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अनेकान्त
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हुआ जिसके लिये सभापतिजीने पत्रकारको नीति बतलाते सभापतिजीका महत्वपूर्ण अभिभाषण प्रादि हुए। रात्रिक हुए सबसे क्षमा याचना की और कहा कि हमारे अदरसे इस जल्समें दिनकी अपेक्षा ज्यादा उपस्थिति थी और सभी बुराईयां दूर होनी चाहिए । बा. कौशल प्रसादजीने वर्गके लोग ममानभावसे सम्मिलित थे । सभापतिजीने वीर-शामन जयन्ती उत्सवको व्यापक रूपसे मनाने के लिये जैनपुरातत्वपर बहुत ही अच्छा प्रकाश डाला । बतलाया स्थानीय समाजस प्रेरणा की। स्वामी कर्मानंदजीका बहुन कि बारडोली (मारवाड) में वीर सं० ८४ का एक प्राचीन हृदयग्राही सरल भाषामें वीरशासनके सम्बन्धमें भाषण लेख प्राप्त हुआ है जिससे पता चलता है कि उस समय
वीर सवतका व्यापक प्रचार हो ही चुका था। साथ में म. आपने बतलाया कि जब माहादीर पाये थे तब सब महावी का उपदेश भी विहार प्रान्तके बाहर मारवाड़ जैसे त्राहि त्राहि करते थे। मत-मतांतर काफी फैले हुए थे। दूरवर्ती प्रदेशीम विस्तृत रूपसे फैल चुका था। इस तरह भ. महावारने धर्मका प्रचार त्याग और उपदेशस किया सभापतिजीका पूरा ही भाषण बहुत ही महत्वपूर्ण हुआ। था। वृक्षकी तरह हमे अन्तरंग और बहिरङ्ग दोनो ही इसके बाद धन्यवादपूर्वक प्रथम दिनकी कार्रवाई समाप्त तरह की उन्नति करनी चाहिये । आज हम केवल बाहरम की गई। ही अपनी उमति करनी चाहते हैं, अन्तरंगसे नहीं। हम दूसरे दिन इधर महिला समाजकी एक बजे दिनसे दन्थ हिंसाको ज्यादा महत्व देते हैं भावहिंसाको नहीं । श्रीमती गिरनारी देवीजीकी सभाध्यक्षतामें लगातार चार आपने स्यादाद श्रादि विषयोंपर भी सुन्दर विवेचन किया। पांच घंटे अच्छे रूपमें सभा हुई, जिसमें अध्यक्षाजीके इसके बाद स्थानीय कवि प्रोमप्रकाशजी शर्माको चीरशासन अलावा श्रीमती पंडिता जयवन्ती देवी, श्री फूलवाई जयन्ती' के सम्बन्धमें बहुत ही भावपूर्ण ओजस्वी कविता (अध्यापिका जैन पाठशाला सरसावा) कुमारी शांति देवी, (जो इसी अंकमे अन्यत्र प्रकाशित है) हुई।
कुमारी पुष्पा, कौशल कुमारी, शीलादेवी, किरण लता, कुमारी ब्र. मनोहरलालजीने अपने महत्वपूर्ण व्याख्यानमें विमलावती (अध्यक्षाजीकी सुपुत्री)श्रीभगवतीदेवीसहारनपुर, चारित्रपर विशेष जोर दिया । वैद्य रामनाथजी शर्माने श्रीमती मौ० चमेलादेवी, श्रीमती मौ० इन्दुकुमारी हिन्दीरत्न बतलाया कि भ. महावीरकी अनेक विशेषतायोमे एक श्रादिने भाग लिया। इस सभामे दो कार्य विशेष हुए। विशेषता अहिसा है, जिसे उन्होंने अमली जीवन बनाया। एक रेशमके कपड़े पहिननेका त्याग और दूसरा, परिवारमेसे यद्यपि अहिंसा भ. महावीरके पहिले भी थी परन्तु उसका किसीकी मृत्यु हो जानेके उपरान्त ६ महीने तक मन्दिरजी पूर्णत विस्तार और व्यापकता उन्होंने की । अहिंसाको न जानेकी कुप्रथाका त्याग । अध्यक्षाजीने स्थानीय जैन आपने तलवार बतलाया और कहा कि श्राप यदि अहिमा कन्या पाठशालाके लिये ५१) और कुछ महिलाओंने १४) मानते हैं तो इसका म भी पहिनना चाहिये। अन्त में फुटकर प्रदान किये। इस तरह महिलासभा भी महत्वपूर्ण आपने वीरशासन-जयन्तीके उद्गमका सौभाग्य सरसावाके हुई। उधर ३ बजेसे ६ बजे तक बा. जयभगवानजी, होनेपर प्रसन्नता प्रकट की । कुमारी विमलावतीका हारमो- मुख्तार सा०, पनालालजी, ला. जुगल किशोरजी, ला. नियमपर सुन्दर संगीत हुश्रा । अन्तमें मा. पाधाजीका रुढामल जी सहारनपुर, पं. परमानंदजी और मैं इनकी हारमोनियमके साथ त्यागपर गायन होकर शाम के लिये एक मीटिंग हुई। उसमें परस्पर विचार-विनिमय द्वधा। सभाका शेष कार्य स्थगित कर दिया गया।
इस तरह वीरशामनजयन्तिीका यह दोनों दिनका उत्सव ॥ बजे रात्रिको पुन: बा. जयभगवानजीकी अध्य. बहुत आनंद और भगवान महावीरके शासनकी जयध्यनिक्षतामे श्राम जल्सा हुश्रा। जिसमें स्वामी कर्मानन्दजीका के साथ समाप्त हुआ। प्रभावशाली भाषण, मा० पाधाका उपदेशी गायन और वीरसेवामन्दिर, सरसावा दरबारीलाल जैन कोठिया