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साहित्य-परिचय और समालोचन
१ तीनपुष्प-ले०, पं. कैलाशचन्द्रजी शास्त्री भादवा ३ 'सौरभ-लेखक, कवि श्री हरिप्रसाद शर्मा (जयपुर)। प्रकाशक, लालताकुमारी मत्रिणी श्रीशारदा 'अविकसिन' । प्रकाशक, दी स्टूडेण्टम श्रोन हाउस सहेली संघ, जयपुर । पृष्ठ संख्या ३४० । मूल्य २) रुपया । पबलिशर्स एण्ड स्टेशनर्स, सहारनपुर । पृष्ट १०४, मू० १॥)।
प्रस्तुत पुस्तकमे तीन मामाजिक नाटकोका संकलन किया कवि 'अविकसित' जी जम्बूविद्यालय जैन हाई स्कूल गया है। वृद्धविवाह, विधवा और उत्सग । इस पुस्तकके सहारनपुरमे हिन्दी के प्रधान अध्यापक हैं और उन्होने अपनी लिखनेका उद्देश्य स्त्री णत्री द्वारा सामाजिक रूढियोंका यह रचना मौरभ-प्रेमी रायमाहब ला० प्रद्युम्नकुमारजी जैन निरसन करना है, साथ ही जनतामे कुरीतियोंके प्रति अरुचि रईस सहारनपुरको समर्पित की है, जिनकी प्रेरणाको पाकर और सुरीतियोके प्रति प्रेम उत्पन्न करना है। लेखक महोदय ही वे अपने काव्य-कुसुमोके इस सौरभमय संग्रहको प्रकाशित अपने उद्देश्यके अनुमार उक्तनाटकांके लिखनेमे बहुत कुछ करने में प्रवृत्त हुए हैं। इसमे विभिन्न विषयोपर ३७ सफल हुए है। यद्यपि भापाकी दृष्टि से कहीं २ पर कुछ वाक्य- कविताएँ हैं। साथमे कनखल के श्री किशोरीदासजी बागपेयी विन्यास अथवा शब्द समुचित रूपमे नही हुश्रा, फिर भी की मनोरंजक 'भूमिका' भी । कविताएँ प्रायः सब सुन्दर, पुस्तक उपादेय है। और इससे राजपूतानेमे फैली हुई सरल, सुबोध, रुचिकर तथा रस-भरी हैं, हृदयको स्पर्श कुरीतियोंको दूर करनेमें जरूर सहायता मिलेगी। इसके लिये करती है और जनताके माथ सम्पर्कको लिये हुए हैं। अतः लेखक महाशय धन्यवादके पात्र हैं।
ग्राह्य है। यो छापने और गूंथनेकी कुछ भूलें मारूर है: २ भगवान महावीर का अचेलकधर्म-लेखक, पं. परन्तु भावोके सौरभके मामने सब नगण्य है। इस विषयमे कैलाशचंदजी शास्त्री, प्रधानाध्यापक स्यादाद महाविद्यालय भूमिकाको निम्न पंक्तियों पाठकोंका अच्छा पथ-प्रदर्शन भदैनीघाट, बनारस । प्रकाशक, मंत्री प्रकाशन विभाग भा० करती हैं और उनमें सांकेतिक रूपसे पुस्तककी कितनी ही दि.जैनसंघ चौरासी मथुरा । पृष्ठ ३६, मूल्य पाच पाने। अालोचना तथा गुण-ग्रहण-विषयक प्रेरणा आजाती है
यह वही निबन्ध है जो वीरशासन-महोत्सवकै अवसर "सौरभ जहाँ है, वहाँ कुछ पुरानी सूखी पत्तिया भी पर कलकत्ताम पढ़ा गया था। निबन्ध बहुत ही परिश्रमके हो सकती हैं, कुछ और भी ऐसी ही चीजे । यह स्वाभाविक साथ गवेषणापूर्ण लिखा गया है। भाषा सौम्य और सरल है। है। इनका न होना ही अनैसर्गिक है। आप सौरभ ग्रहण
इसमें विद्वान् लेखकने प्राचीन श्वेता. साहित्यके अनेक करें, जहां मिल जाय। दूसरी वैसी चीजोंकी ओर ध्यान ही अन्योद्धरणों द्वारा यह प्रमाणित किया है कि प्रारंभमे श्वे- क्यों दे ? अच्छे रस-ग्राहीका, रस लेते समय, इधर-उधर ताम्बरपरमाराम भी भ. महावीरका अचेलक धर्म ही था ध्यान जायगा ही क्यों ? सहारनपुरी-मीठे गन्नेमे क्या गाँठे
और पीछे पीछे अचेलकताके स्थानमें सचेनता बौद्धभिक्षुओं नहीं होती है? नीचे जड़ और ऊपर नीरस पत्ते क्या उसमें की तरह पाई है। वस्त्र और पात्रोकी क्रमिक बढोतरी पर कछ बट्टा लगा देते हैं? सौरभ-पूर्ण कस्तूरी काली और भी प्रकाश डाला गया है। साथ ही, दिगम्बर साहित्यसे यह सुवर्ण मौरभ-हीन ! तो, क्या इन दोनोंका महत्व कुछ घर मिद्ध किया है कि उसमें सर्वत्र भ० महावीरके अचेलक धर्म गया ? ऐमी किसकी कविता है, जिसमें कोई पख न निकाली का ही प्रतिपादन और समर्थन है। इस तरह यह पूरा ही जा सके ? यह भी एक मानवकृति है। निबन्ध बहुत ही प्रामाणिकताके साथ लिखा गया है, और आशा है इस सौरभके फूटनेसे 'अविकसित' जी अब इस लिये महत्वपूर्ण एवं प्रत्येकके लिये पठनीय है। विकसित हो उठेंगे। -परमानन्द शास्त्री
-सम्पादक 'अनेकान्त'