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वीरसेवामन्दिरके नये प्रकाशन
१ प्राचार्य प्रभाचन्द्रका तत्वार्थसूत्र-नया प्राप्त किशोरजीको ग्रंथपरीक्षाका प्रथम अंश, ग्रंथपरीक्षाओं के मेषित सूत्र, मुख्तार श्री जुगलकिशोरकी मानुवाद व्याख्या इतिहासको लियेहए १४ पेज कीनई प्रस्तावना सहित । मू01) और प्रस्तावना सहित । मूल्य ।)
५ न्यायदीपिका-(महत्वका नया संस्करण)२ मत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ-मुस्तार की जुगल
भ्यायाचार्य पं. दाबारीलालकी बोठिया द्वारा सम्पादित किशोरकी अनेक प्राचीन पोंको लेकर नई योजना, सुन्दर और अनुवादित न्यायदीपिकाका यह विशिष्ट संस्करण हरयग्राही अनुवादादि सहित । इसमें श्रीवीर वर्द्धमान और अपनी खास विशेषता रखता है। अबतक प्रकाशित संस्करणों उसके बाद जिनसेनाचार्य पर्यन्त. २१ महान् प्राचार्योक में जो अशुद्धियां चलीबारही थीं उनक प्राचीन प्रतियोंपर भनेकों प्राचार्यों तथा विद्वानोंद्वारा किये गये महत्वक १३६ में संशोधनको लिये हुए ह संस्करण मृलप्रन्थ और उम पुण्य स्मरणोंका संग्रह है और शुरूमे १ लोकमंगलाकमना, के हिन्दी अनुवाद के साथ प्राकथन, सम्पादकीय, प्रस्तावना, नित्यकी प्रारमप्रार्थना, ३ माधुवेर्षानदर्शक जिनस्तुति, ४ विषयसूची और कोई - परिशिष्टोंसे सतित है. जिनमें परमसाधुमुखमुद्रा और ५ सत्साधुवन्दन नामके पांच एक यहा परािंशष्ट तुलनात्मक टिप्पणा का भी है। साथमें प्रकरण है। पुस्तक पढ़ने समय बड़े ही सुन्दर पवित्र सम्पादकद्वारा नवनिर्मित 'प्रकाशाख्य' नामका भी एक विचार उत्पन होते है और साथ ही प्राचार्योंका कितनाही .सस्कृत टिपण लगा हुआ है, जो ग्रंथगत कठिन शब्दो तथा इतिहास सामने पाजाता, निन्य पाठ करने योग्य है म.) विषयोंका खुलासा करता हुमा विद्याथियों तथा कितने ही
३ अध्यात्म-कमल-मानण्टु-यह पंचाध्यायी तथा विद्वानोंके लिये कामकी चीज़ है। लगभग ४०० पृष्ठोंक बाटीसंहिता मादि ग्रंथोंके कर्ता कविवर राजमझाकी अपूर्व इस वृहत्संस्करणका लागत मूल्य .) रु. है कागजकी कमी रचना है। इसमें अध्यामममतको कृजेमे बंद किया गया के कारण थोडी ही प्रतिया उपी हैं। बताइछुकाको शीघ्र है। साथ में न्यायाचार्य पं.रबारी लाल कोठिया और पं. ही मंगालेना चाहिये। . प्रकाशनविभाग परमानन्दशास्त्रीका सुन्दर अनुवाद विस्तृत विषयसूची तथा
वाग्मेवामन्दिर, मरमावा (महारनपुर) मुख्तार भीजुगल किशोरकी लगभग ८० पेजकी महत्वपूर्ण प्रस्तावना है। बड़ा ही उपयोगी ग्रंथहै। म. १॥)
४ उमास्वामिश्रावकाचार-परीक्षा--मुख्तार श्रीजगल
बाबू छाटेलालजीका स्वाध्याममाचार
पाठकोंको यह जानकर प्रसन्माना होगी कि बाप छोटेलालजी जैन नईम कलकत्साके स्वास्थ्य में जो बरामी उत्पन हुई थी वह कुछ महीने मगनपल्ली पो. प्रारोग्यनरम् में रहकर चिकिया करानेपर दूर होगई । अब उनके शरीर में चैया कोई दोष नहीं रहा। "मा परीक्षामोंमे जान परा और इम्तिय वे अप्रेस के प्रथम सप्ताह सप्ताहमें बहों मे कलकत्ता के लिये रवाना हो जावगे नया कुछ दिन मद्रास उहरते हुए कलकसा पहंगे। और अपनी प्रायोजिम संस्था
कार्यभारको संभालेंगे जिमकी स्कीमका कितना ही कार्य वे वहां रहते भी करते रहे हैं। हानिक मावना है कि आपको अपने मिशन में शीघ्र ही पण मफलताकी प्राप्ति होवे । मंपादक
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VIR SEWA MANDIR, SARSAWA. (SAHARANPUR)
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