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किरण ६-१०]
मोक्ष तथा मोक्षमार्ग
मिथ्यारव, अविरति, प्रमाद. कषाय योगदि बन्धके कारणोंमे "निरवशेषनिराकृतकममलकलंकस्याशरीरस्यात्मनो दूर होना पड़ेगा तत्पश्चात् मौजूदा कों को दूर करने के लिये ऽचिन्त्यम्वाभाविकज्ञानादिगुणाव्याबाधसुबमात्यन्ति. मोचना होगा कि-गुप्ते, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा श्रादि कमवस्थान्तरं मोक्षः"। साधनोंसे संचित कर्म दूर किये जा सकते हैं अतएव उनको
अर्थात् सम्पूर्ण का कलंकके दूर हो जानेपर प्रशीरी पालना होगा और जब इस प्रकार शनैः शनै सम्पूर्ण कर्मों प्रमाको स्वाभाविक नानाटिया ARTHथा प्रत्यावा का प्रभाव हो जायगा। तब सच्चा अविनश्वर सुख मिल सख स्वरूप अवस्था हीमोगरे। जायगा, अविनश्वर सुखका मिलना हीमोक्ष है। और अवि
मोक्ष शब्दका अर्थ कर्मबन्धनसे छूटना होता है। नश्वर सुख वही है कि :
अर्थात इस प्रारमाका स्वभाव ज्ञानदर्शनरूप है किन्तु "तत्सुम्बम् यत्र नासुखम"
अनादिकाल में कर्मबन्धके कारण वह शुद्धस्वरूप अव्यक्त है अर्थात--सुख वही है कि जिसके पश्चात् दुख नहीं हो
उमी स्वभावको व्यक्त करने के लिये ज्ञानावरणादिमाठकों और यह अवस्था मात्र मोक्षस्वरूप है। समारमे इस जाति
से छूट करके निजस्वभाव (शुद्ध ज्ञानदर्शन) को व्यक्त कर का सुख नहीं है। यथार्थमें तो संपारके अन्दर सुख है ही
लेना ही मोक्ष है। नहीं, किन्तु जो यह सुखी है यह दुःखी है ऐसा सुना देखा
मोक्ष प्राप्तिके विषयमें पूज्य प्राचार्य श्री उमास्वामीजीने जाता है वह सब कल्पना मात्र है। अनुभव कीजिये कि एक व्या गरीने एक घोड़े पर नमकका बोझा और दूसरे ।
लिखा है कि :घोड़े पर कपासका बोझा रख कर विदेशके लिये प्रस्थान "मम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमागेः" किया, गस्तेमें वर्षा हो जानेके सबब नमक तो घुल गया अर्थात् सम्यगदिकीएकताहीमोक्षका मार्ग है । तात्पर्य यह
और उसका बोझा कम हो गया, किंतु कपासमें पानी भर कि श्रारमा जब रस्नायगुणरूप होजाती है तब वह मुक्तारमा जानेके सबब दूसरेका बोझा बहुत बढ़ गया। उस समय बन जाती है। इन तीनोकी एकता ही मोक्षकी प्राप्तिमें वह दोनों परस्पर अपनी भाषामें यह तय करते हैं कि भाई नियामक है। यदि कारण है कि यदि इन तीनों मेमे कोई तुम्हारा बोझा तो कम हो गया है अतएव तुम सुखी हो भी एक नही होते तब तक मोक्षकी प्राप्ति नहीं हो सकती
और मेरा बोका बहुत भारी हो गया है अतएव मेरा दुःख है। अनुमान कीजिये कि यदि एक बीमार पुरुष अपनी पहिलेसे कई गुना हो जानेके कारण बढ़ गया है। इस बीमारी दूर करना चाहता है तो जब तक उसके श्रद्धा-ज्ञान सरह मैं बहुत दुःखी हूँ, जब कि श्रापके दुखकी मात्रा कम और कार्य यह तीनों बात न होंगीतब तक उसकी बीमारी हो गई है इस लिये भाप सुखी हैं। इस तरह यह तय है पर नहीं हो सकती। क्योंकि उसके वैद्यराजजीको है कि संसारके अंदर सुख और दुःख की बात केवल दुःखके आमंत्रित करके उनकी दवाई ठीक ठीक अनुपानके साथ ले कमती और बढ़ती पर ही निर्भर है। वास्तवमें सुख नही भी ली किंतु यह विश्वास नहीं हुआ कि इनकी दवाईसे है। सुख तो पाकुलताके प्रभाव स्वरूप ही है और वह मेरी तबियत ठीक होगी इस लिये बिना विश्वास-श्रद्धाके निगकुलता मोक्ष में ही है।
औषधिके लेने पर भी सफलता नहीं मिल सकती। अथवा प्राचार्य श्री उमास्वामीजीने मोक्षका लक्षण इस तरह श्रद्धा होने पर भी यदि विपरीत अनुपानसे दवाई ले रहा बताया है कि:
है तब भी सफलता नहीं मिल सकती है। और यदि उसे “बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः" विश्वास एवं ज्ञान है भी किंतु यदि वह कड़वी दवाई को
तात्पर्य यह है कि बन्धके कारणोंके प्रभाव और नहीं खाता है तब भी उसकी बीमारी दूर नहीं हो सकती निर्जराके निमित्तसे ज्ञानावरणादि सम्पूर्ण कर्मों का प्रभाव है। किन्तु जब वह विश्वासके साथ २ ठीक अनुपानके हो जाने पर प्रास्माकी जो शुद्ध अवस्था व्यक्त होती है वही साथ दवाईको खाता है तब शीघ्र ही उसकी बीमारी दूर हो मोक्ष है। दूसरे शब्दोंमें :
जाती है। उसी प्रकार मोक्षमार्गके विषय में भी विश्वास, ज्ञान