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किरण ११-१२]
इतिहास में भगवान महावीरका स्थान
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होते हुए ईरान चले गये और वहांमे अपने देशमे जाकर मुराद जीवनकी उम अवस्था थी जब मनुष्य अपनी उन्होंने अहिंसा और विश्वप्रेमका प्रचार शुरू कर दिया। समस्न इच्छाश्री, वामनाओं, पाचोकी विजय करके अपना प्रभु ईमाने अपने प्राचार-विचारके मूल तत्वों की शिक्षा स्वामा हो जाता है, जन्म मरणके सिलसिले को खतम करके भ्रमणोमे पाई थी। इस बानये भी सिद्ध है कि उन्होंने अक्षय सम्व और अमृतका मालिक होजाना है। अपने उपदंशामें जिन तीन विलक्षण सिद्धान्तो पर जोर ये उक्त सिद्धान्त फिलिस्तीनमे बमने वाली यहृदी दिया है वे देवतागधान यहूदी संस्कृतिमे सम्बन्ध नही जातिकी प्रचलित मान्यतायोंमें बिल्कुल विभिन्न थे, यहृदी रखते, वे तो भारतकी श्रमण सस्कृतिके ही मूल आधार हैं- लोग इनके प्रचार को नास्तिकता समझते थे और इन व है प्रामा और परमा माकी एक्ता, श्रामाका श्रमस्व, सिद्धान्तोक प्रचारको रोकने के लिये वे सदा प्रभु ईसाको श्रामाका दिव्यजीवन । ईसा सदा अपनको ईश्वरका बेटा कहा इंट पत्थरोप मारने को तरवार रहते थे। इन्ही सिद्धान्तोंक करने थे । जब श्रादमी उनमे पूछते कि ईश्वर वहां है प्रचारके कारण प्रभु ईमाको पकड कर उनके विरुद्ध अभिनो वह अपनी ओर सकेत करके कहते कि वह स्वयं ईश्वर योग नवाया गया और उन्हें मूलीको मजा मिली थी। का माक्षात् रूप है, जो उसे देखते और जानते हैं वे ईश्वर प्रभु इमाको अपने जिन प्राध्यामक प्राचार-विचारोंके को देखते और जानते हैं यूँ कि वह और ईश्वर दोनो कारण उमरभर अपने देशवामिलोस पीड़ा और यन्त्रण। एक है। वह अपने उपदेशामे पुनर्जन्म और अमर जीवन सहनी पड़ी, वही पीछ देशवामियोंी मतबुद्धि द्वारा क सिद्धान्तों पर भी काफी प्रकाश डाला करते थे। वह अपनाये जाकर और देश की पुरानी हदी संस्कृतिकी अनेक कहा करते थे कि यह मेरा पहिला जन्म नही है, मैं अब मान्यनाओं और प्रयाग्राम मिलकर ईसाई धर्मक रूपमे प्रकट पहिले भी मौजूद था- हजरत अब्राहमके समयमें भी हुए । बाम्नवम ईमाईधर्म श्रमसंस्कृतका ही यह दी मौजद था । जो जीवन की अमरता और पुनर्जन्ममें यकीन मकरण है। करगा वह कभी नही मरेगा। बिना पुनर्जन्म सिद्धान्तको भारत और जेन-संस्कृतिमाने दिव्य साम्राज्यकी भी प्राप्ति नही हो सकती । दिव्य
जहाँ तक भारतका सवाल है, उसके जीवन पर नो साम्राज्य (Kingdon ot heaven) में उनकी जैन-संस्कृनिने बहुत हा गहरा प्रभाव डाला है. जैसा कि १ प० सुन्दर लाल-हजग्न ईमा यार टनाइ धर्म । १६२
लोकमान्य तिलकका मत है-इमक अहिंसा नाबने तो २ Bible- St. Jolin
भारतीय रहन महन पर एक अमिट छाप लगाई है। पूर्व 5-18
काजमं यज्ञों के लिये जो अपग्य पशुओं का बलि होती थी 8-19.
वह जैन अहिपाक प्रचारम ही बन्द हई है । इस धर्मने . 10-30 ("l and my father are one")
यहांके ग्वान-पान में भी बहुत बड़ा सुधार किया है। भारतकी ५ Bible- St John 8-56-59
जो जो जातिया इसके प्रभावमें पाई मभी मामाहारको छोर (Verily, verily, I say unto you, be
कर शाक-भोजी होती पत्नी गई। इस तम्वन भारतके fore Abraham was 'I am)
फौजदारी कानुनके दण्डविधानको भी काफी नरम बनाया ६. Bible- St. John. 10-25
है। इससे सजायोकी अमानुपिक मनी और बेरहमीमें "I am the resurrection and the life, बात की हई है। इस धर्मक कारया दण्डविध नकी he that believeth in me though, he
जगह प्रायश्चिसविधानको विशेष स्थान मिला है। यह were dead, yet shall he live" ७. Bible- St. John 3-3
१५० मुदग्लाल-हजरत ईमा और माइधर्म पृ०१:३-१४० "Verily verily I say into you.except लोकमान्यनिलक-१६०४ में जेन कान्फरममे दिया a man be burn again, he cannot sec हुया व्याख्यान । the Kingdom of God"
३ श्राजा -मायकालीन भारतीय मम्कान १०३४