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भ० महावीर और भ० बुद्ध
(ले०-श्री फतेहचन्द बेलानी)
यह नुलना कोई दार्शनिक या सैद्धान्तिक नहीं है और भ. महावीर और भ० बुद्धको जो विचार आए, और न इन महात्माश्रोके उपदेश और जीवन की गहरी छान-बान जो मार्ग मानवताके कल्यागमें वास्तविक ऊँचा बद्दी उन्होंने है। वैसी तुलना के लिए तो एक महाग्रन्थ लिखा जामकता समस्त ममारके लिए बताया । फिरभी उममे मम्प्रदायवाद है। यह तो एक नमूना है और एक दो बाते इसमे लिखी जो घुम गया है शायद उनके अनुयश्रीने उसे उनके हैं । परन्तु तुलनात्मक से इसका गहरा अभ्यास और नामपर गट लिया है। अवगाहन आवश्यक है।
नहीं तो भला महावीर ऐमा क्यों कहते कि मेरे मार्गमें सच्ची तुलना शुद्ध सात्विकभावसे सत्यनिष्ठामे शका करने वाले मिथ्यात्वी हैं या उनका सम्यक्त्व नष्ट निष्पक्षतया और संस्कारिता के ऊंचे दर्जेपर होनी जरूरी है। हो जाता है।
हममे ई शक नहीं कि भ० महावीर और भ. बुद्ध अथवा बुद्ध ऐमा उपदेश क्यों देते कि बुद्ध और बुद्ध भारन की बड़ी विभूतियाँ हैं। भारतीय संस्कृति के ये मर्जक मंघ को शरण लेनेवाले का ही कल्याण होसकता है।
और आत्मबोधक है तथा 'स्व' के भोगपर विश्वकल्याण के उन्दाने तो शायद ऐमा हा कदा होगा कि मुझे ऐमा मार्गदर्शक है, भारतका यह गौरव है और हम उनके प्रतीत होता है कि कल्यागाका मार्ग यह है तुम उसपर ऋणी है ।
चलो नी सही, न चला तामही । चला तब भी श्राशी दि दुनिया जब किमीके मतमे वानर अवस्था में थी तब है, न चलो नब भी श्राशीर्वाद है। भारतमे मानवताके शिखर जैसे मन्तोने संस्कृतका श्रादर्श पर आज स्वपक्षमे ही कल्याण और बाहर मिथ्यात्व कायम कर दिया था । दुनियाके मध्य भारत उस जमाने में की बाते उनके नामपर चढ़ गयी है और उन दोनांके स्थितप्रज्ञ साबित हो चुका था।
नामसे काफी दलयान्दया होगयी है। ऐसे महापुरुषोंके लिए भारतकी विभूतिकी समझ गौण ऐमा क्यों नही है कि दोनों महात्माग्री को एक जगद बनाकर उहे दम किमी सम्प्रदायके नायक और प्रणेता बना स्थापित करके भारतीय विभूति ममझ कर, भारतीयके नाते देते हैं, तब, मैं ममझता हूँ, कि हम उन्हें अपनी कोटिमे हम दोनों की एकमाय स्तुनि-पृजा करते रहे। नीचे गिरा देते हैं । इहना ही क्यो हम भारतीता को भी दोनों तरतमता होमकनी है। पर जनताके लिए और कलङ्क लगाते हैं। फिरतो ऐसे महात्मामि दोष देखने विश्वके लिए आत्मकल्याणका मार्ग ढूंढनेम जो कष्ट लगजाते और उनका नाम ले लेकर परस्पर लडा करते हैं। उन्होंने झेले हैं, जिस गहराईपर वे पहुंचे हैं, और जो यह भात्मिक और मानसिक क्षद्रता है, हम उमे और क्षुद्र श्रान्मभोग उन्होने दिया है वह हर इन्सान के लिए वंदनीय बनानेकी कोशिश करते हैं।
है, पूजनीय है। सम्प्रदायके नेताओंमें इष्टकी भक्तिका अंध अतिरेक भ. महावीर और भ. बुद्धके विषयमें एक दो बातें बढ़ जाता है तब आपसमें तानस्वीच होती है धीमेधीमे-दुराग्रह पेश करना चाहता हूँ। और यह देखना चाहता हूँ कि बन कर प्रसंग प्रसंगपर विद्वेष फैलता रहता है । परिणामतः उन दोनोम तारतम्य क्या था । वह भक्ति इष्टको कलंकित करने का कारण होजाती है। बुद्ध का चरित पटक ग्रन्यमि स्वमुखोच्चारित-मा भक्ति का अंध अतिरेक इस तरह इन्सानमें क्षुद्रता पैदा उपलब्ध है । 'ललित विस्तार में भी है । महावीरका चरित्र करता है और मनुष्यत्वको मिटाता है।
प्रागम ग्रन्थों में कहीं कही और कल्पसूत्र में है । स्वतंत्र