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अनेकान्त
वर्ष ७
मा अज्ञानी मानता है, उपसं वह कहता है कि जीव स्वभाव मुझमें है ऐसा जानता हुअा धर्मात्मा परसे अपना ॐडा ऊँडा उतर जाता है। किन्तु जीव कहां ऊँडा न.वि मानता हुअा अपना नाश नहीं होने देता, प्रात्मा उतरेगा? प्रामा तो शरीर-प्रमाण पाढे न'न हाथका में दृढ नाये रहा हुआ निग्य सहज ज्ञानका एक पुंजरूप अमूर्त तत्व बूटा पडा है। परवस्तु चाहे जैसा फिरे उमस वर्तता हुश्री स्वप स्थिर रहता है। प्रभो! तू तेरे गुणसे मैं सिंचित मात्र कृश नहीं होता है, इस तरह जो जानता पार पूर्ण भरा हो ? किन्तु तुझको तेरे स्वभाव की पिछान है और श्रद्धान करता है इसके एक तरफ शरीर कृश नही है उमम नेग गुण परसे मानकर अनादिसे भ्रमण होगा और दूसरी तरफ श्रात्माका अानंद बढ़ता जायगा। कर रहा हो. ने। धर्म मामें है, ते। स्वभाव नुमसे, जीवन में प्रथम श्रद्धान-ज्ञान किया हो तब तो अंत समयमे परमे नेरी नास्ति है, परके प्राधीन तेरा धर्म नही है. ऐसे दृढता रह सकती है। बिना भान दृढ़ता किपको करेंगे नहीं मान कर जो मृढ-अज्ञाना-एकान्तवादी परवम्नु मे -- प्रथम पिछान की हो तब तो अंतमें वह पाकर खडी पुण्यमे वा रागसे धर्मकी श्राशा रखता है वह भिखारी है, रहेगी। देहादि परवस्तु की कुछ भी अवस्था है। विन्त मेरा उपको अनेकान्तको पहिच न नहीं है।
वीर-शासन-पर्वका स्वागत-गान
(ले०-वैद्य श्रीमप्रकाश 'श्रायल)
भाज निमम नद्र मानव बन गया है विश्व-पड़ा। मुक पशुाक धिरसे कर रहा नित मोद-क्रीड़ा! मानवाक भी शरीरोंपर पड़ा हा ! टूट दानव । कण-भेदी हो रहा है चोर हाहाकारका व
तुम अहिमा-ज्ञानका मंसारमे संगीत गाओ ! वीर-शामन-जयन्तीके आज पावन पव आओ।
दासताकी श्रृंग्यलाएँ टूट जाए कट-कडा कर । विश्वको कुछ कह मके यह दोन भारत सर उठाकर ! ले अहिन्मा शस्त्र समता-प्रेमकी सेना सजाएँ ! युद्धकी इम आगमे भी शान्तिकी सरिता बहार ! जाग जाग भाव सोये वह मधुर बीणा बजाओ! वीर-शामन-जयन्तीक आज पावन पर्व आओ!
घोर है आतंक देखो, धगि तल सब उगमस्या ' अनिके प्रत्येक कणसे स्वार्थताकी गन्ध आती। उप-
मिचार-हिन्माका यहा माम्राज्य द्रश्या' लोभ-पापाचार-अत्याचार फैला विश्व-घाती ! वामन ही जनों के मानमोंमें छल-छ लागे । गृजता है भूग्बम मरते हओका आह-क्रन्दन । हाथ में प्याला सुगही ले सुराके गान गाएँ ' भेद-भावांका यहाँपर हो रहा है नग्न नर्तन !
वीरक मद ज्ञानका फिर यहाँपर नद बहाओ। दलित-पतितांसे अछतो का उठा उरस लगाओ!
वीर-शामन-जयन्तीके आज पावन व या प्रो. वीर-शामन-जयन्तीके आज पावन पर्व आया ! फट राक्षमनी यहापर कर रही है नृत्य भारी वीरके मद्वानकी छाएँ यहॉपर शुभ घटाएँ । म्वार्थ-वश जिमको नचाना काका यह मदारी । वृष्टि समता-भावको हा, चल पडे प्रेमिल हवा ! पा रही दुवृत्तियों जिससे दुखद ऊलाम भारी चीर के मन्देशको लेकर सदा-सम मास सावन ! हस्ति-भुक्त-कपित्थ-मम होती यहां घटनाएं मारी। आगए तुम, धन्य हम, स्वागत तुम्हारा पर्व पावन !
इम नगशा-निशा उनके पाशदीपालन्त अाओ! दो नया उत्माह हममें, वह अमर-गाथा सुनाओ! वीर-शान-जयन्तीके आज पावन पर्व आअं! वीर-शामन जयन्तीके आज पावन पर्व भाषा!
* यह 'स्वागतगान' वीरशामननयनीक उन्मवर गत ५जलाई कस्वा कधिने वीर मेवामन्दिरमे गाकर सुनाया।