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वीरसेवामन्दिरको सहायता
गत वर्षकी संयुक्तकिरणा नं. १०-११मे प्रकाशित बुलन्दशहर, (ला. विलायतरामके स्वर्गवासके महायताके बाद वीर सेवामन्दिर मरमावाकी, अनेकान्त
अवमापर निकाले हुए दानमेंमे) महायता और सदस्य फीसके अलावा जो दूसरी फुटकर १५१) श्री दि. जैन शाम्त्रसभा, नया मन्दिरधर्मपुरा, देहली महायता प्राप्त हुई है वह क्रमश: निम्न प्रकार है, और इसके
२८१) लिये दातार महोदय धन्यवादकं पात्र हैं:
नोट-इनके अलावा १००० एक हजार रु० बा. नन्दलालजी १०५) बा० छोटेलाल जी जैन नईम कलकत्ता (सफरवचं
जंन कलकनानं अपनी स्वर्गीया पत्री नागमाई ग्वमका की सहायतार्थ)
की स्मृतिम ग्रन्थ प्रकाशनार्थ प्रदान किये हैं, २०) ना.गंदीलाल विरंजीलाल जी संथलवाले जयपुर
जाश्रानेवाले हैं और जिनके लिये श्रापको दार्दिक (चि० प्रभुदयालक निवाहके उपलक्षमे)
सन्यवाद है। ५) ला. मागरमल विलायतराम जी जैन खुर्जा जि.
अधिष्ठाता वीग्मेवामन्दिर
अनेकान्तको सहायता गत मंयुक्त किरण १० ११ (मई-जून) में प्रकाशित टीकमचन्दकं विवाहकी खुशीमे) महायनाके बाद अनेकान्त' को जो महायना उसके हंडाफिम ला. मुक्टबिहारीलाल जैन मुरादाबाद (शादीके मरमावाम प्राप्त हुई है वह क्रमश निम्न प्रकार है, और
अवसरपर निकाले हुए दानमेंसे) इसके लिये दातार महोदय धन्यवाद के पात्र हैं। ५०) माह श्रेयांपप्रमादजी, बम्बई (स्वीकृत सहायताके १) जिनेन्द्र चन्दजी जैन यहियागज लखनऊ (निति
मध्य बाकी रह हुए) सस्थाओको फ्री भिजवाने के लिये पहले भेजी हई १०) बा लाल चन्दजी जैन एडवोकेट गेहतक (स्वीकृत२०) स०महायताके अलावा)
महायनाक मध्ये बाकी रहे हुए) ५) ला सर्वसुग्वजी गजमलजी कोटानिवासी (श्री ११)
अधिष्टाना वीरसवामन्दिर
वीरसेवा-मन्दिरके नये प्रकाशन
१ अनित्य-भावना-श्रीपअनन्दि आचार्य विचित ४ परममाधुमुग्वमुद्रा और ५ मसाधुवन्दन नामके पाँच अनित्य पचाशन. मुग्तार श्रीजुगलकिशोर कृन हिन्दी पद्या. प्रकरण है। पुस्तक पढते समय बडे ही सुन्दर पवित्र नुवाद और भावार्य-पहित, अतीव शिक्षाप्रद .) विचार उत्पन्न होते है और साथ ही प्राचार्योंका कितना ही
आचार्य प्रभाचन्द्रका नत्रार्थमूत्र-नया प्राप्त इनिहाम सामने बाजामा है। नित्यपाट करने योग्य है मू०॥) मंसित मूत्र, मुख्तार श्रीजुगल किशोरकी मानवाट व्याख्या अध्यात्म-कमल-माण्ड-यह पंचाध्यायी तथा और प्रस्तावना महित।
लाटीसं हिना आदि ग्रन्थोके कर्ता कविवर राजमालकी अपूर्व ३ मत्माधु-स्मरण-मंगलपाट-मुन्तार श्री जगल- रचना है। इसमे अभ्यामसमुद्रको कृजेमे बन्द किया गया किशोरकी अनेक प्राचीन पाको लेकर नई योजना, मुन्दा है। माथमे न्यायाचार्य पं. दरबारीलाल कोटिया और पं. हृदय ग्राही अनुवादादि महिनाइम श्रीवीर बर्द्धमान और परमानन्द शास्त्री का मुन्दर अनुवाद विस्तृत विषयमूची उन के बाद के जिनमनाचार्य पर्यन्न, २. महान प्राचार्योंके नथा मुग्न्तार श्री जुगल किशोर की महत्वपूर्ण प्रस्तावना है। अनेकों प्राचार्यों तथा विद्वानो द्वारा किये गये महावके पुण्य बड़ा ही उपयोगी ग्रन्थ है। (१५ दिनमें प्रकट होगा मू.॥) ग्मरणोंका संग्रह है और शुम्मे , नकमगलकामना,
प्रकाशन विभाग निम्यकी श्रामप्रार्थना, ३ माधुयेपनिदर्शक जिनम्नुनि
वीरमवान्दिर, सरसावा (महारनपुर)