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* अहम् .
वस्ततस्व-सपासक
विश्वतत्त्व-प्रकाशक
वापिक मूल्य ४)
इस किरणका मूल्य)
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नीतिविरोधप्वंसी लोकव्यवहारवर्तक सम्यक् । परमागमस्यबीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः।।
वप ७ किरण ५.६
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सम्पादक-जुगलकिशोर मुनार वीरमेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम) सरसावा जिला महारनपुर पौष-माघशुक्ल, वीरनिर्वाण संवत २४७१, विक्रम सं० २०.१
दिसम्बर १६५४ जनवरी १६४५
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अहत्म्मरण गगो यस्य न विद्यते कचिदपि प्रध्वस्त-संग-ग्रहादुअस्त्रादेः परिवर्जनान्न च वुधैर्दोषोऽपि सम्भाव्यते । तस्मात्साम्यमथास्मयोधनमतो जातः क्षयः कर्मणाम् आनन्दादि-गुणाश्रयस्तु नियतं सोऽहंन्सदा पातु नः ।।
--श्रीपानन्द्याचायः परिग्रह-पिशाचके नष्ट होजानम-ममत्वपरिणामक सर्वथा त्यागसे-जिनके आत्मा में कही भी गग (पर-पदाम प्रामक्तिका भाव) विद्यमान नही है, अस्त्र-शस्त्रादिक मर्वथा त्यागसे विवेकीजन जिनमें उपकी (दृमरीके प्रति शत्रुनाके भावी) सम्भावना भी नहीं कर सकते, गग और द्वेष दोनोंक अभावसे जिन्हें ममनाभाव तथा आत्मज्ञानकी प्राप्ति हुई है, ममताभाव तथा श्रात्मजानम जिनके कर्मोंका-ज्ञानावरण, दर्शना परगण मोहनीय और अन्तराय नामक धानिचतु'कका-क्षय हुआ है-श्रात्माम मदारे लिये सम्बन्ध छूटा है-और जो नियमसे आनन्दादि गुणों के आधारभूत हैं ये श्री अर्हत्परमात्मा मना हमारी रक्षा करी-अपने ग्रादर्श-द्वाग हमे ऐमी शिक्षा प्रदान कगे जिसमें हम राग-द्वेपका ननि-गृर्वक माम्यमाव और प्रान्मज्ञानका अवलम्बन लेकर कमों का नाश करने हए उस अात्मस्थिरताको-अात्माकी स्वाभाविक मिनिकी-पान करने में समर्थको म जी अनन्तदर्शन. अनन्त ज्ञान, अनन्तमुख श्रोग् अनन्तवीय-स्वरूप हैं।'