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किरण ७-८]
धनपाल नामके चार कवि
यह 'बाहुबबित' विक्रम संवत् १४५४ में वैशाख चतुर और धर्मात्मा थे। इन प्रष्ट पुत्रों सहित साहू वासावर शुक्ला त्रयोदशीको स्वाति नक्षत्रमें स्थित सिद्धियोगमें सोमवार अपने धर्मका साधन करते थे। के दिन जबकि चन्द्रमा तुलाराशिपर स्थित था पूर्ण किया गया इस प्रथमें कविने अपने पूर्व होनेवाले कुछ खास है, जैसाकि उसकी प्रशस्तिके निम्न पोंसे प्रक्ट है:- विद्वानोंका और उनकी कुछ प्रसिद्ध कृतियों सहित उल्लेख "विकमणरिंदभंकियसमए, चरदहसयसंवच्छरहे गए । किया है, जैसे कविचक्रवर्ती धीरसेन २ व्याकरणकर्ता पंचासवरिस चउअहिय गांण, वइमाहहो सिय तेरसि-सुदिणि- श्री देवनंदि (पूज्यपाद) जैनेन्द्रव्याकरण ३ श्री बज्रसूरि साई याक्खत्ते परिट्टियई, वरसिद्धिजोगणामें ठियई। और इनके द्वारा रचित षड्दर्शनप्रमाणा ग्रंथ, ४ महासेनससिवासरे रासिमयक्तुले, गोलम्गे मुत्त सुक्के सवलें ॥” सुलोचनाचरित्र, ५ रविषेण-
पचरित, जिनसेन हरिवंशप्रस्तुत ग्रंथ चंद्रवाहनगरके प्रसिद्ध राजश्रेष्ठि और पुराण, ७ मुनिजडिल-वरोंगचरित. दिनकरसन-कंदर्पराजमंत्री जो जायम या जैसवाल वंशके भूषण थे, साहू चरित, है पनपेन-पार्श्वचरित, १. अमृताराधना-गणि वालाधरकी प्रेरणासे की है, और उक्त ग्रंथ उन्हींके न मां- अंबसेन " चंद्रप्रभचरित, धनदत्तचरित्त, कवि विष्णु सेन, कित किया गया है । ग्रंथके आदि और अंतमें प्रथनिर्माणमें मुनिसिंहनन्दि-अनुप्रेक्षा, १३ गावकारमंत्र-शारदेव, १५ कवि प्रेरक साहू वासाधरके कुलादिका कितना ही परिचय दिया सग-धीरचरित, १५ सिद्धसेन १६ कवि गोविद, .. गया है। इनकेपिताका नाम सोमदेव था. जो संभरिनरेन्द्र कवि धवल, १८ शालिभद्र, "चतुर्मुख, २० द्रोण, २१ (कर्णदेव ) के मंत्री थे । कविने साहवासाधरको सम्यक्त्वी स्वयंभु २२ पुष्पदंत और २३ वीर कविका उसलेख विया जिन चरणोंके भक्त, जिनधर्मके पालने में तत्पर, दयालु गया है।
वीरसेवामन्दिर बहुलोकमित्र मिथ्यावरहित, और विशुद्धचित्त बतलाया *सुअ पवणुहु बिय कुमयरेणु, कइचक्कवट्टिसिरि धीरसेगु । है, साथ ही भावश्यक दैनिक षट्कर्मों में प्रवीण, राजनीति महिमंडलि वरिणडं विजुहवं दि, वायरणिकारि सिरि देवणंदि। में चतुर और अमूल गुणोंके पालनमें तत्पर प्रकट किया जहणेद णामु जडयणु दु लक्खु, किउ जेण पसिद्ध स वाय लक्खु। है। इनकी पत्नीका नाम उदयश्री था जो पतिव्रता और
सम्मत्ता .........."रायभव्वु, दसण पमाणु वरु रय उ कन्षु । शीलवतका पालन करनेवाली तथा चतुर्विधसंबके लिये
सिरिवजसरिगणि गुणणिहातु. विग्यउ मह छदंसगा पमाणु ॥ कल्पनिधि थी। इनके पाठ पुत्र थे+ (. जसपाल २ जस (य) पाल ३ रसपाल ५ चदपाल ५ विहराज ६ पुण्यपाल
महसेण महामइ विउ समहिउ घग गाय सुलोयणचरिउ कहिउ। ७ वाहट ८ रूपदेव जो अपने पिताके समान ही योग्य
रविसेणे यउमचरित्त बुत्त, जण सणे हरिवंसु वि पवित्तु । प्रेरणामे की है। श्वेताम्बरीय तीर्थमालामे भी चंद्रवाडका
मुणि जडिलि जडत्ताण वारणत्थु गण वरंगुचरिउ खंडणुपयत्यु । उल्लेख देखा जाता है. इन सब उस्लेवोपरमे उसके ऐति- दिणयरसए कदष्पचारउ. विस्थातर उ मादाह एवरसह भारङ। हासिक नगर होने और जैन धर्मका वहां असें तक बना जियपासचरिउ अइसय बसेण, विग्यउ मुणि पंगवपउमसेण। रहना उसकी महत्ताका स्पष्ट प्रतीक जान पड़ता है। इसके
अमियाराहण बिरइय विचित्त, गणि अंवसेण भवदोसचत्त । सम्बन्ध में फिर किसी समय एक स्वतंत्र लेख द्वारा प्रकाश कंदप्पहचरिउ मणोदिरामु, मुणिविण्हुसेण किउ धम्म धामु । डालनेका विचार । समाजको चाहिये कि वह ऐसे ऐतिहासिक धणयत्तचरिउ चउवमासारु, अवर हि विहिउ णाणापयारु । नगरों में पाई जाने वाली ऐतिहासिक सामग्रीका संकलन करा मुणिसीहणंदि सहत्य वासु, अणुपेदा कय संकप्पणासु। कर प्रकाशित करे। जिससे जैनधर्मका गौरव उद्दीपित हो। णवयारणेहु गरदेव वुत्तु. कासग विहिउ वीरहो चरित्तु । +पदमपुत्तु जसपालु गुणंगउ, रूवेणं पच्चक्ख अणंगउ । सिरिसिद्धसेए पवयण विणोउ, जिण सेणे विरहाउभारिसेण? हुउ जस(य)पाल वियरखगुबीयउ.पणु रउपाल पसिद्धउतीयउ। गोविंद कइ दसणकुमारू, कह रयणसमुदहो लद्धपारु । तरियउ चंदपालु सिरि मन्दिरू, पंचम सुख विहराज सहकर। जय धवलु सिद्धगुगा मुणिउ तेउ,सुय सालिहत्यु का जीवदेउ। छहउ पुण्णपाल पुण्णायक, सत्तमु वाइड णाम गुणायक ।
वर पउमचरिउ किउ सुकइ सेढु,इय अवरजाय वर वलयवीदु।
वरपर अट्ठम रूवएव रूबहउ, एहिं असअहिं चिरु यहढउ ॥ घत्ता-चउमुह दोणु सयंभु का, पप्फयंत पुणु वीरमग्ण।
-बाहुबलिचरित अंतप्रशस्ति ते णाणदुमणि उज्जोयकर, उ दीयोषमु हीणु गुरा॥१-८॥