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किरण ७८]
भारतीय इतिहासका जैनयुग
मयी देखते हैं। कुछ एक तो सारे प्राचीन युगको मुख्यतया भारतवर्ष विन्ध्य पर्वतमेस्खला द्वारा उत्तरी भारत तथा बौष्टिपे ही निरूपण करते है।
दक्षिणी भारत ऐसे दो विभागोंमें विभक्त है। इन दोनों यहाँ प्रश्न होता है कि सभ्यता एवं संस्कृति फेवल प्रदेशोंका इतिहास प्राचीनकालके अधिकांशमें एक दूसरेसे अथवा अधिकांशमें बौद्धमयी ही थी? क्या उस युगमें जैन प्रायः पृथक तथा स्वतन्त्र ही चला है। प्रस्तु दोनों प्रान्तों संस्कृति की कोई सत्ता ही न थी, उसका कोई प्रभाव क्या का पृषक २ विवेचन ही अधिक उपयुक्त होगा। कभी भी नहीं रहा क्या भारतीय इतिहाममें कभी कोई यह तो प्रायः निश्चित है कि भारतीय इतिहासके 'जैनयुग' नहीं हा? क्या वास्तव में प्राचीन भारतीय इति- प्राचीन या
ma . हासके उक्त बहभागको 'बौद्धयुग' का नाम देना संगत तथा ही धर्म निशेषरूपसे प्रचलित थे । और हममें भी कोई ऐतिहासिक सत्य है?
सन्देह नहीं कि बौद्ध धर्मकी उत्पत्ति स्विी पूर्व छठी इन प्रश्नोंका उत्तर खोजनेसे पूर्व एक और प्रश्न शमी
शताब्दी में महात्मा बुद्ध द्वारा हुई थी। उससे पूर्व स्वयं
HAIRAT होना है कि ऐतिहासिक युगविभागाका मात्र बौद्ध अनुभति एवं साहित्यके अनुसार इस धर्मका कोई प्राचीन, मध्य, अर्वाचीन-युग ही न कह कर हिन्दु, बौद्ध, अस्तित्व न था। कोई स्वतन्त्र प्रमाण भी इस मतके ममत्मान, बांग्ल भादि संस्कृत अथवा धर्मसूचक नाम ति पल: क्यों दिये जाते हैं।
हिन्दु धर्म, जिमका पूर्वरूप वैदिक था तथा उत्तर रूप वास्तव में जिस युगमें जिप संस्कृतिको सर्वाधिक महत्ता पौराणिक हिन्दु धर्म हुआ, सन् ईस्वी पूर्व जगभग ३ से प्रभाव एवं व्यापकता रही हो, प्रसिद्ध प्रसिद्ध व्यक्तियों एवं ४ हजार वर्षके बीच भारत में प्रविष्ट मार्य जातिके धर्म और प्रमुख राज्यवंशोसे जिसे प्रोत्साहन, सहायता एवं भाश्रय संस्कृतिसं संबन्धित था। और बौद्ध धर्मकी उत्पत्ति के बहुत मिला हो जनसाधारणके जीवन में जो सर्वाधिक श्रोतप्रोत पहिलेसे यह इस देश में विद्यमान था। रही हो, जातीय साहित्य, कलाओं, राजनीति, समाज
प्रबरहा जैनधर्म । गत पचास वर्षकी बोजों तथा ग्यवस्था, जनताके रहन-सहन, खान-पान, भाचार-विचार,
अध्ययनके आधार पर भाज प्रायः मर्घ ही पाश्चात्य एघ रीति-रिवाजों पर जिस संस्कृतिने विवक्षित युगमें सर्वा
पौर्वात्य प्राच्यविद्याविशारद इस विषयमे एकमत हैं कि धिक प्रभाव डाला हो उसी सस्कृतिका निर्देशपरक नाम
जैनधर्म बौद्धधर्मसे सर्वथा भिन्न, उससे अति प्राचीन, एक उक्त ऐतिहासिक युगको देदिया जाता है, और वैया करना
स्वतन्त्र धर्म है। वैदिक धर्मके साथ साथ वह इस देशमें युक्तियुक्त भी है।
नियमित इतिहासकालके प्रारंभके बहुत समय पूर्वसे प्रच. सी बात यह है कि भारतवर्ष सदैवसे एक धर्मप्राण
लित रहा है, और संभवत: पार्योंके भारत प्रवेशसे पूर्व भी देश रहा है। जितनी संस्कृतिये यहाँ जनमी और पनी
इस देशमे प्रचलित था। यह शुद्ध भारतीय धर्मो में जो उनमेसे प्रत्येकका किसी न किसी धर्मविशेषके साथ संबन्ध
मौज तक प्रचलित है, सबसे प्राचीन है। रहा है। धर्म और संस्कृतिका संबंध यहां पविनाभाषी था,
इस प्रकार, महाभारत युद्ध के उपरान्त अर्थात् भारतीय इसी कारण भिक्ष भिम धमौके नामोसे ही भिक भिन्न
इतिहासके प्राचीन युगके प्रारम्भमें इस देश में केवल दो संस्कृतिये प्रसिद्ध हुई, यथा वात्स्य, श्रमण अथवा जैन,
धर्म-वैदिक और जैन ही विशेषत: प्रचलित थे, तपा बौद्ध, हिन्दु-वैविक अथवा पौराणिक, मुसलिम इत्यादि।
बौद्ध धर्मका उस समय कोई अस्तित्व न था। अब देखना यह है कि प्राचीन भारतके उस पढ़ाई सहस वर्षके लम्बे कालमें किस संस्कृति तथा धर्मका इस "
•Studies in South Indian Jainism Pt.
IP.12, by M.S Rama Swami Ayanदेशमें सर्वाधिक व्यापक प्रभाव एवं प्रसार रहा और उप
gar & BSheshagiri Rao.& Intro. बन्ध ऐतिहासिक प्रमाण कहाँ तक उस बातकी पुष्टि to Heart of Jainism P.XIV-Mrs.
Sinclair.