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किरण ११-१२]
श्री धवलाका समय
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लगभग अपनी उत्तर भारतकी दिग्विजय के मिलसिलेम इम पगतत्वज डा. मोतीचन्द्र में मुझे मालूम हुअा है चित्रकुटपुरके रानाको हराकर अपने गज्यका विस्तार प्रयाग कि ईस्वी मन्की ७ वी शताब्दीकं उपरान्त के उल्लेखोमे तक किया था। उसके वंशज कृ तृतीयने मन ६४० श्रटुनीमम्हि' पाटके अर्थ श्राटमी तीम भी हो सकते हैं। मे फिरसे चित्रकुटका किला जीता। राष्ट्रकटीकी स्वयंकी किन्तु विक्रम संवत् ८३० (मन ७७३ ई.) में जगतुगदेव गजधानी अमोघवर्ष प्रथमके पूर्व मान्यग्वेट नही थी और के गज्यके दोनेकी बहुत कम संभावना है; क्योंकि ७७२ बहुत संभव है कि मान्यग्वेटमे बहुत उत्तर बग'प्रान्तके ई. के लगभग तो उनके ताऊ गोविन्द द्वितीयका शासन अचलपूर . अथवा एलापुर नामक स्थानोममे किमी एकमे प्रारम हो हुअा था और उनके राज्यमें घटने वाली घधनाओ ही हो। हम स्थान के समीप एलोग और अजन्ताकी प्रामद्ध के निये कमसे कम ४-५ वर्षका ममय चाहिये ही। गुफाये हैं। क्या आश्चर्य है कि स्वामी तथा वीरसेन जिनमेन अस्तु, यह ममय व मं०८३० के बाद ही होना चाहिये, अादिका स्थायी निवाम स्थान उपयुक्त दोनोमसे किसी एकके किन्तु वि०म०८४० मे पहिले पहिले । पार्वनीय गुह्यमन्दिगमे हो और वह स्थान उम ममय बाट अब यदि अटुनामांम्हका अर्थ ८३० लिया जाय तो ग्रामके नामसे प्रसिद्ध हो। इन ऐतिहासिक गुफाप्रीम कई इकाई के किमी अंक मभवतया ८ का सूचक शब्द पाटमे कई प्राचीन जैन गुफाएँ निश्चित रूसे हैं भी। और यह होना चाहिये और यदि हमके अर्थ ३८ हैं तो ८०० का स्थान उत्तरी तथा दक्षिणी भारतकी मन्धिके समीप ही मृचक शब्द होना चाहिये और मोभी प्रशस्तिकी गाथा ६ पडने है।
की पहली पंक्तिक अन्तिम पद 'एमु मंगरमो' से, जो कि यदि यह कहा जाय कि वीरमन म्वामीने अन्यत्र मर्वत्र अस्पष्ट और अशुद्ध है, प्राम होना चाहिये। शक मंवतका ही उपयोग किया है, विक्रमका नहीं, तो यह दूमरी जबरदस्त बाधा प्रोफेमर मादिबके मतमे यह है बान भी नहीं है-उन्होंने अन्यत्र न कहा शक मवत्का ही कि शक मंवत् ७३८ (मन८१६ ई.) मे दो वर्ष पूर्व जगउपयोग किया और न विक्रमका ही। धवलाके, वेदनाग्बडम तुगदेवका गज्य ममाप्त हो चुका था। शक संवत् ७३६ नो वीरनिर्वाणमे ६०५ वर्ष ५ माम पश्चात शक के हाने (मन ८.४१०) के प्रारम्भमे ही उनक' मृत्यु हो चुकी थी। और प्रचलिन शक मवत्मे यह मंग्व्या जोडकर वार निर्वाण और उनकी मृत्युकं उपगन्न ही उनका ६ वर्षका एकमात्र सवत् निकालनेका कथन है वह एक प्रसिद्ध महत्वपूर्ण अनु- बालक पत्र अमोघवर्ष प्रथम अपने चचानाद भाई कर्ककी अनिकी पुनरुक्तिमात्र है। उम परम यह कदा न कहा अभिभावकनामे मिहामनास्ट हो चुका था। जा सकता कि वीसिन स्वामी शक मंवतका हा उपयोग प्राफेमर साहिबका कहना है कि जगनग ८१४० में करते थे। अतः प्रशस्ति-उल्लिवित मंचतके विक्रम संवत मग न होगा वग्न धवला प्रशम्निमें वह उल्लेख दो जानेके होने में कोई बाधा नही है।
बाद ८१६ ई० में ही मर गया होगा। किन्तु उमने ८१४ई. यदि वीरमनस्वामीक चार पाच मो वर्ष याद हाने में गत्य न्याग कर पुत्र अमोघवर्षको मार दिया होगा, स्वय वाले 'अकलकरित' के लेग्वकको या त्रिलोकमारके टीका- धर्म ध्यानमें ग्त हो गया होगा। अब प्रश्न यह है कि कार माधवचन्द्र विद्यदेवका शक और विक्रम मबनके अमोघवर्षका जन्म ८० ई. में हुआ था। सन् ८१४ बीच कुछ भ्रम रहा है नो इसका यह अर्थ कदापि नही कि ३ Altekar - Rashtrakutas and their वीरसेन जैसे बहुविज्ञ और प्राचीनतर विद्वानको भी वही भ्रम Times p. 52 (F N.) रहे । उपर्युक्त दोनो विद्वानों और बाग्मनके बीचमे हने वाले ४ Ibid-p.69, and p 71 (F N.) पचामो विद्वानोमसे किमी और को नो यह भ्रम हुश्रा नहीं। ५ धवला टीका प्रस्तावना प्र.४०-४१ १ Altekar - Rashtrakutas and their ६ Ibid.-p 69 Times P. 66.
७ धवना टीका १, १, १, प्रस्तावना पृ. ४२ २ Ibid p. 48.
८ Ibid.-p. 69