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किरण ७-८)
सुख और समता
पर पाषाण और चंद्रक्रान्तिमणिके निकराने पर, चर्म है और उसका चित्त काबूम हो जाता है। जिम ममय यह व चौनके रेशमी वस्त्रोके दिये जाने पर, क्षीण शरीर व श्रात्मा अपनेको सर्वपर्यायोस व परद्रव्योंसे विलक्षण निश्चय सुन्दर स्त्रीके देखने पर, अपूर्व शान्तभावके प्रतापसे राग- करता है, उसी समय समताभाव जागृत होता है। यह द्वेष विकल्पोंको स्पर्श नहीं करता है वही चतुर मुनि समता- समताभ व ही ध्यान की सिद्धिका एकमात्र उपाय है। जब भावके श्रानन्दको अनुभव करता है। श्रीपश्यनंदिमुनि सम्यक् ज्ञान के प्रभावसे रागद्वेष मोहका अभाव होता है. एकत्व सप्तति में निर्देश करते हैं:
ममताभाव ज.गृन होता है तब आत्मामे रमण करनेका साम्यं मन्दोध निर्माणं शाश्वदानन्दमंदिरम। उत्साह बढ़ता है, सहज सुखका साधन बन जाना है, स्वानुमाम्यं शुद्धात्मनो रूपं द्वारे मोक्षकसमनः॥ भव जागृत होजाना है जिमके प्रनापसे मुग्व-शान्तिका लाभ
अर्थात्-समताभाव ही सम्यक्शानको रखनेवाला है। होता है. अात्मघन बढ़ता है, कर्मका मैल करता है और यह समनामान ही सहजानंदका अविनाशी मंदिर है। ममता
जीवन परम स्वरर्णमय होनाता है। ऐसा जान कर स्वहिन भाव शुद्धात्माका स्वभाव है, यह मोक्षका एक द्वार है।
बाछकोका कर्तव्य है कि वे जिनेन्द्र-प्रणीत परमागमके जो रागद्वेषकी प्रवृनिको गेकना चाहते हैं उनके लिये
अभ्यामसे सम्यक्ज्ञानको प्राप्त कर अपनेमें समताभावको
जागृत करें । जो गग-ष-मोह-ममताको त्याग कर समताको समताभावकी प्राप्ति परमावश्यक है, जो महात्मा समभाव की भावना प्रकट करता है उनकी श्राशाएँ शीघ्र ही नाशका ।
श्रानाता है वही श्रात्मदर्शन पाता है और वही मोक्ष मुखकी प्राप्त हो जाती है, उसका अज्ञान क्षणमात्रम नष्ट हो जाता
बानगी इम मनुष्य जन्ममें चम्ब लेता है।
भारतीय इतिहासका जैनयुग (ले०-बा० ज्योतिप्रसाद जैन विशारद एम० ए०, L L B. )
इतिहास जातीय-जीवनके अतीतका सर्वाङ्गीण प्रति- मामाजिक संस्थाओं, धर्म, सभ्यता, साहित्य एवं कला विम्ब होता है। अतीत मेंसे ही वर्तमानका जन्म होता है। प्रादिका नियमित, काल क्रमानुसार, बहुत कुछ निधिरा दोनोंका परस्पर इतना घनिष्ट सम्बंध है कि बिना प्रतीतकी इतिहास ( gular History ) उपलब्ध है। पथार्थ जानकारीके वर्तमानका वास्तविक स्वरूप समझना शुद्ध ऐतिहासिक युगके प्रारम्भ कालसे पूर्वका कई कठिन ही नहीं, प्रायः असम्भव है। प्रतः जातीय उमतिके सहस वर्षका प्रनिश्रित समय ऐसा है जिसके अन्तर्गत होने हित समाजशाबके प्रधान प्रजातीय इतिहासका ज्ञान वाले अनेक प्रसिद्ध पुरुषों, महत्वपूर्ण घटनामों, धर्म, परमावश्यक है।
सभ्यता प्रादिके विषय में यद्यपि जातीय अनुश्रुति, तित्व, ऐतिहासिक सम्वेषण एवं अध्ययनकी सुगमताके जाति विज्ञान, मानुषमिति कपासमिति, भूविज्ञान इत्यादि खिये इतिहासका विमिन भागों में विभककर लिया जाता द्वारा अनेक ज्ञातव्य बातोंका शान तो प्रास हो जाता, है। इसी कारण भारतवर्ष अपना भारतीय जातिका इति- किन्तु कोई नियमितता और कालकमकी निखिता नहीं हास भी विविध युगाम बिमकमा मिलता
है। उस काल-सम्बन्धी विहास चना, सन्दिग्ध सर्व प्रथम, लगभग तीन हजार वर्षका यह 'शुद्ध अनिश्चित कोटिका होनेसे, 'पछव अथवा अनियमित ऐतिहासिक काम जिसके अन्तर्गत राज्य सत्ताचा इतिहास ( Proto History) कहलाता।