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वीर-संदेश [पं० नाथूराम जैन डोंगरीय]
आज मानवीय मस्तक और हृदयमें जबवादका लिये हो रा है ? क्या प्रलयकालीन शांतिके लिये, जबकि शैतानी साम्राज्य छाया हुआ है । जिससे प्रभावित होकर जर्मन और जापान, चीन और हिन्दुस्तान, अमरीका और मनुष्य सुख और विश्वशांतिकी प्राप्तिके बहाने स्वार्थ साधन ईरान, ब्रिटेन और फ्रांस आदि बर्वाद होकर अपना के लिये अपनेमे भिम देश, विचार एवं वर्गके लोगोंका अस्तित्व भी कायम न रख सकेंगे? या उस शांतिके लिये तथा उनके साथ साथ असंख्य अवलाओं, बच्चों और वृद्ध जिसमें कि दुनियाके सम्पूर्ण मनुष्य मानवीय प्रेम, एवं मनुष्यों का भी भीषण संहार करने में उन्मत्त की भांति अंधा- सहानुभूतिके सुख-प्रवाहमे तरंगित हो इस निष्ठुर संसार धुन्द जुटा हुआ है। अधिकाश संसारकी समझमें धन को स्वर्ग बना देंगे? दौलत और साम्राज्यकी प्रतिष्ठा ही अाज सुख-शांतिकी
भगवान महावीरने विश्वधर्मकी घोषणा करनेके साथ प्राप्तिका प्रमोष उपाय बन गई है, जिसका परिणाम प्राज
साथ सर्वथाके लिए प्राणीमात्रके हितके लिए इस जैसी हम सबको ही भयंकर रूपमे भोगना पड़ रहा है।
• सम्पूर्ण समस्याओं को भी जसे २५०० वर्ष पूर्व निम्न ___"जर्मनका गला घोंट दो, ताकि साम्राज्य स्थायी हो संदेश द्वारा हल किया था जिसपर उन्मत्त संसारको जाये. जापानका मुँह मरोड़ दो, ताकि विश्वशांति स्थिर हो गंभीरताके साथ विचार करना चाहिए। उन्होंने कहाजाये, भारतीयोंका खून चूमते रहो, जिससे हमारी भूख 'बन्धुओ! दुःख और प्रशान्ति संसारके प्राणियोंका सदा सदा ही प्रामानी शांत होती चली जाये, और भी कोई सेला पोचती रसलिए प्राणीगण भी इनमे देश निर्बल और कमजोर मिले तो उसे गुजामीकी जंजीरो
छुटकारा पानेका कुछ न कुछ उपाय प्रतिदिन और प्रतिक्षण से जकड नो, कि हमारे व्यापार और राज्यका नीव अटल सोचते व उपपर अमल करनेकी शक्तिभर कोशिश करते हो जाए, ऐसे ऐसे शस्त्रास्त्र बना डालो कि पलक मारते रहते हैं। कोई समझता है कि इन्द्रियोंकी सुख-सामग्रियों प्रलय हो जाये. इतनीसन्य सजाबालो कि जिसे सुनकर को जटाने और इनका इच्छानल भोग कर लेनेपर अवश्य संमार भोचका रह जाये" आदि आदि ।
सुख मिल जायगा दूसरा सोचता है-जब मैं साम्राज्य ये हैं हमारे संसारके सभ्य-नामांकित मनुष्योंके का स्वामी बनकर शानके साथ सिंहासनारूढ हो, संसारके अस्वच्छ एवं भ्रमपूर्ण विचार, जो विश्व में एक सिरेपे लेकर निर्वल प्राणियों की छातीपर शासन करूंगा तब कहीं श्रानंद दूसरे सिरे तक प्रलयकालके भीषण दृश्यों को समुपस्थित प्राप्त करनेका सुअवसर प्राप्त होगा। तीसरा विचार करता कर अग्नी और दूसरोंकी सुख शांतेका सर्वनाश करनेमें है-धन दौलत ही दुनियामें सुखप्राप्त करनेकी कुंजी है, दानवोंसे बाज़ी लगा रहे हैं। प्रांत धारणाओंसे श्रोतप्रोत अपने सम्पूर्ण समयको इसीके इकट्ठा करनेमें लगाकर मनोगड़वादका कैसा भोषण परिणाम है यह, कि दो चार बांछित मौज उदाऊँगा। चौथा ख्याल करता है मैं होऊँगा साम्राज्य बोलपियोंके संगठित बुद्धिबबने सारे विश्वकी और सुन्दर सुन्दर युवतियां जिनके साथ भोग विलास शांतिको चकनाचूर करके रख दिया है। खू ख्वार भेड़ियों और काम-क्रीड़ा कर स्वर्गीय आनाके अनुभव द्वारा कृतकी भांति प्रापसमें लड़ बाकर एवं दूसरोंके गोंपर कृत्य होकर रहँगा। सारांश यह कि अपनी अपनी प्रांत छुरियां चलाकर शांति के बीज बोनेका दम भरने वाले इन धारणाओं क कुचक्रमें पड़े हुए ये प्राणी अहर्निश अविश्रांत नामदारों भला कोई पूछे कि यह सब कौनसी शांतिके परिश्रम करते और इरिक्त सामग्रियों को प्राप्तकर उन्हें