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विषय-सूची
ध्यानारूढ प्राविजिनेन्द्र-[सम्पादक " ११ १२ अहिंसाकी विजय(कविता)-कल्याणकुमार 'शशि' ७८६ २ वैराग्य कामना, राग-विरागका अम्बर-[क.भूधरदाप१५२ १३ भगवान महावीर-[पं० सुमेरचन्द दिवाकर . ११. ३ समीचीन धर्मशान और हिन्दीभाष्य-[सम्पादक १५३ १४ भ. महावीर और भ. बुद्ध-श्री फतेहचन्द बेजानी११३ ४ विनय स्वीकारो (कविता)-4. सूरजचन्द डांगी १५८ १५ भ० महावीर-प्ररूपित अनेकान्त धर्मका वास्तविक ५ सुलोचनाचरित्र और देवसेन-[पं. परमानन्द शास्त्री १५६ स्वरू-श्री कानजी स्वामी "" 185 ६ सम्पादकीय
... १६४ १६ वीरशासनपर्वका स्वागतगान(कविता)-[ोमप्रकाश २०६ साहित्य-परिचय और समालोचन ... १६६ १७ श्री धवखाका समय-बा. ज्योतिप्रसाद जैन, एम.ए२०७ ८ इतिहाममें म. महावीरका स्थान-[बाजयभगवान १६७ १८ क्या वर्तनाका वह अर्थ गलत है-[पं० दरबारीमान ११४ । जैनमनुश्रतिका ऐतिहासिक महत्व[बा. ज्योतिप्रपाद ०७६ १६ हमारी शिक्षा-समस्या-बा. प्रभुलाज प्रेमी २११ १. प्रकाशरेखा (कविता)-[स्व. भगवरस्वरूप भगवत् १८०२० वीरसेवामंदिरमे वीर. उत्सव-[पं. दरबारीलाल २२३ "क्या रत्नकरण्ड श्रावकाचार स्वामो समन्तभद्रकी २१ जैनजातिका सूर्य अस्त !!--[जुगलकिशोर मुग्रतार २२५
कृति नहीं है ?-[पं० दरबारीलाल कोठिया ११
ला० जम्बूप्रसादजीका दुःखद वियोग ! यह प्रकट करते हुए बड़ा ही दुःख होता है कि नानौता जि. सहारनपुरके जैन रईस ना. जम्बूप्रमादजी, जो श्री दादीजीके कौटुम्पिक पौत्र थे, आज इस संसारमें नहीं हैं--ता. १५ अगस्तकी रात्रिको उनका अचानक ही स्वर्गवास होगया है। वे परे एक दिन भी बीमार नहीं रहे। पहले दिन रातको उन्हें कुछ बदहजमीकी शिकायत हुई जो साधारण-सी बात समझी गई, इसीसे उनकी कोई खास चिकित्सा न हो सकी और अगले ही दिन उनका प्राण पखेरु एकदम उड गया !! अनेक पुत्र-पुत्रियो, पुत्रवधू और पत्रीके होते हुए भी कोई भी उस समय घरपर उनके पाम नही था -सबके सब कुछ दिन पहलेसे ही दूसरे स्थानीको गये हुए थे। इसीसे वे न तो अपनी किमीमे कुछ कह सके और न दूसरों की सुन सके !! एकाएक बड़ा ही हृदयविदारक दृश्य उपस्थित होगया और सारी नगरीमे शोक छा गया !! देवकी इस विचित्र लीलाको देखकर सभी दांतोतले अंगुली दबाते थे और कुछ भी कहते नहीं बनता था।
स्व. ला० जम्बूप्रसादजी बरे ही सजन-स्वभावके युवक थे, निरभिमानी थे । सरनप्रकृति थे और धर्मसे बदा प्रेम रखते थे। धर्मके कार्योमे बराबर भाग लिया करते थे-उपका प्रचार देखनेकी उनके हृदयमें लगन थी और तप थी। पिवले दिनों उन्होंने श्रीमद्राजचंद्रनामक एक विशाल ग्रंथकी बहुत सी प्रतियां एक साथ खरीदकर उन्हें वितरण किया था--उन्हे अच्छी अच्छी लायब्रेरियों तथा खास खास अजैन विद्वानोंको भिजवाने के लिये वे उनके पने पूछा करते थे और इस बातके लिये बड़ी पातुरता व्यक्त किया करते थे कि यह ग्रन्थराज ऐसे स्थानोंपर अवश्य पहुंचे जहां इसका सदुपयोग हो सके। प्रथसंग्रहका उन्हे शौक था और कुछ ऐसे सर्वसाधारणोपयोगी ग्रंथों के नाम वे अक्सर पूछा करते थे जिन्हें मैंगाया जावे अथवा छपाकर वितरण किया जा सके । समयसारकी वर्णी गणेशप्रसादजी कृत दीकाको छपाने के लिये वे तयार हो गये थे और उसके लिये उन्होंने वीजीको लिखा भी था । हालमें वे एक कन्या पाठलालाका निर्माण करा रहे थे, जिसके कामको अधूरा ही छोड़ गये हैं।
इसके सिवाय अतिथिसेवा और मिननमारीका भी उनमें बड़ा गुण था । जब कभी मैं नानौता जाता तो वे खबर पाते ही मिखनेको भाते भोजनका भाग्रह करते और जब तक वड़ा ठहरता तब तक दिनरातमें पक दो बार बराबर मिला करते और अनेक धार्मिक तथा सामाजिक विषयोंपर घंटों बातचीत किया करते थे । अतः मापके इस पाकस्मिक वियोगमे मेरे चित्तको बड़ा प्राघात पहुंचा।समाजकी भी आपके निधनसे कुछ कम पति नहीं हुई। हार्दिक भावना है कि भापको परलोकमें सुखशान्तिकी प्राप्ति होवे। साथ ही भापके सी-बचों तथा अन्य कुटुम्बी जनों के साथ इस दुःख में मेरी हार्दिक सहानुभूति है और दिली कामना है कि उन्हें धैर्य मिले तथा बका भविष्य उज्वल होवे।
जुगलकिशोर मुख्तार