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अनेकान्त
[वर्ष ६
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महाभारतसे ठीक पूर्वका समय उत्तरी भारत में परिमो- भिकारी राजा परीक्षितको नागोंके हाथ अपने प्राण खोने तर वैदिक, याझिक अथवा प्रामण संस्कतिके चरमोत्कर्षका हरे, परीक्षितके पुत्र जन्मेजयको सारा जीवम नागोके साथ युग था, किन्तु महाभारतके विनाशकारी युद्धने समस्त . सड़ते बीता, और अश्वमे उनके वंशज निधनुको तथा अन्य वैदिक राज्यों को परस्परमें बना कर शक्ति एवं श्रीहीन कर कुरु-पाचाल-देोके नागराजको स्वदेश छोड़कर पूर्वस्थ दिया। एक प्रबल क्रान्ति हुई, सैकड़ों, सम्भवतः सहस्रों कौशाम्बी श्रादिमें शरण लेनी पड़ी' । परिणामस्वरूप वोंसे दबा हुई, दबाई हुई बास्य-सत्ता देशमे सर्वत्र सिर हरितनागपुर, अहिच्छेत्र, मथुरा, पद्मावती, भोगवती. उठाने लगी। नवागत वैदिक मार्योंसे विजित, दलित, नागपुर प्रादिम नागराज्य स्थापित होगये । सिंधमे पाताल. पीडित बाय शत्रियों की, नाग यद वद्याधर श्रादि प्राचीन पुरी (पाटल) के न ग तथा दक्षिणी पंजाबमे सम्भुत्तर भारतील जातियों की सत्ता लुस नही हो गई थी। जन- महाजनपदकं साम्भवमास्य प्रबल हो उठे । पूर्वस्थ अंग, साधारण, यथा छोटे मोटे राज्यों. गणों और संबोंके रूपमे बम, विदेह, कलिंग, काशी श्रादि देशों में भी नाग नाग. वह इधर उधर बिखरी पड़ी थी, इस समय अवसर पाकर वशज (शिशुनाग), तथा लिच्छवि, बजी, भल्ल, मल, उबल उठो, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कि ईसाकी १७वीं मोरिय नात श्रादि व्रात्य-सत्ताएँ प्रबल हो उठी। १८ वीं शताब्दी में अकस्मात मराठों, राजपूतों, सिक्खों, व्रात्य श्रमणों के संसर्ग और प्रभावस क शल, वरस, जाटों मादिके रूप में भड़क उठने वाली चिर सुषुप्त हिन्दु. विदेह प्रादि देशोंके वैदिक आर्य भी याज्ञिक हिंसा एवं राष्ट शक्तिके सम्मुख भारत व्यापी दीखने वाली महा वेदोंके लौकिकवाद ( Matterialism) को छोड ऐश्वर्यशाली प्रबल मुस्जिम शक्ति बिखर कर देर होगई अध्यात्मके रंग रंग गये । मारमा लीन, संसारउसी प्रकार सन् ईस्वी पूर्व दूपरे सहस्राब्दके अनमें देह-भोगोंसे विरक्त विदेह वास्योंके सम्पर्कमे ब्रह्मवादी, तत्कालीन वैदिक आर्य सत्ता भी नाग भादि प्राचीन भार- यजविरोधी, हिंसाप्रेमी जनक लोग भी विवह कहलाने तीय वाय क्षत्रियोंकी चिरदलित एवं उपेक्षित शक्तके लगे। इस धार्मिक मामन्जस्य एवं उदारताके कारण कुछ पुनहत्थानसे अस्त-व्यस्त होगई। और लगभग डेढ़ महर काल तक विदेहके जनक राजे, तत्कालीन राजनैतिक क्षेत्रमें वर्षों तक एक मामान्य गौण सत्ताके रूपमे ही रह सकी। प्रमुख रहे, किन्तु पश्चिपके वैदिक भार्य उनसे भी बास्योंकी उसके उपरान्त, इस बीवमें जब वह प्राचीन जातियोंमें भांति घृणा करने लगे, उन्हें भी अपनेसे वैसा ही हीन भली भांति सम्मिश्रित होकर अपने धर्म तथा प्राचार- समझने लगे। उधर व त्य क्षत्रियोंके प्रबल गणतन्त्र तथा विचारों में देशकाचानुपार सुधार करके अर्थात वास्य धर्म- नागों के कितने ही राज्यतन्त्र स्थान स्थानमें स्थापित होरहे विरोधी याज्ञिक हिमा आदि प्रथाओं का त्याग कर अग्नी थे। काशीमें उरगवशकी स्थापना हुई। काशीके उग्गवंशी संस्कृतिका नवसंस्कार करने में सफल होगकी तभी गुप्त राज्य जैन चक्रवर्ती ब्रह्मदत्तने समस्त तत्कालीन रज्योर अपमा काखमें (ईसाकी ३री-४थी शताब्दीमें) उसका पुनमा प्राधिपत्य स्वीकार कराया । उनके वंशज काशीनरेश हुमा, किन्तु प्राचीन वैदिक रूपमें नहीं, नवीन हिन्दु अश्वसेनकी पहरामी वामा देवीने सन् ई० पूर्व ८७७ में पौराणिक रूपमें । उस पूर्वरूप तथा इस उत्तररूपमें प्रत्यक्ष २३ वें जैन तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथको जन्म दिया। ही भाकाश-पालाजका अन्तर था।
भगवान पार्श्वकी ऐतिहासिकता अाज निर्विवाद स्पसे जैसा कि ऊपर निर्देश किया गया है, महाभारत युद्ध १
१ भारतीय इतिहासकी रूपरेग्वा पृ० २८६ जयचन्द विद्याके पश्चात ही पशिमोत्तर प्रान्त में तक्षशिला तथा पंजाब तथा A Political History of Ancient में 'उरपयन' ( उद्यानपुरी) के नागराजने अवसर पाकर India P.16-Dr. H. Ray Choudhry. वैरिकार्योंके केन्द्र तथा शिरमौर कुर-पाचाल देशोपर २ Political History of Ancient India प्रबल माक्रमण करने प्रारंभ कर दिये। युधिष्ठिरके उत्तरा- P. 47-Dr. H. C. Raychoudhry.