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अनेकान्त
[ वर्षे ७
साथ अपने देश कालका भी सुधार करता रहे । वास्तवमें व्यापक और ममन्वयकारक थे, उनके सिद्धान्त ऐसे प्राशा. लोकका सुधार अपना ही सुधार है। और परकी सेवा पूर्ण उत्साहवर्धक और शान्तिदायक थे कि वह अपने अपनी ही सेवा है। संपारमें जीवको जितनी जितनी मात्रा जीवनकाल में ही प्रहन्त सर्वज्ञ, तीर्थकर आदि नामोंसे में स्वतन्त्रता, सुविधा, सहायता और नेक सुझाव मिलते प्रसिद्ध हो चले थे । केवलज्ञानप्राप्तिके पीछे वह भारतके चले जाते हैं, उसका जीवन उतना ही विकसित होता चला पूर्व, पश्चिम, उत्तर, मध्य और दक्षिणके देशोमें जहां कहीं जाता है। इस लिये मनुष्य का मबसे बड़ा धर्म यह है कि भी गये, सभी राजा और रंक, पतित और प्रतिष्ठित, वह सब जीवोंको अपने समान समझे और अपने समान ब्राह्मण और क्षत्रिय, वैश्य और शूद, पुरुष और स्त्रीने ही उनके साथ मैत्रीका व्यवहार करे । जो जीव दुःख। और उनका खूब स्वागत किया, मभीने उनके उपदेशों को भयभीत है. पराधीन और असहाय हैं उना साथ दया अपनाया और सभी सनके मार्गके अनुयायी बने । का व्यवहार करे। जो अपने गुणों की अपेक्षा बड़े हैं उन इनमें वैशालीके राजा चेटक अङ्गदेशके राजा कुणिक, के प्रति श्रद्धा और प्रमोदका वर्ताव करे । जो जीव विपरीत- कलिलाके राजा जितशत्र, वरसके राजा शतानीक, सिन्धुबुद्धि वा दुर्व्यवहारी है, उनसे भी क्षुभित होकर हिंसाका मौवीरके राजा उदयन, मगधके मम्राट श्रेणिक बिम्बमार, व्यवहार न करें, बल्कि उन्हे रोग और विकारग्रस्त ममम । दक्षिण हमांगद के राजा जीवंभर विशेष उल्लेखनीय हैं। कर उनके साथ माध्यस्थ्यवृत्तिमे रहकर चिकित्सकके समान इनके अतिरिक्त सम्राट श्रेणिकके अभयकुमार, वारिषेण बर्ताव करे।
भादि २३ राजकुमार और नन्दा, नन्दमती आदि १३ एकान्तवाद और अनेकान्तवाद
रानियाँ तथा उपरोक्त राजाओंमेंसे उदयन और जीवन्धर
तो उनके समान ही जिनदीक्षा ले अनश्रमण बन गये । विचारकोंके हठामष्ठ, पक्षपात और एकान्त-पद्धतिके
इनके अलावा वैदिक वाङमयके पारंगत विद्वान इन्द्रभूति, कारण लोगों में जो अहकार सकीणता, मनोमालिन्य, कजह
भग्निभूति, वायुभूति और स्कन्दक जैसे अपनी सैकडोंकी पलेश बढ़ रहे थे। उन्होंने भगवान महावीरके ध्यानको
शिध्यमण्डली महित तथा शालिमद्र, धन्यकुमार, प्रीतंकर विशेषरूपसे प्राकर्षित किया था । भगवान ने इस एकान्त
मादि मगधके धनकुबेर, विद्यच्चर, प्रजन जैसे डाकू और पद्धतिको ही ज्ञान अवरोध, मानसिक संकीर्णता, हार्दिक
चरखककौशिक जैसे महाघातक भी उनके द्वारा दीक्षित हो द्वेष और मौखिक वितण्डोका कारण ठहराकर इसकी कठोर
जैनमुनि हो गये । सस समय उनकी मान्यता इतनी बड़ी समालोचना की थी और बतलाया था कि सत्य, जिसे
चही थी कि वह समीके लिये एक अनुपम प्रादर्श, धर्म जाननेकी सबमे जिज्ञासा बनी है, जिसके सम्यकज्ञानसे
अवतार हो गये थे। सभीके लिये परमशान्ति, परमज्ञान, मुक्तिकी सिद्धि होती है, बहुत ही गहन और गम्भीर है,
परमानन्द चौर विश्वकल्याणके प्रतीक बन गये थे । उस वह भनेक अपेक्षाओंका पुरज है, अनेक विरोधोंका संगम ..
ममानेके लोग उनके आदर्श जीवनको ही दूसरे श्रमण वह भीतर और बाहिर सब ओर फैला हुधा है, वह अनादि
भईन्तोंकी पूर्णता और सर्वज्ञता जौचनेके लिये मापदया और अनंत है, वह हमारी सारी बौद्धिक मान्यताओं और
की तरह काम में लाते थे। विधिनिषेधरूप सारे शब्द-वाक्योंसे बहुत उपर है । वह
१ (अ) बा० कामताप्रसाद-भगवान महावीर और महाअनेकान्तमय है, इस लिये उसके अध्ययनमें हमें बहुत ही
त्मा बुद्ध-पृ०६५-६६ उदार होना चाहिये और तत्सम्बन्धी सभी विचारोंको
(आ)पं. कल्याणविजयजी-श्रमण भगवान महावीरसममने और अपनानेकी कोशिश करनी चाहिये ।
तीसरा परिच्छेद भगवानके प्रति लोगोंकी श्रद्धा
२ (अ) Dr. B. C.Law-Historical glea
___nings p 78. इस तरह महावीरका जीवन इतना तपस्वी त्यागपूर्ण, (आ) Buhler-Indian Sict of the दयामय, सरल और पवित्र था, उनके विचार इतने उदार, Jainas p. 132.