________________
१६४
अनेकान्त
[वर्ष ७
चरित्र भी संस्कृत-प्राकृतमे लिये गये हैं।
के उपदेशसे मालूम होता है कि वह वैराग्य स्वयं प्रेरणा है। १.ग्रहत्याग
उपदेशका श्रीगणेश जो किया है वह श्रात्माकी भीतरी सबसे पहली बात है दोनांके गृहत्यागकी। बुद्ध के अावाजसे किया है। जैसा कि 'पायाराङ्ग सून' में कहा हैवैराग्यमे यह कारगा बनाया जाता है-गा, वृद्ध ओर के अहं आसी? के वा इयो चुओ ? इह पेधा मृतका दर्शन । उन्हे देख कर बुद्धको म्लानि श्राजानी है। भविस्सामि ? अत्थि मे आया उववाइए, नस्थि मे उसमेंसे जन्म, जग, व्याधि और मृत्यु के विचार उटते है। आया उववाइए। जं पुरण जाणेज्जा सइ-सम्मइयाए। अात्मा उद्विग्न हो उठता है। इसी उद्विग्नताने वैगम्य पैदा मैं कौन हूँ ? यहां कहासे आया हूँ? और यदाम कहा कर दिया। उमममे गृहत्याग की भावना उठी | भिम जाऊंगा ? श्रात्माका पुनर्जन्म है या ही है ? वह स्वबुद्धि निकाय' मे 'अग्यिरिएमनमुन' से यह पता चला है कि से समझ लेना चाहिए।" उनकी आत्मा विह्वल हो उटी, स्त्री और पुत्र परिवार को इस प्रकार सोचते सोचते उन्होने अपनी एक दिशा छोडना भी कुछ कष्ट देग्दा था, मायमे रहने को भी दिल पाली और मार्ग तय कर लिया । अपने वैराग्यकी बात नहीं चाहता था। इस लिए एक रातको माता पिता और मब पर प्रकट करदी, गृहत्यागका निर्णय भी सुनाया। पत्नी-पुत्रको संते हुए छाड कर वे जगलमे चले गये। . पर वे संसारी थे, कुटुम्ब-कबीला भी था। उन्हें कष्ट 'अस्यिपरिणमनसुन'म कहा है
कैसे पहुंचाया जाय ? समारीको संसार का भी कुछ कर्जा है, "मोब्बनेन ममन्नागतो पढमेन वयसा अकाम कानं
माता-पितादि मे भी हमारा कुछ फर्ज है । उसे अदा करना है। मातापितुन्नं अस्मुमुखानं रुदन्तानं कसमस्सु ओहारेत्वा
इस लिए, गर्भकी प्रतिणाकी बात कोई न भी माने कामायानि बत्थानि अच्छादेव अगारम्मा अनगारियं
तो भी माता पिताकी विह्वलताको देख उनके मृत्यु तक पबजि । मो एवं पब जती परिएसमानो येन श्रालारो
गृहत्याग स्थगित कर दिया। भीतरसे वैराग्य बढ़ता रहा। कालामा तेन उपसंकमि।"
"निवृत्तरागस्य गृहं तपोवनम् ' समझ कर राजमहलको
भी तपोवन बनाते रहे। "अरियपरियेसनसुत्त-मज्झिमनिकाय “योवन की प्रथम वयमे अनिच्छुक और ग्वाम इस कारण माता-पिताके स्वर्गवासके बाद भी बड़े श्रोसू भरे है ऐसे माता-पिताको छोड़ केश-मूछ मुडवा भाईने दो साल के लिए और श्राग्रह किया उसे भी मान कर, घर छोड अनगार प्रवजित हश्रा । इस तरह प्रवजित लिया। पत्नीको भी समझा लिया। और जब सभी सतुए होकर ......"अालारकालामके पास पहुँचा" ।
हो जाते हैं, या ऐमा कहें कि सबको यह प्रतीति हो जाती हो सकता है कि वैगम और प्रव्रज्याका यह तरीका है कि महावीरको वैराग्यमे वापस लौटाना असम्भव है तब किसीकोन ऊँचे । शायद यह समझ लिया जाय कि यह सबने उनका प्रस्ताव मंजूर रख लिया और गृइत्यागको उनकी मानसिक कमजोरी थी। उनक, मनमे भय और आज्ञा दे दी। संकोच था । अपने वेरापका प्रभाव उन पर जमा नहीं सके। महावीर मानो संसारकी प्रयोगशाला थी। जिनको जो
रातको यशोधराको छोड़ते समय उनकी मानसिक परि- जो उपाय आजमाना हो आजमाअो, प्रलोभन जो रखना हो स्थितिका वर्णन बद्ध ग्रन्थोमे जो दिया है इससे यह अनु- रखो, ताकत हो तो वापम भी लौटालो, वैराग्य मेरा कममान किया जा सकता है कि उस समय वह व्यग्र और जोर है तो जगलमे जाकर भी क्या कर सकुंगा ? सबल व्याकुल थे। यह भी कहा जा सकता है कि पत्नीको भी वैराग्यकी परीक्षा जगलम नही संसारमे साबित होती है। अज्ञात रखकर, रातको छोड़ कर चला जाना औदार्य और * यहाँ वैराग्य-दीक्षाका दो बार स्थगित किया जाना और क्षमता नहीं हो सकती। पर खैर, बुद्ध आखिर महात्मा हैं। फनी श्रादिकी कुछ बाते श्वेताम्बरीय श्रागमोकी दृष्टि से
महावीरके वैराग्यकी बात कुछ और है । उनको किसी सम्बन्ध रखती हैं, दिगम्बर आगमोकी दृष्टि उनसे बाहरी कारणसे बैराग्यका होना उल्लिखित नहीं, बल्कि उन भिन्न है।
--सम्पादक