-जानाबरणा द कमकि--जो अनन्तज्ञानादि महान गुगगोंके आन्द्रादक हैं उच्छेदनने नमी प्रकार मिद्ध होती है जिस प्रकार कि (अग्निप्रयोगादि ) योग्य माधनों द्वारा इस संसारमं सवर्णपापागासेसवर्गवकी उपलब्धि होती है-मुवावोअलग किया जाता है।