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जैनजातिका सूर्य अस्त!
उस दिन २१ सितम्बरको, जब मैं महारनपुर जा रहा पर प्रकाश डालूं. उनके स्वभाव परिणाम तथा लोकव्यवथा, मुझे दो कोने कटे पत्र एक साथ मिले-एक चिरंजीव हारको दिखलाऊँ अथवा उनके जीवनमे मिलने वाली कुजतरापका और दूसरा चिरजीव मुखवन्तरायका। दोनो शिक्षायोंका ही निदर्शन करूं? चाकरमें है कि क्या लिखू सुहृदर बाबू मूरजभान मी वकील के पुत्र, और दोनोंके पत्री और क्या न लिव ॥ में एक ही दु.समाचार-१६ सितम्बरको पूज्य पिताजीका फिर भी मैं अनेकान्तके पाठकों को इस समय सिर्फ स्वर्गवास हो गया !' मैं देखकर धकमे रह गया !! महा इतना ही बतला देना चाहता हूं कि प्राज जैन जातिके उम रनपुर गया ज़रूर, परन्नु चिरमाथीके इस वियोग-समाचार महान सूर्यका अम्न हो गया है :से चित्तको ऐमा धक्का लगा कि वह उढाम हो रहा और जो अन्धकारमं लड़ा, जिसने अन्धकारको परास्त किया भूउससे उस्माहके साथ कुछ करते धरते नही बना-जैप तैमे मडलपर अपनेप्रकाशकी किरणे फैलाई. भूले भटकोको मार्ग वहाक कामको निमटाकर चला आया । श्राकर पं० दिखलाया, मार्गके काटी तथा कंकर-पाथराको मुझाया, उन्हें दरबारीलान जीपर इस दुखद समाचारको प्रकट किया और दूरकर मार्गको सुधारने और उसपर चलनेकी प्रेरणा की। बाबुजीके गुणोकी कुछ चर्चा की। पं. परमानन्दजी जिमने लोकहितकी भावनाओं को लेकर जगह जगह नजीबाबाद गये हुए थे-उन्हे महारनपुरसे ही इस भ्रमण क्यिा, समाजकी दशाका निरीक्षण किया, उसकी दुर्घटनाको सूचनाका पत्र दे दिया था । रानको जल्दी ही खराबियोंको मालूम किया और उममें सुधारके बीज बोए । मोनके लिये लेटा और इस तरह चित्तको कुछ हलका करना जिसने मरणोन्मुग्व जैनसमाजकी नब्ज़-नाडीको टटोला, चाहा, तो बाबू साहवकी स्मृतियोने या घेरा-चित्रपटके उमके विकार-कारणोंका अनुभव किया उम्मकी नाडियों में ऊपर चित्रपट खुलने लगे, उनका तांतामा बँध गया, मै रक्तका संचार किया और उसे जीना मिम्बलाया। परेशान होगया और तीन बज गये । आखिर जीवनके
जिसने जनजागृतिको जन्म दिया. मोते हुभांको जगाया, अधिकांश भागका सम्बन्ध ठहरा, इस अर्मेमे न मालूम
कर्तव्यका बोध कराया और कर्नव्यके पालन में बाबजी-सम्बन्धी कितने चित्र हृदय-पटल पर अंकित हुए हैं, निरन्तर मावधान किया। कितने उनमें से हृदयभूमिमें दबे पड़े हैं. कितने विस्मृतिम
जिसके उदित होते ही जैन कमलवनामे हलचल मच घिस घिमर मिट गये अथवा धुंधलेपड़ गये हैं और
गई-मुद्रित पकजोंने निद्रा त्यागी, भानम्य छोड़ा, वे कितने अभी सजीव है, कुछ समझमे नही पाता ! चित्र
विकम्मित हो उठे, अविकमित कलियाँ विकासोन्मुग्व बन पटोंके आवागमनको रोकनेकी बहुत चेष्टा की परन्तु मब
गई, मर्वत्र सौरभ छा गया और उसमे आकर्षित होकर व्यर्थ हई। अन्तको निद्रादेवीने कुछ कृपा की और उसमे
प्रेमी भ्रमरगण मैंडगन तथा गुन-गुनाने लगे । थोडीपी मान्स्वना मिली।
जिमने लोकहदय भूमिपर पड़े और धूल में दबे जैन आज उमी दुःखद समाचारको अनेकान्त में प्रकट करने बीजीको अंकुरित किया, अकुरोंको ऊँचा उठाया-बढ़ाया, का मेरे सामने कर्तव्य पान पहा! मैं सोचता है-श्रदय उन्हें पल्लवित पुष्पित तथा फलित होने का अवसर दिया। बाबू सूरजभानजीके सम्बन्ध में क्या कहूं और क्या न कह? जिमने मुरझाएहुए निराशहृदयोंमे जीवनीशक्तिका सचार उनका शोक मनाऊँ या उनका यशोगान गाऊँ, उनके गुणोंका किया, मिथ्या भयको भगाया और रूदियोके बीहड़ जंगलमे कीर्तन करूं या उनके उपकारोंकी याद दिलाऊँ, उनके कुछ निकलकर निरापदस्थानको प्राप्त करने की ओर संकेत किया। संस्मरण जिखू या उनके जीवनका कोई अध्याय खोजकर जिममे नेज और प्रकाशको पाकर लोक-हदयोंमें रपर, उनके ज्ञान-श्रद्धानकी चर्चा करूँ या उनके आधार-विचार स्फूर्ति उत्पन दुई, जीवन ज्योति जगी, कुरीतियां मिटीं