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किरण ११-१२]
सम्पादकीय
सन्देह नहीं कि श्रीमान्के अनवकाशके कारण ही ऐशा होगा और सभीक सहयोगसे यह पत्र ऊँचा उठकर लोकहितकी (विलम्बके साथ प्रकाशन) होना होगा तो भी 'अनेकान्त' साधना-द्वारा अपने ध्येयको पूरा करने में समर्थ हो सकेगा। प्रेमियोके लिये यह अवश्य बेचैनीका कारण है । श्राशा है यहार में उन सजनोका खामतौरसे अाभार प्रकट करता भविष्यमे श्राप अनेकान्त-प्रेमियोकी बेचैनीपर भी ध्यान है और उन्हें धन्यवाद देता हूं जिन्होंने इस वर्ष समय समय रक्वेगे।' अस्तु ।
पर अनेकान्तको आर्थिक सहायता भेजी तथा भिजवाई है जिन दो चार ग्राहकाने रोष व्यक्त किया वह मुझे बुग और जिनके नाम अनेकान्तमे प्रकट होते रहे हैं। उनमें सर नही लगा; क्योंकि मैंने देखा, उसमें उनका कोई कसूर सेठ हकमचंदजी इन्दौर, साह श्रेयासप्रसादजी बम्बई, बाबू नही-अाखिर मामिक पत्रको समय पर निकलान ही लालचन्द जी एडवोकेट रोहतक, ला. फेरूमल चनरसेनजी चाहिये । परन्तु मैं मजबूर था-परिस्थितियों के कारण पराधीन सर्धना (मेरठ), ला० रामसुखी काशलीवाल इंदौर, बा. था। फिर भी मैंने इस बातपर अधिक ध्यान रखा कि फूलचन्दजी सेठी नागपर और ला. उदयराम जिनेश्वरदास थोड़े में ही पाठकोको अधिक मैटर पढ़ने को मिले और वह जी महारनपुर के नाम विशेष उल्लेखनीय है। मब अधिक उपयोगी तथा स्थायी महत्वका हो, जिससे वे
इस वर्ष के सम्पादन-कार्यमें मुझमे जो कोई भूले हुई अधिक टोटेमें न रहे। इसके लिये अधिक चार्ज देकर हो अथवा सम्पादकीय कर्तव्यके अनुरोधवश किये गये मेरे प्राय: सभी लेखोंमें बारीक टाइपका प्रयोग कराया गया और किसी कार्यव्यवहारसे, टीका-टिप्पणीम या स्वतंत्र लेखसे लेग्योंके स्टेडर्डको सदा ही ऊचा रखनेका यत्न किया गया। किसी भाईको कल कष्ट पहचा हो तो उसके लिये में हृदय उसीका फल है कि यह पत्र अाज भी लोकमें श्रादरका पात्र से क्षमा प्रार्थी हैं। क्या कि मेग लक्ष्य जान बूझकर किसी बना हुश्रा है-परिचित जनता इसे गौरवकी दृष्टिसे देग्वती
नता इस गारवका हाटस देवता को भी व्यर्थ कष्ट पहुँचाने का नही रहा है और न सम्पादहै, इसके लिये उत्कण्ठित रहती है और समाज इसे अपना कीय कर्तव्यसे ऊपेक्षा धारण करना ही मुझे कभी इष्ट रहा है। एक श्रादर्शपत्र मानता है। और यह सब सौभाग्य इस पत्रको उन विद्वान लेखकोकी कृपासे ही प्राप्त है, जिन्होने अपने २भनेकान्तका अगला वर्षअच्छे अच्छे लेखों द्वारा इसकी सेवा की है और इसे हनना चकि अनेकान्त बहुत लेट होगया है-उसकी जूनउन्नत, उपादेय तथा स्पृहणीय बनानेमें मेरा हाथ बटाया है। जुलाईकी किरण अब सितम्बर को ममामिपर प्रकाशित होरही अतः इस अवसर पर मैं उनका धन्यवाद किये बिना नहीं है, और इस लेटको जल्दी पूरा करनेका कोई साधन नजर रह सकता। उन सजनोमे पं. नाथूरामजी प्रेमी, पं० दर- नदी पाता। अत: अगला वर्ष इन्ही महीनांके सिलसिले बारीलालजी न्यायाचार्य, पं० परमानन्दजी शास्त्री, बा. मे अर्थात् अगस्त १६४५ मे प्रारम्भ नहीं हो सकंगा-- ज्योतिप्रसादजी एम० ए०, प्रो० हीरालालजी, बा. जयभग- उसके लिये नया ही सिलासला शुरू करना होगा, और वह वानजी वकील, श्रीकानन्दजी, पं. पन्नालालजी साहित्या- भी तब जब प्रेकी ठीक व्यवस्था होकर उममें समयपर चार्य, स्व. भगवत्स्वरूपजी 'भगवत्', मुनिश्री श्रात्मागम काम मिलनेकी पूरी गारण्टी मिज जावेगी; क्यो कि मैं इस जी उपाध्याय, श्रीकानजी स्वामी, पं. रतनलाल जो संघवी, वर्ष प्रेमकी वजहसे बहुत ही तग श्रागया हूँ और उसके श्रीनगरचंदजी नाइटा, श्रीफतेहचन्दजी बेलानी, बा. माणिक- कारण मुझे कितना ही मानसिक कष्ट उठाना पड़ा है । जहाँ चन्दजी बो. ए, बा. उग्रसेन जी एम० ए०, श्रीजमनालालजी तक खयाल हैं श्राठवें वर्ष की पहली किरण दीवाली के बाद विशारद, पं. बलभद्र जी, पं० सुमेरचन्दजी दिवाकर और श्री कार्तिकी पूर्णिमा तक प्रकाशित हो सकेगी। साथ ही, यह 'पुप्पेन्दु'जीके नाम खासतौरसे उल्लेखनीय हैं। आशा है भी संभव है कि इमपत्रका रूप तब और भी उन्नत हो जाय । भविषयमें अयेकाम्तको और भी मुलेखकोंका सहयोग प्राप्त श्रत: पाठकोंको उम वक्त नकके लिये धैर्य रखना चाहिये।