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पं० पद्मसुन्दरके दो ग्रन्थ
(लम्बक-श्री पं० नाथूराम प्रेमी)
विक्रमकी मत्रहवीं सदी के प्रारंभमें पं० पानमंदर साहु रायमल्लजी गोइल गोत्री अग्रवाल थे। इन नामके एक अच्छे संस्कृत कवि हो गये हैं, जिनके के पूर्वजों में छाजू चीवरी देश-परदेशमें विख्यात थे 'भविष्यदत्तचरित' और 'गयमल्लाभ्युदय महाकाव्य' और उनके पाँच पुत्र थे-१ही (१), बूढणु, ३ नरनामक दो ग्रन्थ उपलब्ध हैं।
पालू, ४ भांजा और ५ नरमिह । नरमिहकी मदनाही ५० पद्मसन्दर आनन्दमेरुके प्रशिष्य और पं० नामक पत्लीमे नानू और सहणपाल नामके दो पुत्र पामेम्के शिष्य थे । अपने गुरुको और अपने आप हुए। इनमसं नानी कटरही नामक पस्नीस साहु को वे पंडित लिम्बते है, इमग वे मुनि बा भट्टारक ना गयमल्लजीका जन्म हुआ, जो बड़े भारी दाता, ज्ञाता, नही थे, परन्तु साधारण गृहस्थ श्रावक भी नहीं जान आर चतुर थे। पड़ने । क्यों कि वे अपनी गुरुपरम्पग देते है। ऐसा माह गयमल्लजीके छोटे भाई भवानीदास बड़े जान पड़ता है कि वे किमी गद्दीधर भट्टारक पाई पुण्यात्मा ओर राजमभा-सम्मानिन थे। या पंडित शिष्य होंगे। इन पंडितांमम जो अपने गुरु साह रायमल्लजीके भी दो पत्नी थी। उनमेंसे भट्टारककी मृत्यु के बाद भट्टारकमा पद नहीं पाते थे, प्रेथम पत्नी ऊधाहीस अमीचन्द्र नामक पुत्र हुआ, जो वे स्वयं अपनी पंडित परम्पग चलाने लगते थे, और नविनयशील-सम्पन्न और धर्मात्मा था और जिमकी उनके बाद उनके शिष्य प्रतिशिष्य होते रहते थे जो पत्नीका नाम जेठमलही था । दूसरी पत्नी मीनाहीग पांडे या पंडित कहलाते थे।
उदयसिंह, शालिवाहन और अनन्तदाम नामक तीन भविष्यदत्त-चरितकी प्रतिके अंतमे जोगदाप्रशस्ति पुत्र हुए। इन सबकी कविने मंगल-कामना का है। है और जो ग्रन्न र्माणकालके लगभग सवा वर्ष कामासंघ-माथरान्वय-पुष्करगणक उद्धरसनदेव, बाद ही लिग्बी गई है उममें काष्ठामंघ-माथुगन्वय- देवसेन, विमलसन, गुणकाति, यश-कीनि, मलयकीनि पुष्करगण के भट्टारकांकी गुरुपरम्पग दी है । कविक गुणभद्र भानुकीर्ति, और कुमारसन इन भट्टारकोकी
आश्रयदाता और ग्रन्थ बनानेकी प्रेरणा करने वाले नामावली दी है। इनमे अन्तिम कुमारसनक समयम माद रायमल्लजी इन्हीं भद्वारकाकी अाम्नायक थे। भविष्यदत्त-चरितका प्रतिलिपि की गई है। दुर्भाग्यस उक्तप्रशस्ति अधूरी है, उसका अन्तिम पत्र भविष्यदत्त-चरितका रचनाकाल कार्तिक सुदी खो गया है, फिर भी जितनी है उससे यह नहीं पंचमी वि० सं० १६१४ और रायमल्लाभ्युदयका जेठ मालूम होता कि कवि पद्मसुन्दरका उक्त भट्टारकास सुदो पचमी वि० सं० १६१५ लिखा है। किसी प्रकारका सम्बन्ध था। कविने अपने संघ या आग दोनो ग्रन्थ प्रतियांका परिचय और उनकी मम्प्रदायका भी कही लेख नही किया है।
प्रशस्तियाँ दी जाती हैउक्त दोनों ग्रन्थ चरस्थावरम उम समय के प्रसिद्ध भविष्यदत्त-चारनी एक अपूर्ण प्रति बम्बई के धनी माह गयमालजीकी अभ्यर्थना और प्रेरणाम ए०प० मरस्वती-भवनम है, जा फागन सुदी ७वि० लिखे गये थे और इस लिए उनमें उक्त माहजी और सं० १६१५ की अर्थात ग्रन्थनिर्माणकालम लगभग १ उनके समस्त परिवारकी प्रशंसा की गई है। चर- वर्प४महीने बादकीलिखी हुई है। इसके शुरुके पत्र स्थावर मुजफ्फरनगर जिलेका वर्तमान चरथावल
और २३, २५, २६, २७, २६, ३२, ३७ चे पत्र नहीं है जान पड़ना है जो उस समय बड़ा समृद्ध नगर था। और अन्तका ४३ वॉ पत्र नहीं है। प्रत्येक पत्रमें १३