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किरण ११-१२]
वीरसेवामन्दिरमें वीर-शामन-जयन्तीकात्मक
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धनहीन दरिद्र नहीं होता, पर जिसके पास विद्यारन कि जो महानुभाव अर्थ-संग्रह करना चाहे, अथवा उसमें नही है. अथवा जो विद्या जैसे रनको पाकर उसके आलोक विशेष ममता है. उन्हे हम महान् स्याग और कठिन से पालोकित नही करता वही दरिद्र है ! नातिने तो यहाँ तपश्चर्या को परीचामे पृथक रहनेका प्रयत्न करना चाहिये। तक कहा है कि-"यस्यास्ति सद्मविमशेभाग्यं, कि यद्यपि प्राजकी धारा विपरीत बह रही है। पर धाराके तस्य शुष्करचपलाविनोदैः" । अर्थात् जिम भाग्यशाल को माथ बह जानेमे श्रानन्द और प्रारमोल्लाम नही। उत्तमोत्तम प्रन्योंका अनुशीलन करनेको मिल जाता है उसके धाराके वेगको पराजित कर अपनेको ऊंचा उठाने में ही लिये लघमीके शक विनोद किस कामके। सच तो यह है आनन्द है।
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वीर-सेवा-मन्दिरमें वीरशासन-जयन्तीका उत्सव
हम वर्ष बीरसंवामन्दिर सामावाम श्रावण-प्रनिपटा चंदजी मुख्तार, लाला उदयराम जिनेवादासजी, बाला और द्विनीया ता. २५-२६ जुलाई मन १६४५ दिन स्ढामलजी शामियानवाले, मुशी सुमतिप्रसादजी अमीन, बुधवार-बृहस्पतिवारको वीरशामन-जयन्तीका उग्सन बड़े ला० मिहरचन्दजी. ला. इंद्रसेनजी टिम्बर मरचेन्ट, ना. प्रानन्द और ममारोहके साथ मनाया गया । ता. २५के प्रान पदमप्रसादकी, ला. सुमनिप्रमादजी और गायक मा. प्रभातफेरी निकली और उसके बाढ झंडाभिवादन हुअा। पाषाके नाम उल्लेखनीय हैं। विशेष खुशीकी बात यह है मध्याह्न के समय गाजे बाजे के साथ जलम निकला । जलपके कि पूज्य न्यायाचार्य पं. गणेशप्रमादजी वीके अन्यतम बीच बीमे जलूमका प्रयोजन और जल्मेकी घोषणा एवं शिष्य ३. मनोहरलालजी न्यायतीर्थ भी महारनपुरसे वीरशासनका महत्व बतलाया जाना था। देहली अनाथालय मम्मिलित हुए थे। महिला-समाजम श्रीमती पंडिता की भजनमंडलीके पानेका वचन मिन जानेपर भी ठीक मकिपर जयवन्नी देवी, श्री. गिरनारादवी (ध. १० जा. जुगल. जब कि दूसरी मजनमहनीका प्रबन्ध नहीं हो सकता था, किशोरजी दहली). श्री. कुमारी विमनावती (मुपुत्री बा. निषेधामक पत्र प्राजानम लोगोमे उनके इस वचनभंगके जुगलक्शिारजी) और श्री. भगवनीदेवी महारनपुर भादि प्रति असन्तोष जरूर रहा। इस लिये जलूममे उतना पधारी थी। श्रानन्द नही आ पाया। फिर भी जल्मेका का कार्य दोनों मेंर मगलाचरण और मभाध्यक्ष के चुनावके बाद ही दिन और प्रथम रात्रिको बड़े अच्छे ढंगमे सम्पन हुआ। भापणादिका कार्य प्रारम हुमा । प्रथमन: स्थानीय जैन जनमेके मनोनीत सभापति थे जैन समाजके सुप्रभिद्ध कन्या पाठशालाकी चार बालकाप्रोमा मु दर गायन हुमा । श्रीमान बाबू जयभगवानजी वकील पानीपत।
इसके बाद प. जुगलकिशोरजी मुग्नार, प.परमेष्ठीदामजी, उत्सवमें स्थानीय भाईयोंके अतिरिक्त बाहरसे-दहली, न्यायतीर्थ. स्वामी कानदी, 3. मनोहरलालजी वैद्य पानीपत, मुलनान, मथुरा, महारनपुर, जगाधरी, अब्दुल्लापुर रामनाथजी बा. काशजप्रसादजी, बा. त्रिलोकचंदजीके
और नानौता आदि स्थानीये अनेक सज्जन पधारे थे। प्रभावक भाषण हुप । मुन्नार मा०ने अपना 'महावीर जिनमें बा. जयभगवानजी वकीन, ला. जुगलकिशोरगी संदेश' मुनाया और उसका भाव जनताको समझाया। कागजी (मालिक फर्म ला० धूमीमल धमंदास चावड़ी मुग्लार मा. जब यही है महावीर मंदेश' पद बोलने घेतो बाजार देहबी), बाबू पन्नालालजी अग्रवान, वाबू विमन- उधर महिलाय 'हा' क्या बब दिया उपदेश, पन्य यह प्रसादजी, पंडित परमेष्ठीदामजी न्यायतीर्थ सह सम्पादक महावीर संदेश' पद बोलती थी जो बड़ाही सुन्दर जान 'वीर', स्वामी कर्मानन्दजी, पंडित शंकरलालजी न्यायतीर्थ, पडताधा। पं. परमेष्टीदामजीने एक मालोचनामक अपना बाबू कौशलप्रसादजी, बाबू नेमीचंदजी वकील, बाबू रतन बकम्य दिया। उनके बकव्यमें लोगोंमें कुछ असन्तोष