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सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ
(अभिमत)
'सत्साधु-स्मरण-मंगलपाठ' नामकी पुस्तक पं. जुगल- कैसे अपराधी है कि हमने अपने trust को पूरा नहीं किशोरजी साहब मुख्तार सरसावाने भेजी । इस पुस्तकके किया, हमने केवल उनको कृतियोंको प्राणीमात्र तक न संयोजक और अनुवादक पण्डित जी आप ही है। यह पहुचानेका ही अपराध नहीं किया है बल्कि अपने प्रमाद पुस्तक पंडितजीकी अनुपम कृतियों में से एक है-श्राद्यो- और अज्ञानतावश उनको दीमकों और चूहोंका खाजा बना पान्त इसे पढ़ा, कईबार पढ़ा-बड़ा श्रानन्द श्राया, पण्डितजी डाला !! हमें इस महान् अपराधके प्रायश्चित्तके रूपमें का Selection ऐतिहासिक कमको लिये हुए है और भविष्यमें उनकी कृतियों को सुरक्षित रखनेके लिये तथा महत्वपूर्ण है।
प्राणीमात्रके हितके लिये उनका अधिकाधिक प्रचार ण्डितजीकी वात औली मनकी बात करनेके लिये प्रयत्नशील होना चाहिये। अापने महान् प्राचार्यों के वाक्यों के मर्मको ही अपनी सरल यह पाठ हमें बताता है कि महानसे महान श्राचार्योने तथा भावव्यञ्जक हिन्दी भाषामें पाठकोंके सामने रखा है। भी स्तवनके मार्गको स्वात्मानुभवकी प्राप्तिके लिये कितना
इस मङ्गलपाठके पढ़नेसे देव, गुरु, शास्त्र के प्रति सच्ची अपनाया है। जिन गुणों द्वारा अरहन्त सिद्ध परमेष्ठीका श्रद्धा और भक्ति बढ़ती है; श्रात-रौद्र-परिणामोंका अभाव तथा पूर्वाचायौंका स्मरण किया गया है, शुद्ध द्रव्यदृष्टिसे होकर अात्मामें स्वाभाविक सुख और शान्तिकी तरंगें उठने वे ही गण हमारी अपनी प्रात्मामें विराजमान हैं। हमारी लगती हैं।
आत्मामें स्वयं अगहन्त तथा सिद्ध परमात्मा बननेकी जो व्यक्ति स्तुति-स्मरण श्रादिको कर्त्तावादका एक Potentiality मौजद है। हम भी यथेष्ट मागेपर चल अङ्ग समझकर इनका निषेध किया करते हैं, उनके लिये
कर क्यों न अपने स्वतन्त्र स्वाभाविक अधिकार परमात्मपद यह पाठ उनकी श्रॉखें खोलने वाला है, जैन शासनमें
को प्राप्त करें। इस प्रकार हमारे अन्तरङ्गमें आत्मकल्याण स्तुति और स्मरणका जो वास्तविक माहात्म्य है उसकी
की भावना जागृत होती है। प्रकाशित करने वाला है।
जिस दृष्टिसे भी देखा जावे यह मङ्गल गठ भव्य-जीवोंके श्रद्धा और भक्तिपूर्वक इस पाठको पढ़नेसे क्रमशः
लिये अत्यन्त उपयोगी और कल्याणकारी है, श्रास्माको महान् प्राचार्यों की एक पंक्ति हमारे सामने श्रा विराजमान
पवित्र बनाकर अात्मविकासके मार्गपर लगानेवाला है। होती है। उस समय हम विचारते हैं कि हमारे पुण्योदयसे
ऐसे महान कार्यके लिये हम मुख्तार साहबका जितना ऐसा हुआ है, हमें उनके चरणोंमें नतमस्तक होकर अपनी श्रद्धाञ्जलि पेश करनेका शुभावसर प्राप्त हुआ है। हम
भी श्राभार माने थोड़ा है, आपका परिश्रम और नि:स्वार्थ
सेवाभाव प्रशंसनीय है। आप वीर-शासनके सच्चे भक्त अपनेको धन्य मानते है कि हमें ऐसे महान् श्राचार्योके
और उपासक हैं इसीलिये "युगवीर" भी हैं । हमारी दर्शन, (परोक्षरूपसे) इस पुस्तकके द्वारा प्राप्त हुए।
हार्दिक भावना है कि अभी पण्डितजी कितने ही वर्षों तक उन महान् प्राचार्योका स्मरण होनेपर हमारी ज़बानसे
हमारे दरम्यान बने रहें और जिनवाणी माताकी सेवा सायास यह निकलता है-धन्य ह इमार एस र महान् उनके द्वारा होती रहे। प्राचार्यों को कि जिन्होंने ऐसी २ अमूल्य कल्याणकारिणी कृतियां हमारे लिये छोड़ी, हमें उनके सामने मारे शर्मके
उग्रसैन जैन M.A., LL.B. मस्तक नीचा करके खड़ा होना पड़ता है कि, हाय! हम
रोहतक।