________________
किरण ११-१२
भ० महावीर और भ० बुद्ध
१६५
और एक दिन णमो मिद्धस्म' कहकर गृह-त्याग कर दिया। आगे जाकर उन्होंने अपने उपदेशमे तपस्याको अनुपादेय
२ ज्ञानप्राप्ति-दानोंको ज्ञान प्राम है नाम भले ही कहा है। कहते हैंजुदा जुदा हो । कोई बोधि कहो, कोई केवलज्ञान कहो। हे भिक्षी ! प्रव्रज्या लेन बालेको दो मिरका सेवन ___ 'मज्झिम निकाय' के 'महामञ्चकसूत्त' से पता चलता न करना चाहिए । कामोपभोग एक सिग है । वह हीन, है, जैसा कि ऊपर कहा गया, भ. बुद्ध गृह-त्याग करक अनार्य, अनावद, ग्राम्य श्री अज्ञानजनमे-वत है। योगी श्रालार कालामके पास गये। उनके शिष्य बन कर देहदंडन दमग मिग है। वह भी दुवकारक, अनार्य, उनके मार्गकी उपासना की।
अनावह है।" फिर वद उद्दक रामपुत्रके पास गये। उनका शिप अर्थात् कामोपभोग श्रोर तपस्या दोनोको अनार्य श्रोर बन कर वहाँ ममाधि मीया। उनमे अलग होकर जैन अनावह बताया है। इम fun उन्हाने मध्यग मार्गका श्रमणोंकी तपस्याका सिद्धान्त ग्रहण किया। यह तास्या जब अनुगरण किया। इमलिए अष्टगिक मार्ग बताया । मध्यम काठन मालूम हुई तो उन्होने मभ्यम माग शुरू किया,
मार्ग शायद इम लिए कहा होगा कि न तो वह श्रालार उमीम ज्ञान प्राप्त करते चले।
कालाम और उहक गमपत्र जितना नीचा है, न जैनश्रमण ___ महावीरकी बात इसमें कुछ भिन्न है। यह किमीक
मार्ग नितना ऊँचा है। दोनोके बीचका गस्ता अपने लिए पाम गये नही। अपना मार्ग उन्होने प्रथममें मोच लिया
निश्चित कर लिया है । और उमे मन्यममार्गके नामसे था । उसी पर वह चलते रहे। श्रात्मामसे जो अावाज
घोषित किया। उठी उसका विकाम करने गये। उनी मार्गसे प्रात्मामद्धि 'चुल दुक्वग्नध' में तपम्याके प्रति कुछ कट गेष प्रकट
किया हैबोधि, केवल जो कुछ कहे, प्राप्त किया
एक दफा व गनगृहम गये हैं। वहा जैन श्रमण तप ३ तपस्या-भ० बुद्गने नपस्या शुरू की है । पर वीच
कर रहे हैं। उन्हें देख कर भ० बुद्व कहने लगे-- में वह शायद थक जाते हैं वह जैन श्रमणमे कहते हैं--
"दम तरह तप करके शर्गक क्यो कष्ट पहुंचा रहे है ?" 'हे अग्गिवेमन ! मैंने श्वामाश्वासको गकना शुरू किया जैन श्रमण-"तपम पूर्वजन्मके पाप नष्ट करके और पर सरम भयंकर वंदना दाने लगी। पेटमे भी रीमा ही कष्ट नये पाप न करके अगले जन्मम कर्मक्षय और सर्वदुःन्यौका होता रहा, शरीग्म दाद होने लगा, देह कृश होगया श्राग्वे नाश हो जाता है।" गहरी चली गई, और शरीरमौदर्य भी जाता रहा।' ।
भ० बुद- पूर्व जन्मम तुम थे कि नही इमका तुम्हें ___फिर कहते हैं "मुझे प्रतीत नहीं होता कि इम दुष्कर पता कर्ममे लोकोत्ताधर्मजान प्राप्त हो, इस लिये निर्वाण-प्रानि श्रमण-नहीं, पता नही है।" के लिए कोई दूनरा मार्ग खोजना चाहिए। इस दुर्बल बुढ--"जिसका नुम्हे पता नही, फिर उम जन्मका शरीरसे यह सुम्बग्गध्य नहीं होसकता. इस लिए शरीर-रक्षण पाप धोने के लिए तप करते हैं ऐमा नहीं माना जा सकना ? के लिए पर्यात खुगक श्रावश्यक है।"
अर्थात् तुम लोग पारधि जैम कूर कर्म वाले हो ऐमा "फिर मैंने स्वाना शुरू किया । अन्नग्रहणमे धीमेधीमे अर्थ नही हो सकता?" शक्ति पाने लगी मैं समाधिमुग्व अनुभव करने लगा।" संवाद तो बहुत लम्बा चला गया है पर यहो इतनी
इससे पता चलता है कि नपस्यासे जब बुद्ध थक जाते गंजाईश नहीं कि पूग पृग रख मकः । हैं, तो एक आसान और सुखसाध्य मध्यम मार्ग प्रति- इममें श्रमणोपर कटाक्ष, और नपका उपहाम दीखता पादित करते हैं। वह मध्यम मार्ग वास्तवमे देखा जाय है. माथ माथ गेपमे पूर्वजन्मका भी ग्बगडन हो गया है । ये
और ऐतिहासिक गवेपणासे कसा जाय तो श्रमणोका जयणा- बान शायद लोगोको ठीक न ऊँचे । धर्मका ही अंश है।
____ पूर्वजन्म-पुनर्जन्मके विषयम 'महापरिनिब्यान सूत' में तपस्यासे उन्हे तिरस्कार भी हो गया है। क्यों कि उन्होंने कहा है