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कलकत्तामें मेरे ४६ दिन
वीरशासन-जयन्ती महोत्सवके जन्मदाता आदरणीय श्राप सिद्धहस्थ थे चाहे वह दरिद्र भिखारीसे लेकर बंगालका मुख्तार साहब पं० जुगल किशोरजीको प्राज्ञाय महोत्सव गवर्नर अथवा भारतका वायसराय ही क्यों न हो। कोई कार्यमे सक्रिय सहयोग देने के लिये मुझे कलकत्ता जाना काम ऐसा नहीं होता था जिसके सम्बन्धमे आपको ज्ञात न पडा था। मैं १४ सितम्बरको यहोम रवाना होकर देहली हो और जिसमे श्राप जानकारी न रखते हों। श्राप कार्यहोता हुश्रा १८ सितम्बरको कलकत्ता पहुचा और ६ नवम्बर माधनामे इतने व्यग्र और चिन्तित रहते थे कि कभी भी तक रहा। मेरे वहां पहुँचते ही अधिवेशन सम्बन्धी कार्य- मैंने थापको शांनिमे भोजन करते नही देम्बा। भाई तथा क्रम प्रारम्भ होगये। कलकत्ते अधिवेशनको सफलता और सहयोगी प्रायः मुझसे कहा करते है कि तुम प्रत्येक कार्य प्रभावनाके समाचार अनेक पत्रामे प्रकाशित होचुके हैं। बडी जल्दी करते हो और मालस्य नही करते हो पर अत: उस सम्बन्धमे कुछ भी लिखना पिष्टपंपण होगा, पर बाबूजीक निरन्तर अध्यवसायको देखकर मेरे भी छक्के सूटते अधिवेशनमे विशेषताय क्या थीं और वास्तविक सफल पा थे। जिस कार्यमे वे हाथ डालने थे उसे वार्यम् वा साथ
पा कारण था इस पर प्रकाश डाल देना अावश्यक येयम् शरीरम् वा पातयेयम्' वाली - कि. द्वारा चरितार्थ दिखता है।
करने थे। कभी २ उनको अस्वस्थ और अधि। चिनित ___ भारतके किसी न किमी प्रान्तम प्रतिवर्ष जैन व देख मै और बहिन सुशाहा कहते थकि बाप श्रथवा अधिवेशनादि होते रहते हैं. पर उनका महब केवल इतना अधिक श्रम न कर दम्म प्रापका साग तथा जैन कौम तक ही सीमित रहा है। इस अधिवेशन मानायक दानों ही प्रकारको होता है। श्री उत्ता भारत के सभी प्रान के विद्वानोंका भाग मनी प्रान्तोकी देते थे कि इस शरीरका और उपयोग ही क्या है? सभी धर्मावलम्बी बालाओं द्वारा मडाभिवादन, प्रबन्धमे राजनीति दृन्हिाम, धर्म, समान, योगराद विशेषकर बंगालियोंका हाथ तथा जैनमाहित्य प्रचारार्थ सभी : काके माहित्यमे श्रापका अधिकार पूर्ण मान है। अजनों द्वारा दान, नह विशेषताश्रीन वीरशासन महावको जनता पर प्रेमपूर्ण : भान है श्री. राज्य पर्मचारियो श्राप गधर्म सम्मेलनका वह रूप देदिया था जो भाउ ढाई का सम्मानपूर्ण परिचय है । इपीका परिणामक कलकत्ते हजार वर्ष पहिले भगवान महावीर की शामन ममाम दृष्टि. जैसे स्थानमे श्राजकी भगानक स्थिनिम इगना विशाल गोचर होता था, और जिसे देखनेक दिये हम आज भी अधिवेशन मभी प्रकार सफल होपका।। उत्सुक है । इन विशपनों औरधिवेशनकी सफलताका श्रापका जीवन बहुत ही मादा नया पवित्र है। समाजमुलाधार अपने आपको होस दन यात्रा दुवती पतली सेवाकी अमिट भावनाय और अदृट लग्न भाग रग में दहवाला वही अधंद व्यक्ति है, जिसे सर्वप्रथम दिनहाने समाई हुई है। श्राप बड़े ही उदार विचारों वाले तथा कार्यालयमे बैठा हुमा कार्यभाधना मग्न पाया था। पाप प्रेमाले म्वभाव वाले है। पर हां नामकी चाह और नेतागिरी आपका नाम बाबू छोटेलालजी मैंने पहिले भी सुना था पर की इच्छामे श्राप कोसों दूर हैं। श्राप बडे हा जागरूक और मुझे विश्वास नहीं होता था कि क्लबते। एक कुशल माथ ही कर्तव्य विमुख व्यक्तियोंके लिये कठोर शासक हैं। व्यापारी और सस्कारों मेट सेवाक्षेत्र में इस प्रकार मामा श्राप वास्तवम समाजके मूक सबक हैं। मैने धारके लांघ सकेगा।
जीवनका खूब अध्ययन किया और उससे बहुत कुछ सीग्या श्राप प्रातःकाल के ७ बजे गत्रिक २॥ वजनका इस है। श्राशा है अथ संवापती भाई भी श्रापके मानव साफप्रकार श्रमपूर्वक कार्यमें लगे रहते थे कि दयार दग ल्योपयोगी गुणोंका अनुकरण कर अपने पापको सच्चा
सेवक बना सकेंगे। अन्तम परमात्मासे प्रार्थना करता है कि कार्यशीन व्यकियाकी श्रावश्यकता है, वहां श्राप पूर्ण
पाप जैसे मुक संबक दीर्घजीवी हो और श्रापका यश. पहयोगी एक भी न था पर हा आपमे सबकी श्रद्धा, तथा
सौरभ पारिजातिवी प्रस्फुटित कुमुम कलिकाओं तुरुय पापके कार्य में सबकी सहानुभूति थी। जब भी आपको विगाद किमीपे सहयोगकी अावश्यकता पड़ता तो उसे प्राप्त करने में
प्रभुलाल 'प्रेमी' पोहरी (गवालियर)