________________
* ॐ अहम् *
स्तितत्व-सघातक
विश्व तत्त्व-प्रकाशक
वाषिक मूल्य ४)
इस किरणका मूल्य १)
नीतिविरोषध्वंसीलोकव्यवहारवर्तक-सम्यक् । परमागमस्यबीज भुवनेकगुरुर्जयत्यनेकान्तः।
-
वर्ष ७ किरगा ११, १२ ।
सम्पादक-जुगलकिशोर मुख्तार .वीरमेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम ) सरसावा जिला सहारनपुर जून, जुलाई भाषाढ, भावणशुक्ल, वीरनिर्वाण संवत् २४७१, विक्रम सं० २००२ । १९४५
ध्यानारूढ आदिजिनेन्द्र
به به همه جبوت وجوججه به جمجوجه
कायोत्सर्गायताङ्गो जयति जिनपतिनोभिमनुमहात्मा मध्यान्हे पस्य भास्वानुपरिपरिगतो राजते स्मोग्रमूर्तिः। चक्रं कर्मेन्धनानामतिबहुदहतो दूरमौदास्य-वानस्फूजत्सद्ध्यानवन्हेरिव मचिरतरः प्रोगतो विस्फुलिङ्गः ॥१॥
-श्रीपद्मनन्दाचार्यः
'कायोत्सर्गरूपसे ध्यानमें स्थित विस्तीर्ण अंगके धारक वे महाराजा नाभिरायके पुत्र महामा श्रीमादिजिनेन्द्र जयवन्त हैं-अपनी तपस्याके प्रभावको लोक-हृदयों में अंकित किये हुए है-जिनके मस्तकपर दोपहरके ममय प्राप्त हुमा प्रीष्मकालीन-गर्मीकी मौसमका-अत्यन्त तलायमान सूर्य ऐसी शोमाको धारण करता हुआ मालुम होता था मानों वह सूर्य नहीं है किन्तु वैराग्यरूपी पवनसे अतीव दहकती हुई और कर्मरूप ईन्धनके समूहको भम्म करती हुई भगवानकी शुक्लध्यानाग्मक प्रचण्ड अग्निमेंसे यह प्रति देदीप्यमान (चमकता हुआ) फुलिंगा (चिनगारीके सदृश) निकल कर आकाश में दूर चला गया।