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-फिर तीसरी, चौथी भी चोट कर गया कातिल !
५) बा. पनाबाबजी (जैनीमावर्स) औरणा रतनवास अपमानसे पागल की तरह हो रहा था दिल !! .
जी मादीपुरिया (पुत्रपुत्रीके विवाहकी शीमें) घबरा रहे थे और जोश होश थे गानिस !
४१)खा. फेस्मत पतरसमजी जैन माक्षिक वीर स्वदेशी धह सोच रहे थे कि 'फ़तह पाना है मुश्किल !!"
भंडार सरधना जि. मेरठ (चि. प्रकाशन विवाह चमणाने दोनों शक्तियां कांखोंमें दवाली ! , की खुशी में) मार्फत पं. जिनेश्वरदासजी। ___ यह इसलिए कि मुट्टियां उसकी न थी खाली !! ४) ला बांकेलालजी, मुरादाबाद, खा. श्यामलालजी उन चार शक्तियोंको वो थामे था इस तरह !
हरियाना, और बाहोरीलाबजी दुसारी (पुत्रों के विवाह चौदन्ता गज खड़ा हो धीर वह भयावह !!
की खुशी में) मार्फत वैच विष्णुकान्तजी मुरादाबाद । सब मोच रहे थे हृदयमें बात ये रह-रह !
३) बा. नन्दकिशोरजी जैन, बिजनौर। 'नर है कि असुर है ये शक्ति-शौर्षका संग्रह ?'
२) वा. मनोहरनाथजी जैन बी.ए.वकील बुलन्दशहर ललकारके लघमणने कहा तामसी-स्वरमे । और वा. गिरीलालजी मुख्तार, मेरठ, (पुत्री और
'जा और भी वे तीक्ष्ण-शक्तियां जो हो घरमें ॥' भाईके विवाहकी खुशीमें)। जितपमा जो कठोर थी वो आज थी कोमल !
५) ला० हरिश्चंद्रजी रामपुर जि. सहारनपुर और भय उसको अमंगल केने कर रखा था चंचल ॥
ला. पनप्रसादजी जगाधरी जि. अम्बाला (पुत्र पुत्री मुश्किल से काट पा रही थी विहला पल-पक्ष !
के विवाह की खुशी में)। यह सोच रही थी कि 'न हो स्वामीकी अकुशल' २५) बा. रामसुखजी वाकलीवाल, इन्दौर (बीशान्ति
फिर पांचवीं शनीका लखनपर प्रहार या। लाल वाकलीवाल नासिकवालों के स्वर्गवास के अवसर
जो सबसे खतरनाक और दुनिवार था ॥ पर निकाले हुए दाममेंसे । पर देखने मे दृश्य वही सामने पाया ।
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व्यवस्थापक 'भनेकाम्त' । लक्ष्मण ने 'शक्ति-बाण'को दांतोंमे दवाया ॥
वीरवामन्दिरको सहायता बैरीदमनने देखी-बदस्तूर है काया ।
पिछली किरण में प्रकाशित सहायताके बाद बीरसंवा. श्रद्धामे और प्रेमस्ये तब भाल नवाया ॥
मंदिर सरसावाको जो सहायता प्राप्त हुई है वह क्रमश: निम्न 'ला और!' जबकि भूपसे कहने लगा लचमण। प्रकार और उसके लिये दातार महोदय अभ्यवादके पात्र है
अम्बरसे बरसने लगे लघमण पुष्प-कण ॥ १२)ला. जगलकिशोरजी जैन (झबरेवाले) देहरादून 'जयघोष' सब दिशाओंसे देता था सुनाई।
(चि० पुरुषोत्तमदासके विवाहकी खुशी में)। भानन्दकी मुस्कान-सी हर मुंहपै थी छाई ॥
") वा. पन्नालालजी जैन अप्रवास देहखी और सा. जित्तपना नजर डाले हुा सामने आई।
दीपचन्दजीजैन (गुहानाबाले) न्यू देहली (चि० प्रेमसौभाग्य था जीवनकी पूर्णता थी जो पाई।।
चंद और चिकनकमाका देवीके विवाहकी खुशी में)। नवमया भी हुधा सौम्य, मुहब्बतका रंग भर। ... सेठ सेठमल दयाचन्दजी जैन कलकत्ता । (सेठ 'भगवत' यों हुघा राजकुमारीका स्वयंवर !!
बस्देवदामजीकी माताके स्वर्गवास भरपर
निकाले हुए वानसे) मार्फत पा.होटेलालजी जैन अनेकान्तको सहायता ।
ईस कलकत्ता। अनेकान्तकी गत वरया में प्रकाशित सहायताके बाद २)लामकिशोरजी जैन बिजनौर। जो सहायता प्राप्त हुई। वह क्रमशः इस प्रकार है:- ) गत सहायता, देहलीके एक सामकी भोरमे। १०) रावराजा पर 3 हुकमचंदजी जैन इन्दौर । २१) मा. हरिश्चंद्रजी म रामपुर जि. सहारनपुर और
(अनादि सस्थाका कान्त भिजवाने के लिये) मा.पप्रसादजीजैन जगाधरी जिम्बाबा (पुत्र-पुत्री २.) खा. उदयराम जिनेश्वरदासजी न बजाम महारनपुर विवाहकी खुशीमें )। (अनेकामा फ्री भिजवाने के लियं)।
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अन्तिा वीरसेवामंदिर'