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अनेकान्त
[ वर्ष ७
बहुत फैली हुई थी।
की थी यहां यह भी सिद्ध है कि यूनानी बादशाह सिकन्दर मध्यकालीन युगमे भी यह धर्म राजपूतानेके राठौर, महानके साथ भारतम जाने वाले जैन ऋषि कल्याणके परभार, चौहान, गुजरात और दक्षिाके गग, कदम्ब, समान सैकड़ों जैनश्रमण समय समय पर उक्त देशोंमे राष्ट्रकूट, चलुक्य, कलचूरि और होयमल आदि राजवशों जाकर अपने धर्मका प्रचार करते रहे हैं और उन देशोमें का राजधर्म रहा है, गुप्त, श्रान्ध्र और विजयनगर साम्राज्य अपने मठ बनाकर रहते रहे हैं। जैन साहित्यमे भी कालमें भी इस धर्मको राज्यशासकोकी ओरसे सदा सम्मान विदित है कि मौर्यसम्राट अशोकके पोते सम्राट् सनातने मिलता रहा है । यह इन्हींकी मंरक्षता और प्रोत्साहनका ईमाकी तीसरी सदीमे बहुतमे जैनश्रमणोको जैनधर्मफल है कि जैनधर्म मध्ययुगमे श्रवणबेलगोल और कारकल प्रचारार्थ अनार्य देशों में भिजवाया था। की विशालकाय गोम्मटेश्वरकी मूर्तियों और श्राबू पर्वतके जे हिना मन्दिर, चित्तौड़गढ़ के जैनकीर्तिस्तम्भ जैसे लोक- कितने ही विद्वानोका मत है कि प्रभु ईसाने इन्ही प्रसिद्ध स्मारकको पैदा कर सका है और ममन्तभद्र, पिद्ध- अमगार जोबन वदी मया मिलिस्तीन धन्दा सेन दिवाकर, मिद्धमैन गणि, पूज्यपाद-देवनन्दी, अकलक
अपने मठ बना कर रहते थे. अध्या'मविद्याके रहस्यको देव, विद्यानन्दी, वीरसेन, जिनमन, मोनदेव, माणिक्यनन्दि
पाया था। और इन्हींके आदर्श पर चल कर उसने अपने प्रभाचन्द्र, हेमचन्द्र, हरिभद्रमूरि, नमिबन्द्र मि. चक्रवर्ति
जीवनकी शुद्धिअर्थ श्राम-विश्वास, विश्वप्रेम, जीव-दया, आदि रचित अनेक माहिग्य और दर्शनशास्त्रके अमूल्य
मार्दवक्षमा, संयम, अपरिग्रह, प्रायश्चिन, ममता श्रादि धर्मो रनोंको जन्म देसका है।
की माधना की थी । इसप भी धागे बढ़ कर अनेक प्रामाजैनधर्म और बाहिरके देश
णिक युक्तियोके आधार पर अब विद्वानीका यह निश्चय
होता जा रहा है कि ईमा जब १३ मालके हुए और घरजैनधर्मको न केवल भारत में, बल्कि भारतले बाहिरके
वालोन उनकी शादीकी सलाह करना शुरू की, तो वह घर देशोंस भी सम्पर्क रखने, वहा पर सन्मान पान और वहां
छोड़ कर कुछ सौदागरोंके माथ सिन्धके रास्ते हिन्दुस्तानमे के संस्कृति-प्रवाहको प्रभावित करने का सदा गौरव प्राप्त
चले पाये, वह जन्मम ही बड़े विचारक और सत्यके खोजी रहा। महावंश' नामक बौद्ध ग्रन्थमे पाबित है कि ५३७
थे और दुनियाके भोग-विलासोंसे उदासीन थे। यहाँ ईस्वी पूर्वमे सिंहलद्वीपक राजाने अपनी राजधानो अनरुद्ध
श्राकर वे बहुत दिनों तक जैनश्रमणोंके साथ रहे, बौद्ध पुरमें जैनमन्दिर और जैनमठ बनवाये थे, जो ४०० साल
भिक्षुओंके माथ भी रहते रहे, फिर वे नेपाल और हिमालय तक कायम रहे । इतना ही नहीं भगवान महावीरके समय से लेकर ईसाकी पहिली सदी तक मध्य एशिया और लघु १ (अ) Dr. B. C. Law - Historical एशियाके अफगानिस्तान, ईरान, ईराक, फिलिस्तीन,
Gleanings. p. 12. सीरिया श्रादि देशोंके माथ अथवा मध्यसागरसे निकटवर्नि
(आ) पं०मुन्दरलाल-विश्ववाणी अप्रैल १६४२p.४६४ यूनान, मित्र, ईथोपिया ( Ethopa ) और एबा
(3) Sir William James-Asiatic सीनिया श्रादि देशोंक साथ जैन श्रमणोका सम्पर्क बरावर
Researches vol III to 6 बना रहा है। यूनानी लेखकोंके कथनसे जहां यह सिद्ध है
__ (ई) Megasthenes-Ancirent India कि पायथेगोरम (Pythagoras) पैरहो (Pyrrho),
p. 104. डायजिनेस ( Drogenes) जैसे यूनाना तत्त्व
(उ) बा० कामताप्रमाद-दिगम्बरख और दिगम्बर वेत्ताओंने भारतमे पाकर जैनश्रमणोंप शिक्षा-दीक्षा ग्रहण मुनि पृ० १११-११३, २४३, , Prof. Buhler, An Indian Sect of the २ श्री हेमचन्द्राचार्य कृत पर्गिशष्ट पर्व-लोक ६६-१०२ Jainas p. 37.
३ पं० सुन्दरलाल-दजरत ईमा और ईसाई धर्म पृ० २२