________________
अनेकान्त
[वर्ष ६
और उसने विनयसे उनके चरणकमलों की वन्दना की। समु/कुर्वाणं (णः) महारकश्रीप्रभाद्रदेवसत्शिष्याणं और गुरुके भागे भाजप्तरहित होकर शास्राभ्याम किया ब्रह्मानाथूराम । इत्याराधनापंजिकायां ग्रंथ प्रारमपठनार्थ और सुकविपना प्राप्त किया था। पश्चात मिथ्यात्वरूपी मद लिखापितम्।" के विनाशक वे गणिप्रभाचन्द्र खंभातनगर धारनगर और
कविवर धनपाल गुरु श्राज्ञासे सौरिपुर तीर्थ के प्रसिद्ध देवगिरि (दौलताबाद) होते हुए योगनीपुर ( देहली)
भगवान नेमिनाथ जिनकी वन्दना करने के लिए गप । पाए । देहली निवासियोंने उस समय एक महोत्सव किया मागेमें इन्होंने 'चंद्रवाडि या चन्द्रवार' नामका नगर देखा था और भारक रत्नकीर्तिके पट्टपर उन्हें (प्रभाचन्द्रको) जो जन धनसे परिपूर्ण और उसंग जिनालयोंसे विभूषित स्थापित किया। महारक प्रभाचन्द्रने मुहम्मदशाह तुगलक था, वहां साहू वासाधरका बनवाया हुमा जिनालय भी के मनको रंजित किया था और विद्याद्वारा बादियोंका मन देखा और वहां के श्री अरहनाथ जिनकी वन्दना कर अपनी भन्न किया था ।
गह तथा निंदा की, और अपने जन्म-जरा और मरणका
नाश होनेकी कामना भी व्यक्त की। इस गनर में विसने प्रमाचन्द्रका भट्टारकरत्रकीर्तिके पट्टपर प्रतिष्ठित होनेका
ही ऐतिहासिक पुरुष हुए हैं जिन्होंने जैनधर्मका अनुष्ठान समर्थन भगवती आराधनाकी उस पंजिकाकी लेखक
करते हुए वहांके राज्यमंत्री रहकर प्रजाका पालन यकि प्रशस्ति (पुष्पिका) से भी होता है जिसे संवत् १४१६
है। ग्रन्थों में उल्लिखित ऐतिहासिक श्राख्यानोंमे इस नगर में इन्हीं प्रभाचन्द्र के शिष्य ब्रह्मनाथरातने अपने पढ़ने के
की महत्ता एवं प्रतिष्ठाका कितना ही बोध होता है जो लिये देहली बादशाह फीरोजशाह तुगलकके शासनकाल
आज एक छोटेमे तीर्थके रूप में ही प्रसिद्धि में पारा है। में लिखपाया था। उसमें भ. प्रभाचन्द्रका रत्नकीर्तिके पट्ट - पर प्रतिष्ठित होनेका स्पष्ट उल्लेख है। वह लेखक पुरिपका * चद्वाड या चन्द्रपाट नामका यह नगर जमुना
श्रागरा के समीप फिरोजाबाद के दक्षिण में स्थित है। और निम्न प्रकार है:
आजसे बहुत पहले यह नगर अपनी विशालता एवं वैभव "संवत् १११६ वर्षे चैत्रसुदि पञ्चम्यां सोमवासरे
के लिये प्रसिद्ध था, यहाँ अनेक राजाभोंने राज्य किय। सकलराजशिरोमुकुटमाणिक्यमरीचिपिंजरकृतचरणकमल .
है । कविवर लक्ष्मणके सं० १३१३ मे बनाये गए पादपीठस्य श्रीपेरोजसाहेः सकल साम्राज्यधुरीविभ्राणम्य
'अणुवयरयणपईव' से मालूम होता है कि उस समय समये श्रीदिल्ल्यां श्रीकुन्दकुन्दाचार्यान्वये सरस्वतीगच्छे
चन्द्रबाडमे चौहान्वंशी राजाश्रोका राज्य था । और यहाँ बलात्कारगणे भट्टारकश्रीरत्नकीर्तिदेवपट्टोदयादितरुणतरणि
- इस वंशके श्राइवमल्ल, श्री वल्लाल, जाहड, अभयपाल १ पततिधि जिण तित्य णमंत उ महिनमंतु पल्दगापुर पत्तउ। और भरत नामके गजाश्रोने राज्य किया है। इनके समय सिहिपहचंद महागणि पावण बहुसीसेहि सहिउ य विरावणु। में लंबकंचुक कुलके करण (कृष्णादित्य ) शिवदेव, गंवाए सरिसरि रयणायक सुमय कणय सुपरिक्षण णाया। कोदु साहु, अमृतपाल और हल्लण साहु राज्यश्रेष्ठि और दिक गणीसे पय पणवंतउ बहुधणवालु विबुह जण भत्तउ। मंत्री हुए हैं। देखो, जैनसि० भास्कर भाग ६, किरण ३। मणिणा दिउ इत्थु विणोए दोसि बियक्खण मज्मु पसाएं। प्रस्तुत बाहुबलिचरितके कर्ताने भी संभरिराय, सारंगमंतु देमि तुह कय मत्थए करु महुमुहणिग्गउ घोसहिं अक्स्वर नरेन्द्र, अभयपाल, जयचंद और रामचंद्र नामके राजाश्री सूरिबयण सुण मणश्राणंदिउ विणएं चरएजुअलमइवंदिउ के राज्यकाल में जायस या जैसवालवंशी, जसघर, गोकणु पढिय सत्य गुरु पुरउ अणालस हुअ जससिद्धि सुकदमाणावस। (गोकर्ण) सोमदेव, वासाधर नाम के व्यक्ति राज्यमंत्री और पत्ता-पट्टणे खंभायच्चे धारणयरि देवगिरि ।
राजश्रेष्ठि रहे हैं। -देखो बाहुबलिचरितप्रशस्ति मिच्छामय विहुणंतु गणि पत्तउ जोइणिपुरि ॥१-३ इनके सिवाय सं० १५३० में कविवर श्रीधरने भविष्यतहिं भव्वहिं सुमहोच्छउ विहियउ सिरिरयणकित्तिपट्टे णिहियउ दत्तचरितकी रचना चंद्रवाड नगरके माथुरकुलके नारायण महमंदसाहि मणुरंजियउ विजहि वाहय मणु भंजियउ। के पुत्र और वासुदेवके न्येष्ठ भ्राता मतिबर सुपट्ट साहू