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अनेकान्त
[ वर्ष ७
प्रतएव प्राप्तमीमांसा और रस्नकरणरके रचनाकारोंमें अब श्रावताचार और रत्नमालाका रचनाकाल समीप आ जाते कई शताब्दियोंका अन्तराल पता है जिससे वे दोनों एक हैं और उनके बीच शताब्दियोका चन्तराब नहीं रहता, लेखककी कृतियां कदापि नहीं रवीकार की जा सकती। क्योंकि न्यायाचार्यजीने उहापोह पूर्वक उस सन्बन्ध में यह विद्यानन्दिका समय ईसाकी ८ वीं शताब्दिका अन्त वह निष्कर्ष निकाला है कि 'रत्नमालाका समय , वीं वीं शताब्दिका प्रारम्भकाल (ईस्वी सन् ८१६ के लगभग) शताब्दिसे पूर्व सिद्ध नहीं होता।" अतएव उन दोनों सिद्ध होता है। अतएव रत्नकरण्डकी रचनाका समय इस ग्रन्थोंके कांकि सम्बन्धमे जिस सम्भावनाकी सूचना मैंने के पश्चात् और वादिराजके समय अर्थात शक सं०१७ से अपने पूर्व लेखमें की थी वह अब भी विचारणीय है। पूर्व सिद्ध होता है । इस समयावधिके प्रकाशमें रत्नकरण्ड
(धगलं अङ्क में समाप्त)
भगवतीदास नामके चार विद्वान
(लेखक-पं० परमानन्द जैन शास्त्री )
जैन समाजमें भगवतीदास अथवा भगोनीदाम नामके समय मवत ६१३ मे किया है और उन्हें उनम बुद्धिवाला अनेक विद्वान् हो गये हैं, परन्तु श्राम तौरपर 'ब्रह्मविलास' बतलाते हुए यह प्रकट किया है कि वे उन पोच प्राध्यामिक के कर्ता हीपं. भगवतीदास समझे जाते हैं। अस्तु, मुझे विद्वानोंमेंसे थे जिनकी प्रेरणापर उन्होंने नाटक समन्वयसार इस नामके चार विद्वानोका पता चला है। जिनका संक्षिप्त की रचना की है। साथ ही पंडित हीगनन्दजीने पंचापरिचय अनेकान्त-पाठकोंकी जानकारीके लिये प्रकट किया स्तिकाय' का हिन्दी पद्यानुवाद करते समय पवन १७१५ जाता है।
में जिनका ज्ञाता भगवतीदास के नाम उल्लेख किया है। एक पांडे जिनदायके गुरु ब्रह्मचारी भगवतीदाय थे। ये भगवतीदासमंवत १६४० वाले ब्रह्मचारी भगवतीदास पाडेजीने संवत १६४० भाटोंवदि पंचमी गुरुवार के दिन से भिन्न जान पर है। अन्यथा कविवर बनारसीदास 'जम्बस्वामीचरित्र' की रचना की है । और उसे श्रागराके और प. हीरानन्दजी अपने अपने ग्रन्यामे इनका 'समति' माइ पारसके सुपुत्र उन माह टोडरके नामांकित किया गया और 'झाना जैसे विशेषणोंक साथ उसले खमकरके ब्रह्मचारी है जिन्होंने मथुराके पास निमही बनवाई थी। उस ग्रन्थमे भगवतीदासक रूपमें ही उल्लेख करते । इसके सिवाय जिनदासजी अपने गुरुका नाम ब्रह्मचारी भगोनीदास प्रकट पाडे जिनदासजीको ग्रंथ रचनाकं समय पं. १६४० में करते हैं; जैसा कि उनके निम्न बाक्यमे प्रकट है :--
उनके गुरु भगवतीदासजीकी अवस्था ४० वर्षक बगभग "ब्रह्मचारि भगोतीदाम, ताको शिष्य पाडे जिनदास"। जरूर रही होगी। और ऐसी स्थितिमे उनका . १७९५
परन्तु यह ब्रह्मचारी भगोतीदाम (भगवनीदाम) कौन तक जीवित रहना कुछ संभव प्रनीत नहीं होता। अत: य ये और इनका विशेष परिचय क्या है ? यह ग्रन्धपरमे कुछ दोनों व्यनि भिन्न मिन ही मालूम होने हैं। मालूम नहीं हो सका।
नीमरे भगवनीदाम बुड़िया जिला अम्बाला निवामी दुसरे भगवतीदास वे हैं जिनका उल्लंग्व कविवर बनारसीदासजीने अपने नाटक समयमारकी रचना करते .
थे। यह अग्रवाल कुल में उत्पन्न हुए थे. इनका गोत्र * मंवत्मर सौरहस भए, चालीस तास ऊपर गए । x 'सुमतिभगोतीदाम' नाटक समयसार प्रशस्ति ।
भादविदि पाचे गुरुवार, तादिन कियो कथा उच्चार। + तहा भगोतीदाम है ग्याता-पंचास्तिकाय प्रशस्ति ।१०