________________
अनकान्त
[वर्ष ७
का शिष्य और धनगिरिको फग्गुमिक्तका उत्तराधिकारी है कि श्रापकी उम मदोष खोज का प्रबल विरोध हो प्रकट किया है। ऐसी स्थितिम कुन्दकुन्दाचार्य को भगवती रहा है, जिसका एक ज्वलन्त उदाहरण 'क्या नियुक्तिकार श्राराधनाके कर्ता शिवार्य मे बदका विद्वान सिद्ध करने भद्रबाहु और स्वामी समन्तभद्र एक हैं ?' इस शीर्षक का यह सब प्रयत्न ठीक नही कहा जा सकता।
का लेख+ है, जिसमें श्रापकी इस मान्यताका प्रबल इस तरह प्रो. मा. ने जिन आधारोंपर जो निष्कर्ष युक्तियोग खगडन किया गया है कि श्वे. नियुक्तिकार निकाले हैं वे सदोष जान पड़ते हैं, और इस लिये उन भद्रबाहु और श्राप्तमीमांसादिक कर्ता स्वामी समन्तभद्र निष्कर्षों की बुनियाद पर जैन इतिहासके एक विलुप्त एक हैं।
वीरसवामन्दिर, सम्मावा अध्यायकी इमारत खड़ी करते हुए शिवार्यके उत्तराधि- * 4 लेख वासवामन्दिर के विद्वान न्यायाचार्य पं. कारियोंकी जो ग्वोज प्रस्तुत की गई है वह कैसे निर्दोष दरबार लाल नी काटयाने लिया है और अनेकान्न क, गन हो सकती है। इसे पाठक स्वयं ममम सकते हैं। यही कारण छठ वर्षको मयु कि गण १०-११ मे प्रकट हुआ है।
सम्पादकीय १ नव वषोरम्भ___ इस किरण के साथ अनेकान्तका सातवों वर्ष प्रारम्भ होरहा है। गत वर्ष में अनेकान्तने अपने पाठकोंकी जो सेवा की और जैसे कुछ महखके लेखोद्वारा अनेक विषयोपर नवीन प्रकाश डाला और अनेक गुत्थियोंको मुलझानका यत्न किया उसे यहाँपर बतलाने की जरूरत नहीं-वह सब पाठकोपर प्रकट है । यहोपर मैं अपने मान्य लेखकों को धन्यवाद देनेके माथ उन सभी सजनोंका भी धन्यवाद करता है जिन्होंने अनेकान्तकी सेवायोग्मे प्रसन्न होकर उसे सहायता भेजी तथा भिजवाई है और अपनी ओर से दूसरों को अनेकान्त फ्री भिजवाया है। प्राशा है वे सब सजन इस वर्ष भी अनेकान्तपर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखेग।
पिछले वर्ष कागज की बड़ी कठिन समस्या रही और उपके कारण पिछली कुछ किरणो को देर भी निकालना पड़ा फिर भी मैटर तथा पृष्टीमे कमी नही होने दी गई टाइटलपेजोंके अलावा ३२ पृष्ट प्रति किरण का जो सकल्प किया गया था उसके अनुसार पूरे ३८४ पृष्ठ पढने को दिये गये हैं. विज्ञप्ति अक इम्पसे अलग रहा कागज की इस समस्या को हल करने मे ला. जुगल किशोर जी कागजी मालक फर्म धूमीमल धर्मदाम देहली ने बड़ी मदद की है और परिश्रम करके ३० रिमके करीब कागज कटरोल पर दिलाया है. इसके लिये श्रापको जितना धन्यवाद दिया जाय वह सब थोड़ा है। प्रतिवर्षकी भांनि बारहवीं किरणमें वर्ष भरकी विषय-सूची देनेका विचार था परन्तु सरकारी श्रार्डिनेमके कारण पृष्ट सख्या कम होजानेके कारण अधिक पृष्टोंकी तरह उसे नहीं दिया जा सका आगामी किसी किरण के साथ देनेका विचार है। अधिक पृष्टोंके दिये जानेके लिये प्रयान हो रहा है, वे भी श्राज्ञा प्राप्त होते ही जिसकी बहुत कुछ पाशा है पृष्ठ बढ़ा दिये जावेगे और इस किरणमे जो पृष्ट कम जारहे हैं उसकी कमीको भी पूरा कर दिया जावेगा। यदि ऐसा न होसका तो अनेकान्त का वार्षिक चन्दा कम कर दिया जाएगा और जो चन्दा अधिक आया हुआ होगा वह ग्राहकों को इच्छानुसार या नो अगले वर्षमें जमा कर लिया जायगा, या वापिस कर दिया जायगा अथवा उसके उपलक्षमे वीर पवामन्दिरके जो अभी नये प्रकाशन हुए हैं वे उन्हें दिये जा सकेंगे। २ अनेकान्तका विशेषाङ्क
वीरशासनाङ्क नाममे जो बड़ा विशेषाङ्क निकलने वाला था और जिसके लिये १० से अधिक विद्वानोंके लेख पाये हुए हैं वह विशेषाङ्क और कागजके इस्तेमाल तथा पृष्ठसंख्या नियमक दो पार्डिनेमोंके कारण रुका हुआ है। कोशिश होरही है. यदि न्यूज प्रिंट पेपरका ही कोटा मिल गया तो उसीपर उसको निकाल दिया जायगा । इस विषयमे ठीक सूचना बादको दी जा सकेगी। पाठकों और ग्राहकों को जो प्रतिक्षा-जन्य कष्ट उठाना पड़ा। वह मजबूरीके कारण क्षमाके योग्य है।