________________
श्री धवलाका समय (ल-बा० ज्योतिप्रमाद जैन, M. A., LL B)
पटवडागम सिद्धान्तकी प्राचार्य वग्मेनस्वामि-विर- इनके अतिरिक्त-'अटनीमा दवा स्पष्ट सामान्य अर्थ अड़चिन 'धवला' टीकाका ममाप्तिकाल, उक्त ग्रन्थ के ही अन्नम तीम (३८) है । अब यदि यह वर्पसंख्या क्रिम अथवा दी हुई प्रशस्तिके श्राघारपर, धवलाके हिन्दी मग दक शक मबत्के अनुमार दी गई दी, जैसा कि प्रतान होता है, पं० हीरालालजीने कार्तिक शुक्ला १३ शक मवत् ७३८, नो माराम उपयुक्त मैकड़ा (शतका) का सूचक पद भी तदनुमार बुधवार ता०८ अक्तूबर मन् ८१६ ई० का प्रात: चाहिये, जाहन गाथाश्राम नही दाव पड़ता। गाथा ७ काल-जब कि सूर्य, बुध और गुरु तुलाशिम, गह और ८ मे जो ज्योति क-ग्रह मम्बन्धी सूचना है उनमें
और मंगल कुभगशिम, केतु और शुक्र मिहाशिम, शान, मगल, बुध और केतु कहा टिगाचर नदी हाने और शान धनुराशिम और चन्द्रमा मीनगशिम स्थित थ, चन्द्रमाको मिनि मा अस्पए है। और मान्यग्वेटम राप्रकट जगतुंगदेव गव्य त्याग चुक थे मामी वीर मेन प्राचार्य [जनमेनके गुरु थे और श्राचार्य तथा उनके पुत्र अमोघवर्ष गज्य कर रहे थे--निश्चित जिनमनने जपचवला टाकाको ममात मान्यग्वटक राष्ट्रकट
नरेश अमाघ वष प्रथमक शामनकालम शकमवत् ०५६ __जयधवला टीकाके हिन्दी मम्पादक प. महेन्द्रकुमार (मन ८३७ ई.) में की था। किन्तु इसी सनक ८ वी जी श्रादिने भी इमी समयको बिना किसी ऊहारोहके स्वा-हवा शताब्दियाम किमी बाद गय नामक गनाक दाने कार कर लिया है।
का कही कोई उल्लेख ना मिलना । माथ ही, गटकट वश प्रशस्तिकी विविक्षित गाथाएँ निम्नलिखित हैं:- म अमघवर्ष प्रथमसे पूर्व जगतग नामधारी गजा कबल अतीमम्हि सासिय विकमरायम्हि एसु मंगरमो। एक ही हुआ है और वह था अमोघवर्षका पिता गोविन्द पासे सुतेरसीए भाव-विलग्गे धवलपक्व ।।६ तृतीय नानुगदेव प्रभूतवर्ष। जगतुंगदेव-रज्जे रिम्हि कुम्हि राहणा कोणे। इस प्रकार इन गायाश्राम स्पष्ट सूचना नी मात्र इतनी सूरे तुलाए संते गुम्हि कुलविल्लए होते ७ मिनना है कि जगनुगदेवके गन्यकाल में विक्रम नामाङ्कन चावम्हि वणिवुत्त मिंधे सुम्मिमिवंदम्मि। संवत्के ३८ (या कुछ मी ३८) वपमें कार्तिक शुक्ला कनिममासे एमा टीकाहु समाणिआ धवला ॥ १३ के दिन, जब गहू कुभम था मर्य और गुरु नुलाम बोदणरायणरिंदे णरिदचूडामणिम्हि भजंत। तथा शुक्र निहशिम था, यह गका ममाप्त हुई। सिद्धतर्गथमत्थिय गुरुप्रसारण विगत्ता सा प्रोफसर होगालाल जीने इन गाथाओंका मंश धन करके
इन गाथाओंमे कुछ पाठ अशुद्ध है अतएव अर्थ भी अस्पष्ट अर्थको स्पष्ट करनेका प्रयत्न किया है । अर्थात् दुमरी अस्पष्ट है, यथा--प्रथम पंक्तिम "एमु मगरमो", दूसराम लाइनके 'पाम' शब्दको 'बामे' मावि गंगे' को 'भाणु 'पामे' और 'भावविलग्गे', तीसर्गमे 'रियाम्द', चोयाम विलग्ग' और पाचवी लाइनके गमि च दम्मि' को 'मंसि 'कुलविल्लए', पोचवीम 'वरणिवुत्ते' और 'णेमिचंदांम्म'। चंदम्मि' पढ़ा है। सो टीक ही है।
- - किन्तु प्रशस्नमें सट पाठ सामिय विक्कमगांम्ह होते १ पटम्बंडागम-घबलाटीका १, १, १, प्रस्तावना पृ०४४-४५ २ जयधवला टीका १, १, प्रस्तावना पृ० ७२
१ जयधवला १,१, प्रस्तावना पृ०७२ ३ धवला टीका १, १, १, प्रस्तावना पृ० ३५
२ धवला टीका १,१, १, प्रस्तावना पृ० ४३-४५