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किरण ७-01
छन्वेषी खहरचारियोंसे
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उसमें व्यतिरेक दृष्टान्तका प्रभाव है इस लिये उसका कर्ता- चाहिये। परन्तु ऐसा नहीं होता, अत: यह क्रमविकाश पन सिद्ध नहीं हो सकता। यदि कर्तावादी सामान्य रूपसे भी ईश्वरके कर्तापनका खंडन करता है। इत्यादि सैंकड़ों कर्मापन सिद्ध करें तो कहते हैं इसमें हमको कुछ प्रापास यक्ति देकर मापने जगत-रचनावादका प्रवल संडन किया नहीं है, क्योंकि हम भी जीवोंके कादिको कर्ता मानते
किया है। जो विद्वान उन युक्तियोंका रसास्वादन करना हीहैं। यदि आप उनका भी कर्ता ईश्वरको सिद्ध करोगे चाहे उनको उस ग्रंथका अवलोकन करना चाहिये। तो सिद्धसाधनमें दोष होगा। तथा जो स्वयं उत्पत्तिवाला
*अन्वय-व्यतिरेकाभ्या तत्कार्य यस्य निश्चितम् । न हो वह अन्यको उत्पन्न नहीं कर सकता यह नियम है निश्यस्तस्य तदृष्टावतिन्यायो व्यवस्थित: ॥ ६२॥ जिम प्रकार भाकाशका फूल किसी पदार्थको नहीं बना। बुद्धिमत्पूर्वकत्वं च मामान्येन यदीष्यते । सकता। यदि हम रेश्वरको कर्ता भी मानलें तो उसके तत्र नैव ववादोनो वैश्वरूप्यं ही कर्मजम् ॥८० ॥ सर्वव्यापक होने सम्पूर्ण पदार्थ एक साथ उत्पन्न होने
नेश्वरा जन्मिना हेतुरुतत्तिविकलत्वतः । चाहिये, सब मोलमोंमें सब जगह एकसा ही पदार्थ बनने
गगनाम्भोजकत्सर्वमन्यथा युगपद् भवेत् ॥८६॥ छद्मवेषी खद्दरधारियोंसे :-~* ~-(ले०-श्री पं० काशीराम शर्मा 'प्रफुल्लित' )
जो अपने पथको भूल चले, उनसे कविको कुछ कहना है ! जो देश - प्रेमका छद्म धार ,
उनकी बगुला-भक्ती करती-- मर - मिटने का फतवा देते ।
' मानवता पर जब चोट एक । कागज़ की काली बहरीपर
कम्पित हो उठते शील-सस्य , भाजादी की मैय्या खेते ।
साश्चर्य देखते एकमेक ! पर, वे दोजकके की है, जिनका प्रपंच ही गहना है! पर-हित की पालिश करके निज-स्वारथका जामा पहना है ! जोधपने पथको भूल चले, उनसे कविको कुछ कहना है! जो अपने पथको भूल चले, उनसे कविको कुछ कहना है ! बाहर तो वे कुछ और, और
जब तक नहिं होते दूर-दूर वे, अन्तरसम जिनका काला है।
तब तक होती बरबादी ! बाहर दिखते मकरन्द मम्जु ,
ऐसे छलियोंके हाथों पद-- अन्दर उनके विष - हाला है।
मिल पाएगी नहिं आज़ादी ! इस कारण, भाज गुलामीमें हम सबको पढ़ता रहना है ! अमृतमें विष भर कर पीना, जीवनकी शूम्य कल्पना है ! जो अपने पथको भूल चले, उनसे कविको कुछ कहना है ! जो अपने पथको भूल चले, उनसे कविको कुछ कहना है ! जो विश्व-विदित होनेकी धुन
है नम्र निवेदन उनले यह , में ही उधेर - बुन करते हैं।
वे पोजीशनका ध्यान करें ! भारतके वे मानव कृतघ्न ,
अन्याय - अनीतीये पल कर-- जो घरमें हो घुन करते हैं।
मत कुत्तेकी वे मौत मरें ! धिक् , ऐसे पूत-कपूतोंमे मौको पता दुख सहना है! कुछ करें अहिंसा-सत्पथपर, नहि, जीवच व्यर्थ जरुपना है ! जो अपने पथको भूल चले, उनसे कविको कुछ कहना है! जो अपने पथको भूल चले, उनसे कविको कुछ कहना है! सबको देते उपदेश, किन्तु ,
मेरा वक्तव्य यही, उनसे , अपने पर जिनको खाचारी !
- वे सीधे पथ पर भा जाएँ ! ढोंगी, लम्पट, स्वार्थान्ध, धूर्त ,
अपनी काली करतूतों से-- कुछ ऐसे भी खहरधारी !!
मों को लजित न बना पाएँ ! चारित्र हीनताके कल से भी जिनको डर-भय ना! हे राष्ट्रदूत, हो सावधान ! घातकसे किसको लहना है ! जो अपने पथको भूल चने, उनसे कविको कुछ कहना है! जो अपने पथको भूल चले, उनसे ही सब कुछ कहना है !