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किरण ११-१२]
समीचीन धर्मशास्त्र और उसका हिन्दी-भाष्य
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भाशयसे है। इनमेंसे श्रद्धा, रुचि, गुणप्रीति, प्रतिपत्ति और शाम, ज्योतिषशास, शब्दशास्र, गणितशाब, मंत्रशास्त्र, भक्ति जैसे कुछ शब्दोंका तोस्वयं प्रन्धकारने इसी प्रथमें-- छंदःशास्त्र, अलंकारशास्त्र, निमित्तशास, अर्थशास, भूसम्यग्दर्शनके अंगों तथा फलका वर्णन करते हुए प्रयोग गर्भशास्त्र, इत्यादि। इसी तरह अनेक विद्या, कला तथा भी किया है। और दूसरे शब्दोका प्रयोग अन्यत्र प्राचीन लौकिकशाचोकी शिक्षा देनेवाले गुरु भी लोकमें प्रसिद्ध ही हैं साहित्यमें भी पाया जाता है। प्राप्तादिके ऐसे श्रद्धानका अथवा लौकिकविषयोंकी सिद्धिकेलिये अनेक प्रकारकी तपस्या फलितार्थ । तदनुकूल वर्तनकी उत्कण्ठाको लिये हुए करने वाले तपस्वी भी पाये जाते है। जैसे कि भाजकल परिणाम-अर्थात् निर्दिष्टच तपागम-तपस्वियोंके वचनोंपर स्वराज्यकी प्राप्तिके लिये अनेक प्रकारकी कठिन तपस्या विश्वास करके (ईमान लाकर) उनके द्वारा प्रतिपादित करनेवाले सत्याग्रही वीर देखने में भाते हैं अथवा अद्भुत तत्त्वोपदेशको सत्य मानकर--उसके अनुसार अथवा अद्भुत माविष्कार करनेवाले वैज्ञानिक उपलब्ध होते हैं। श्रादेशानुमार चलनेका जो भाव है वही यहां 'श्रद्धान' परमार्थ विशेषणसे इन सब लौकिक प्राप्तादिकका पृथकरण शब्दके, द्वारा अभिमत है।
होजाता है। साथ ही, परमार्थका अर्थ यथार्थ (सत्यार्थ) होने और 'परमार्थ' विशेषणके द्वारा यह प्रतिपादित किया से इस विशेषणके द्वारा यह भी प्रतिपादित किया गया है गया है कि वे प्राप्तादिक परमार्थ-विषयके-मोक्ष अथवा कि वे प्रासादिक यथार्थ अर्थात् सच्चे होने चहिये--प्रय. अध्या'मविषयके--प्राप्त-भागम (शस्त्र )-तपस्वी होने थार्थ एवं झूठे नही । क्योंकि लोकमें परमार्थ विषयकी चाहिये--मात्र लौकिक विषयके नहीं, क्योंकि लौकिक अन्यथा अथवा प्रारमीय धर्मकी मिथ्या देशना करनेवाले भी विषयोंके भी प्राप्त, शास्त्र और गुरु (तपस्वी) होते हैं। जो प्राप्तादिक होते हैं, जिन्हे प्राप्ताभाम, भागमाभाम आदि जिम विषयको प्राप्त हैं-पहचा हुश्रा है-अथवा उसका कहना चाहिये। स्वयं ग्रन्थकार महोदयने अपने प्राप्तमीविशेषज्ञ है एक्सपर्ट (Expert) है--वह उस विषयका मांसा' ग्रंथमे ऐसे प्राप्तांके अन्यथा कथन तथा मिथ्या देशना प्राप्त है । विश्वसनीय (Trustworthy, reliable), को लेकर उनकी अच्छी परीक्षा की है और उन्हें 'प्राप्ता. प्रमायापुरुष (Gaurantee) और दक्ष तथा पटु भिमानदग्ध' बतलाते हुए" वस्तुत: अनाप्त सिद्ध किया है। (Skiltul, clever) को भी प्राप्त कहते है। और इस विशेषणकं द्वारा उन सबका निरसन होकर विभिन्नता ऐसे प्राप्त लौकिक विषयों के अनेक हुआ करते हैं। प्राप्तके स्थापित होती है। यही इस विशेषण पद (परमार्थानां')के वाक्यका नाम प्रागम' है अथवा पागम शब्द शाबमात्रका प्रयोगका मुख्य उद्देश्य है और इसीको स्पष्ट करने के लिये वाचक है .-स्वयं ग्रन्थकारने भी शास्त्रशब्दके द्वारा उसका प्रन्यमें इस वाक्यके अनन्तर ही परमार्थ प्राप्तादिका यथार्थ इसी प्रन्थमे तथा अन्यत्र भी निर्देश किया है। और स्वरूप दिया हुआ है। लौकिक विषयोंके अनेक शास्त्र होते ही हैं, जैसे कि वैद्यक- परमार्थ प्राप्तादिकका श्रद्धान-उनकी भक्ति- वास्तव १ देखो, कारिका ११, १२, १३, १७, ३७, ४१ ।।
में सम्यग्दर्शन (सम्यक्त्व) का कारण है-स्वयं सम्य. २ देखो, वामन शिवराम पाटेके कोश-संस्कृत इंग्लिश
ग्दर्शन नहीं । कारण यहां कार्यका उपचार किया गया है डिक्मनरी तथा इंग्लिश सस्कृत डिक्सनरी।
५ वन्मतामृतबाह्याना मर्वथैकान्तवादिनाम् । ३ आगम: शास्त्रयागतौ (विश्वलोचन), आगमस्वागनी प्रामाभिमानदग्धाना स्वष्ट दृटेन बाध्यते ॥७॥
शास्त्रेऽपि (हेमचन्द्र अभिधानमंग्रह); आगम: शास्त्रमात्र ६ श्रावकाप्तिकी टीकामें श्री हरिभद्रमूग्नेि भी अहन्यामन (शब्दकल्पद्रुम)।
की प्रीत्यादिरूप श्रद्धाको, जो कि मम्यक्त्य का तु है, ४ देखो, इसी ग्रन्थ की 'अातोपज्ञ' इत्यादि कारिका तथा कारण में कार्यके उपचार से सम्यक्त्व बतलाया है और प्राप्तमीमासाका निम्न वाक्य
परमग मोक्षका कारण लिया है । यथा-इनरम्य तु 'स त्वमेवामि निदोषोयुक्तिशास्त्राविरोधिवाक' ॥६॥ व्यवहारन यस्य सम्यक्त्वं सम्यक्त्वहेतुरपि ईच्छामन