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Arrearnन्दिरके नये प्रकाशन
१- आचार्य प्रभाषन्द्रका तत्वार्थ सूत्र - नया प्राप्त संक्षिप्त सूत्र, मुख्तार भी जुगलकिशोर की सानुवाद व्याख्या और प्रस्तावना सहित । मूल्य 1)
२- सत्साधु- स्मरण - मङ्गलपाठ - मुख्तार श्री जुगलकिशोरकी अनेक प्राचीन पद्योंको लेकर नई योजना, सुन्दर हृदयग्राही अनुवादादि सहित । इसमें श्रीवीर वर्द्धमान और उसके बाद के जिनसेनाचार्य पर्यन्त, २१ महान् श्राचार्योंके अनेकों श्राचार्यों तथा विद्वानोंद्वारा किये गये महत्व के १३६ पुण्यस्मरणोंका संग्रह है और शुरूमे १ लोकमङ्गलकामना, २ नित्यकी श्रात्मप्रार्थना, ३साधुवेष निदर्शक जिनस्तुति ४परमसाधुमुखमुद्रा और ५ सत्साधुवन्दन नामके पाच प्रकरगा हैं। पुस्तक पढ़ते समय बड़े ही सुन्दर पवित्र विचार उत्पन्न होते हैं और साथ ही श्रचायका कितना ही इतिहास सामने श्राजाता है, नित्य पाठ करने योग्य है। मूल्य | )
३- अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड - यह पञ्चाध्यायी तथा लाटीसंहिता श्रादि ग्रन्थोंके कर्ता कविवर राजमल्लकी पूर्व रचना है । इसमें अध्यात्मसमुद्रको कूजे में बन्द किया गया है। साथ में न्यायाचार्य पं० दरबारीलाल कोठिया और पं० परमानन्द शास्त्रीका सुन्दर श्रनुवाद, विस्तृत विषयसूची तथा मुख्तार श्रीजुगल किशोरकी लगभग ८० पेजकी महत्वपूर्ण प्रस्तावना है। यह बड़ा ही उपयोगी ग्रन्थ है । मू० १11)
विलम्बका कारण
अनेकान्तकी इस किरणको इतने विलम्बके साथ प्रकट करते हुए हमें बड़ा ही सङ्कोच तथा खेद होता है । इस विलम्बका प्रधान कारण समयपर काग़ज़ न मिलना है । यद्यपि न्यूज प्रिटका श्रच्छा कोटा मंजूर होकर परमिट श्रागया था परन्तु योग्य कारात न मिल सका, जो मिलता था वह बहुत हो रही था और किसीको भी श्रनेकान्तके लिये न रुचा । श्रन्तको यह २८ पौण्डका कागृक्ष मिला, जिसके देहलीसे सहारनपुर पहुँने में भी रेल्वेकी गड़बड़ी के कारण कोई २२ दिन लग गये। इस तरह १३ जूनको मैटर प्रेसमें दिया जा सका और प्रेसकी परिस्थितियोंके कारण यह किरण एक महीने में छुपकर तय्यार हो सकी है। इस विलम्बके कारण पाठकोको जो प्रतीक्षा-जम्य कष्ट उठाना पड़ा है उसका हमें अनुभव है और उसके लिये हम अपनी मजबूरीको सामने रखते हुए उनसे क्षमा चाहते हैं ।
-व्यवस्थापक
Fired. No. A731.
४- उमास्वामिश्रावकाचार - परीक्षा -मुख्तार भीजुगलकिशोरजी की ग्रन्थपरीक्षाओंका प्रथम श्रंश, ग्रन्थपरीक्षा नोंके इतिहासको लिये हुए १४ पेजकी नई प्रस्तावना सहित । मू० |)
५- न्यायदीपिका - ( महत्वका नया संस्करण ) - न्यायाचार्य पं० दरबारीलालजी कोठिया द्वारा सम्पादित और अनुवादित न्यायदीपिकाका यह विशिष्ट संस्करण अपनी खास विशेषता रखता है। अबतक प्रकाशित संस्करणों में जो अशुद्धियां चली श्रारही थीं उनके प्राचीन प्रतियोंपर से संशोधनको लिये हुए यह संस्करण मूलग्रन्थ और उसके हिन्दी अनुवादके साथ प्राक्कथन, सम्पादकीय, प्रस्तावना, विषयसूची और कोई ८ परिशिष्टोंसे संकलित है, जिनमें से एक बड़ा परिशिष्ट तुलनात्मक टिप्पणका भी है । साथमें सम्पादकद्वारा नवनिर्मित 'प्रकाशाख्य' नामका भी एक संस्कृत टिप्पण लगा हुआ है, जो ग्रन्थगत कठिन शब्दों तथा विषयोंका खुलासा करता हुआ विद्यार्थियों तथा कितने ही विद्वानोंके लिये कामकी चीन है। लगभग ४०० पृष्ठोंके इस वृहत्संस्करणका लागत मूल्य ५) रु० है काग़ज़ की कमी के कारण थोड़ी ही प्रतियां छपी हैं। अतः इच्छुकों को शीघ्र ही मँगा लेना चाहिये । प्रकाशन विभाग
वीरसेवामन्दिर, सरसावा (सहारनपुर )
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VIR SEWA MANDIR, SARSAWA. (SAHARANPUR)
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